Thursday, June 2, 2016

एक ग़ज़ल की कोशिश !

बिना बुलाये मेरे घर में मेहमाँ बन आ जाता है,
न जाने क्या ऐसा मेरा रंजोगम से नाता है !
अब रोटी दाना पानी की कोई फ़िक्र नहीं मुझको,
जो मालिक जीवन देता है वो ही भूख मिटाता है !
बातों में सच्चाई हो और पीड़ा में गहराई हो,
आँखों से बहता पानी तब गंगाजल हो जाता है !
चाँद लिए तारों की सेना लड़ता है अँधियारों से,
सुबह तलक पर वो बेचारा तनहा ही रह जाता है !
सारी दुनिया छोड़ दे मुझको ! पर कोई परवाह नहीं,
माँ तेरे जाने के डर से मेरा मन घबराता है !

:::::::अम्बेश तिवारी
02.06.2016

No comments:

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

  मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया ! स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र ...