Thursday, June 16, 2016

वो रिश्तेदार हैं मेरे !

न मेरा हाल पूछेंगे, न दो आँसू बहाएंगे,
वो रिश्तेदार हैं मेरे, वो छुप कर मुस्कुराएंगे !
सुनाएंगे मुझे खुद की तरक्की की सभी बातें,
मेरी गुरबत, मेरे ऐबों के कारण है, जताएँगे !
भरी महफ़िल में छेड़ेंगे मेरी रुस्वाई के किस्से,
मुझे हर बात में जैसे भी हो नीचा दिखाएँगे !
बिना खंजर के मुझको घाव देते हैं ज़ुबाँ से वो,
मेरे सूखे हुए ज़ख्मों पे नश्तर वो चलाएंगे !
मैं सच बोलूं तो मुझ पर बदजुबानी का लगे ठप्पा,
मचाकर शोर अपने झूठ को वो सच बनाएंगें !
कभी जो आइना देखें, तो टूटेंगे गुमाँ उनके,
वो खुशफहमी में हैं, कि अब मेरी हस्ती मिटायेंगे !
फ़क़त इस वास्ते 'अम्बेश' चुप बैठा है महफ़िल में,
कभी मेरी वफ़ा के सामने वो सर झुकाएँगे ।

अम्बेश तिवारी "अम्बेश"
16.06.2016

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