हँस कर बड़े तपाक से मिलता ज़रूर है,
मुझमें भी मगर कोई तो तन्हा ज़रूर है.
तूफ़ान मुझ से हो के गुज़रते हैं किसलिए ,
कोई न कोई मुझमें भी रस्ता ज़रूर है.
चाँदी के चंद सिक्कों को कितना यक़ीन है,
ईमान चाहे देर से बिकता ज़रूर है.
क़िस्मत के जानकार नज़ूमी को देखिए,
लिखता नहीं है वो मगर पढता ज़रूर है.
ग़ज़लों की ज़ायदाद का वारिस नहीं हूँ मैं,
लेकिन ये सच है मेरा भी हिस्सा ज़रूर है.
सजदे में सर झुका के ये सूफ़ी ने बताया ,
फलदार पेड़ होते ही झुकता ज़रूर है.