क्यों आवाज़ उठाते हो तुम, चुप बैठो !
किसे यहाँ समझाते हो तुम, चुप बैठो !
यहाँ सभी मुर्दा हैं तुम भी मर जाओ,
क्यों आत्मा जगाते हो तुम, चुप बैठो !
बचपन से समझाया सबने,
पाठ यही सिखलाया सबने,
किसी के चक्कर में मत पड़ना,
अपने काम से मतलब रखना,
क्या तुमको यह शौक लग गया,
क्यों समाज का रोग लग गया,
सीधी-साधा काम करो तुम,
घर जाकर आराम करो तुम,
कोई रिश्वत ले, लेने दो,
तुम भी ले सकते हो तो लो,
होता है जो काम किसी का तो होने दो,
काहे टाँग अड़ाते हो तुम चुप बैठो !
क्यों आवाज़ उठाते हो तुम, चुप बैठो !
किसे यहाँ समझाते हो तुम, चुप बैठो !
सबका अपना अपना धंधा,
चाहे चोखा, चाहे मन्दा,
कितनी भी बेईमानी कर लें,
कभी न होते वो शर्मिंदा !
नेता, अफसर और व्यापारी,
एक ट्रेन की सभी सवारी,
तुम भी इस गाड़ी में बैठो,
तुमको "सच" की लगी बीमारी,
अपने दिल की करो दवाई,
जैसे भी हो करो कमाई !
अन्याय को देख निगाहें नीची कर लो,
क्यों तन्हा चिल्लाते हो तुम चुप बैठो !
क्यों आवाज़ उठाते हो तुम, चुप बैठो !
किसे यहाँ समझाते हो तुम, चुप बैठो !
जाति-धर्म पर झगड़े होते हैं होने दो,
हर मज़हब के पिछड़े रोते हैं रोने दो,
तुमको उनकी लाचारी से क्या मतलब है,
उन बच्चों की बीमारी से क्या मतलब है !
तुम अपने कमरे में बैठो, टीवी देखो,
अपने मम्मी-पापा, बच्चे बीवी देखो !
सरकारों का काम है यह उनको करने दो,
इसके लिए बनी संसद, उनको लड़ने दो ।
अच्छी खासी सुलझी सी ज़िंदगी चलाओ,
क्यूँ जीवन उलझाते हो तुम, चुप बैठो !
क्यों आवाज़ उठाते हो तुम, चुप बैठो !
किसे यहाँ समझाते हो तुम, चुप बैठो !
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अम्बेश तिवारी
03.06.2016
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