बचपन की मित्रता कहाँ हैं !
अब तो बस व्यवहार रह गया !
कष्टों की पीड़ा तो कम है,
आभारों का भार रह गया ।
प्रेम, प्यार रूठना मनाना
हँसी ठिठोली के किस्से,
रह गए बन्द किताबों में बस
जीवन एक व्यापार रह गया ।
::::
अम्बेश तिवारी
06.06.2016
होली पर व्यंग्य कविता अबकी होली पर दिल्ली ने बदला ऐसा रंग, छोड़ आप का साथ हो गयी मोदी जी के संग, मोदी जी के संग करो मत महंगाई की बात, अपने ...
No comments:
Post a Comment