Saturday, November 19, 2022

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

 

मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी,

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया !


स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र तक साइकल से ऑफिस जाना,

अब भी याद है मुझे उनका एक एक रुपया बचाना !

सुबह और शाम तीन तीन घण्टे ट्यूशन पढ़ाना !

थक कर चूर होकर देर रात को घर वापस आना !


मम्मी से कभी हिसाब नहीं लेते थे पर उन्हें सब एहसास रहता था !

हम बच्चों की छोटी छोटी ख़्वाहिशों का उन्हे आभास रहता था !


पापा खामोश रहते हैं, खुद को व्यक्त करना उन्हें कभी नहीं आया,

पर हमको उनका उदास चेहरा पढ़ना शायद उन्होने ही था सिखाया !


हमारे बीमार होने पर बहुत घबराते हैं पापा !

स्वेटर क्यों नहीं पहना ? मफ़लर कहाँ हैं तुम्हारा ? अब तो जैकेट निकाल लो !

इन बातों पर अब भी डांट लगाते हैं पापा !


पर उनका इस तरह डांटना, मुझे अब बुरा नहीं, बहुत अच्छा लगता है,

क्योंकि आज मैं खुद एक पिता हूँ, पर यह एहसास बहुत तसल्ली देता है, 

कि कोई है, जिसे यह आदमी अब भी बच्चा लगता है!


उनके साथ का मतलब, जैसे बरगद के पेड़ की छाया,

जीवन के हर झंझावात से उनके वरदहस्त ने ही तो बचाया!

उनके घर में होने से दिल में एक सुकून का एहसास रहता है !

वो सदा साथ रहेंगे बस मन में यही विश्वास रहता हैं !


आज पापा के जन्मदिन दिन पर मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं,

मुझ जैसा आलसी, लापरवाह, फक्कड़ इंसान यदि थोड़ा भी जिम्मेदार बना है 

तो यह उनके अनुशासन, और अच्छी परवरिश का ही परिणाम है !

यह उनके संस्कारों का ही असर है कि मेरा समाज में थोड़ा बहुत नाम है !


उन्होने छानने की बहुत कोशिश की पर मैं अब भी पूरी तरह से छन नहीं पाया 

मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी,

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया !


Thursday, November 17, 2022

अक्सर चुप रह जाता हूँ !

हाल-ए-ग़म बतलाना हो तब, मैं पीछे रह जाता हूँ, 

नाराजी दिखलाना हो तब, मैं पीछे रह रह जाता हूँ!

कितने अरमाँ मन में छुपाए, फिर उनके नजदीक पहुँच, 

दिल का हाल बताना हो जब, मैं पीछे रह जाता हूँ।






                                                     

Tuesday, September 20, 2022

कितना मुश्किल होता है !!

सबकी सुनना, पर चुप रहना, कितना मुश्किल होता है,
उससे बिछड़ना पर खुश रहना, कितना मुश्किल होता है !
ज़िन्दा रहने की खातिर हर रोज़ यहाँ मरना पड़ता, 
मरने तक फिर ज़िन्दा रहना, कितना मुश्किल होता है !!
सपनों के मर जाने का अफसोस नहीं होता लेकिन,
फिर भी सपने बुनते रहना, कितना मुश्किल होता है!!
महलों में रहने वाले क्या जाने तपिश दुपहरी की,
हमसे पूछो धूप में जलना कितना मुश्किल होता है!!
जीवन के इस मोड़ पे आकर मुझको ये अहसास हुआ
बीते वक्त का वापस आना, कितना मुश्किल होता है।
इतने दुःख जीवन में पाकर मुझको ये मालूम हुआ
अपनी ही तकदीर से लड़ना, कितना मुश्किल होता है
गीली आँखें, दिल पर पत्थर, चेहरे पर मुस्कान लिए,
तेरी यादों के संग जीना, कितना मुश्किल होता है
अपने गम को सह लेता है हर कोई इस दुनिया में
पर दूजे के गम को सहना कितना मुश्किल होता है।

Sunday, September 18, 2022

हमने भरपूर बचपन जिया है !!!

हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!
हमने दस पैसे की चार संतरे वाली कम्पट खाई है,
हमने रसना और गोल्ड-स्पॉट बड़े चाव से पिया है।
हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!

हम नाचे हैं मिथुन-दा के डिस्को डांस पर,
हमने हसन जहाँगीर का हवा हवा खूब गाया है,
हमने अपने तो छोड़िए, पड़ोसियों के रिश्तेदारों से भी रिश्ता निभाया है।
हमने ट्रांजिस्टर पर बिनाका संगीत माला और हवा महल की कड़ियाँ खूब सुनी है,
हमने बालू के महल बनाये हैं, और मौरंग के ढ़ेर में से शंख और सीपियाँ खूब चुनी है।
हमने बिना बिजली के न जाने कितनी रातें छतों पर सोकर बिताई है,
हमने नंदन, चंदामामा, बिल्लू, पिंकी, और चाचा चौधरी से खूब दोस्ती निभाई है।
हमने ट्रेन में परिवार के साथ होल-डाल और सुराही लेकर सफर किया है।
हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!

हमने वीडियो पर देखी हैं एक रात में तीन से चार पिक्चर,
कमरे में खूब चिपकाएं हैं माधुरी और श्रीदेवी के पोस्टर,
हम टेप रिकॉर्डर में फंसी हुई कैसेट की बेसुरी आवाज़ पर खूब खिलखिलायें हैं,
हमने 8रू की टिकट पर बालकनी में फ़िल्म देखी है, हमने एक रुपये में 8 गोलगप्पे भी खाएं हैं!
हमने देखीं हैं पीसीओ पर कॉल के लिए लगने वाली लम्बी लम्बी कतारें,
हम बैलगाड़ी में घूमें और ताँगे पर भी बैठे, हमने मेले भी देखे गँगा के किनारे!!
हमने काले चोंगे वाले लैंडलाइन फोन और पेजर से लेकर स्मार्ट मोबाइल तक का सफर किया है!!
हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!

"हम-लोग, बुनियाद, रामायण, महाभारत" हमारे ही सामने टीवी पर आए हैं,
देखा है चंद्रकांता और चित्रहार-रंगोली के गाने, स्कूल में बड़े शौक से गुनगुनाये हैं!
मिनरल वाटर या आरओ जानते नहीं थे हम, नल के पानी से कभी बीमार नहीं हुए,
खूब खाएं हैं ठेले से जलेबी और समोसे, बारिश में भीगने से हमें कभी बुखार नहीं हुए!!
देर शाम तक मैदान में खूब खेलते थे चाहे घरवाले कितना भी डांटे,
टीचर की शिकायत कभी नहीं की चाहे मुर्गा बने या खाये हो गाल पर चाँटे !!
फेल होने पर कभी रोये नहीं, पढ़ाई को बोझ समझ कर कभी प्रेशर नहीं लिया है!!
हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!

:::
अम्बेश तिवारी
18.09.2022

Saturday, August 6, 2022

बस हमारे पास इतना ही बचा है !!

दो  नयन  हैं  रतजगे   से होंठ  पर  किस्से  ठगे  से
हाथ  रेखा  बिन   अभागे पाँव कुछ कुछ डगमगे से
और  मन  के  द्वार कोलाहल मचा है
बस  हमारे  पास  इतना  ही  बचा  है

एक   सावन   है   सुलगती   आग   जैसा
और    कुछ    अनुबंध   हैं   आधे   अधूरे
शाम है, कुछ सिसकियाँ हैं, हिचकियाँ भी
स्वप्न   हैं   जो    हो   न   पाए   मीत   पूरे
खेलते  हैं  खेल  जो  विधि  ने  रचा है
बस  हमारे  पास   इतना  ही  बचा  है

मोड़  वह  जिस  पर मुड़े तुम फिर न लौटे
वह  गली  जिसमें  तुम्हारा  घर  दिखा था
चित्र  वह  जिसको  सॅंभाला है अभी तक
गीत  वह  जो  देखकर  तुमको लिखा था
और यह जग, प्रेम जिसको कब पचा है
बस  हमारे  पास   इतना   ही   बचा  है

Friday, July 1, 2022

कानपुर मेरी जान !!

अजब, अनूठा, अलबेला सा कानपुर है मेरी जान!
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !
मुँह में पान, दिलों में मस्ती, यहाँ के लोगों की पहचान,
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

झाँसी की रानी का बचपन इस मिट्टी ने सींचा था,
इसी धरा पर भगतसिंह ने क्रांति पाठ भी सीखा था !!
विद्यार्थी जी के प्रताप से, देशभक्ति का बिगुल बजा,
वीर चन्द्रशेखर ने यहीं पर, नया क्रांति इतिहास रचा !
नमन हमारी पुण्य-भूमि, यह कानपुर मेरा अभिमान!!
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!!

सीता माँ की तपोभूमि जो, तपेश्वरी है, पावन धाम,
पनकी वाले बाबा की जय, बन जाते सब बिगड़े काम !
गँगा मईया के घाटों पर, अविरल रस धारा बहती,
हर हर महादेव बम भोले,  स्वरलहरी गुंजित रहती !!
यहाँ शिवालय के जयकारों, से होती हर सुबह प्रणाम !!
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

उद्योगों का केंद्र बना यह, और ज्ञान का है उपवन,
रोजगार मिलता लोगों को, शिक्षा से बदले जीवन !!
कला और विज्ञान ने मिलकर, अमन शान्ति पैगाम दिया !!
यहाँ की प्रतिभाओं ने दुनिया, भर में ऊँचा नाम किया !
आई आई टी और जीएसवीएम, दोनों अपने देश की शान !
कानपुर में बसा हुआ है, एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

जे के मंदिर, ग्रीन पार्क हो, या हो फूल बाग की छाँव
मोती झील की सुन्दरता में, टिकते नहीं धरा पर पाँव !
कभी न रुकते, कभी न झुकते, चलते रहते दिन और रात!
कनपुरिया मस्ती में जीते, चाहे कैसे हों हालात !!
दिल में हो तूफान भले पर चेहरे पर रहती मुस्कान ! 
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

अजब, अनूठा, अलबेला सा कानपुर है मेरी जान!
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !
मुँह में पान, दिलों में मस्ती, यहाँ के लोगों की पहचान,
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

Thursday, June 30, 2022

मैं पलभर दुखी नहीं होता !!

आज मम्मी का जन्मदिन है! हालांकि वो हमारे साथ नहीं हैं और 03-07-2016 को वो यह नश्वर शरीर छोड़कर परमधाम को चली गईं थीं पर मैं दुखी नहीं हूँ बल्कि खुश हूँ क्योंकि वो हमेशा मुझे खुश देखना चाहती थीं। आज उनके जन्मदिन के दिन मैं यह कविता उन्हें समर्पित करता हूँ !!

जन्मदिन मुबारक हो मम्मी !!

मैं पल भर दुखी नहीं होता!!
क्यों रोकर तुमको याद करूँ, तुमने तो सदा हँसाया था,
जीवन जीने का सही तौर, तुमने ही तो सिखलाया था।
कैसी भी विपदा आन पड़े, तुम सदा दिलासा देती थीं,
खुशियाँ हम सबके हिस्से में, दुख सारे खुद रख लेती थीं।
जब जीते जी मुझको रोता तुम देख नहीं सकती थीं माँ,
ईश्वर के घर से फिर मुझको कैसे देखोगी तुम रोता!!
मैं पलभर दुखी नहीं होता !!

तुम पास नहीं हो मेरे यह पलभर मुझको एहसास नहीं,
तुम तो मेरी जीवन शैली, तुम बिन मेरी एक श्वास नहीं।
मैं कैसे याद करूं तुमको जब, एक पल भूल नहीं पाता,
मेरी वाणी, मेरी स्मृति, मेरा लेखन तुमसे आता।
वो मुस्काता चेहरा हरदम मेरी आँखों में रहता है,
बस इसीलिए इन आँखों को, आँसू से कभी नहीं धोता!
मैं पलभर दुखी नहीं होता !!
::
अम्बेश तिवारी 
30-06-2022


मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

  मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया ! स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र ...