Monday, September 14, 2015

मेरी जगन्नाथ पुरी यात्रा

यात्रा की योजना
कहते हैं कि किसी भी तीर्थ यात्रा की आप चाहे जितनी योजना बना लें पर जब तक ईश्वर की इच्छा नहीं होती है यात्रा पूरी नहीं हो पाती है ! इस यात्रा के लिए मेरी इच्छा तो बहुत वर्षों से थी पर योजना इस वर्ष मई में बनी | मई के दुसरे सप्ताह में मैंने पापा, मम्मी और भाव्या के साथ यात्रा का प्रोग्राम बनाया | तीन चार दिनों तक यात्रा के समय पर चर्चा होती रही और काफी माथापच्ची के बाद अगस्त के मध्य में 15 तारीख के आस-पास का समय सुनिश्चित हुआ और रिजर्वेशन के लिए प्रयास किया | पुरी जाने के लिए कानपुर से कुल तीन ट्रेन हैं जिनमे पुरुषोत्तम एक्सप्रेस (प्रतिदिन), नंदन कानन एक्सप्रेस (सोम,बुध,गुरु,शनि) और नीलांचल एक्सप्रेस (मंगल,शुक्र,रवि) हैं | इसके अलावा आप भुवनेश्वर राजधानी एक्सप्रेस या संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से भुवनेश्वर तक का भी रिजर्वेशन करा सकते हैं और वहां से टैक्सी से पुरी तक जा सकते हैं | तो हम लोगों ने 14 अगस्त का संपर्कक्रांति एक्सप्रेस कानपुर से भुवनेश्वर तक AC 3 TIER में अपना आरक्षण करवा लिया | शुरुआत में हम चार लोगों का ही आरक्षण हुआ था पर फिर पहले जया दीदी फिर यशू(भांजा) और सबसे अंत में हमारी श्रीमती जी का भी आरक्षण हो ही गया | अब समस्या थी कि सब लोग जायेंगे तो घर पर कौन रूकेगा ? कहते हैं जहाँ चाह वहां राह ! हमने अपने चाचा ससुर श्री जयशंकर पाण्डेय से अनुरोध किया कि वो और हमारी सासू माँ दस दिनों के लिए घर पर रुक जायें | उन्होंने हमारे अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया इस प्रकार हमारी सफल यात्रा का थोड़ा श्रेय उन दोनों बुजुर्गों को भी जाता है ! तो भाई प्रोग्राम कुछ ऐसा बना कि पहले 14 को यहाँ से चल कर 15 को दोपहर तक भुवनेश्वर और फिर वहां से टैक्सी से पुरी चलेंगे | पुरी में चार दिन यानी 15, 16, 17, 18, रुक कर 18 की रात को वहां से पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से चलकर 19 की सुबह खड़गपुर पंहुचेंगे और 19 से 22 तक खड़गपुर रुक कर वहीँ से कोलकाता दर्शन करते हुए 22 की शाम को नन्दनकानन एक्सप्रेस से खड़गपुर से चलकर 23 अगस्त की सुबह 10:30 पर कानपुर आ जायेंगे |

तारीख : 14 अगस्त 2015 दिन शुक्रवार :
 तय समय के अनुसार 14 अगस्त की दोपहर 12 बजे हम लोग एक कार जीजा जी की और एक OLA टैक्सी करके भगवान् जगन्नाथ का नाम लेते हुए कानपुर सेंट्रल पहुंचे | गाड़ी चूँकि 01:20 PM की थी अतः हम लोग 45 मिनट पहले ही स्टेशन पहुँच चुके थे | स्टेशन पर लगभग 1 घंटा इंतज़ार करने के बाद पता चला कि गाड़ी लगभग 45 मिनट लेट है | खैर स्टेशन पर हमने किसी तरह बातचीत करके और फोटो आदि खींच कर समय काटा | लगभग 2:10 पर गाड़ी आ गई | हम लोगों ने अपनी अपनी सीट पकड़ ली | हमारी पत्नी का आरक्षण चूँकि बाद में हुआ था अतः वो उस AC 3 TIER के B-1 कोच में न होकर स्लीपर में हुआ था | अब ऐसा तो हो नहीं सकता था कि हम AC-3 में बैठे और पत्नी स्लीपर में और पत्नी को अपनी सीट देकर हम स्लीपर में जाने का त्याग करते इतनी सहिष्णुता हममे भी नहीं थी अतः जैसे ही TTE नज़र आये हमने उन्हें धर दबोचा और पत्नी का स्लीपर वाला टिकट दिखाकर उसे भी AC-3 टियर के उसी कोच में बर्थ देने को कहा ! भाग्यवश कुछ बर्थ खाली थीं अतः हमे उसी कोच में बगल वाले कम्पार्टमेंट में बर्थ मिल गयीं | TTE को रू980/- दोनों टिकट के मूल्य का अंतर चुका कर हम चैन से बैठे | गाड़ी में ज्यादा भीड़ नहीं थी और हमारे सहयात्रियों के नाम पर कानपुर के एक पटेल दंपत्ति और एक जम्मू का रहने वाला सेना का जवान शब्बीर अहमद था | तो बातचीत का सिलसिला चाय से आरम्भ हुआ ! शब्बीर पहले कुछ संकोच कर रहा था पर बाद में बेतकल्लुफ होकर हमारे साथ दहला पकड़ खेलने लगा | पटेल साहब काफी निसंकोची थे क्योंकि औपचारिकतावश हमने उन्हें जो खाने पीने की वस्तु ऑफर की उन्होंने लेने में कोई कोताही नहीं की जबकि शब्बीर ने मेरी पिलाई हुई चाय के पैसे मुझे दिए ! उसी कोच में एक उन्नाव के रहने वाले शुक्ला जी भी थे जो डेरी उद्योग में थे और अब उनका पूरा परिवार उड़ीसा में ही बसा हुआ था | उनसे और उनके सहयात्री से काफी देर विभिन्न विषयों जैसे ओडिशा के मौसम, खानपान, विकास, और राजनीति पर चर्चा हुई | चूँकि यह गाड़ी ज्यादा जगहों पर नहीं रूकती है अतः सफ़र इतना उबाऊ नहीं था |


तारीख : 15 अगस्त 2015 दिन शनिवार
खैर हम लोग इसी तरह खाते पीते और खेलते हुए लगभग 28 घंटे का सफ़र पूरा करके दुसरे दिन यानी 15 अगस्त की शाम 6:30 बजे भुबनेश्वर पहुँच गए ! जैसा कि पहले ही तय हुआ था कि यहाँ से कोई टैक्सी आदि की व्यवस्था की जाए ! मैंने गाड़ी से उतर कर मम्मी पापा और अन्य सदस्यों को वहीँ प्लेटफ़ॉर्म पर एक स्थान पर बिठाया स्वयं यशू के साथ बाहर निकलकर टैक्सी वालों से बातचीत शुरू की | चूँकि हम लोग 6 बड़े और 2 बच्चे थे अतः किसी भी छोटी गाड़ी में हम सब एक साथ नहीं बैठ सकते थे इसलिए या तो कोई बड़ी गाड़ी जैसे स्कार्पियो आदि करते या टाटा मैजिक या मैक्सीमो का आप्शन था तो हमने एक मैक्सिमो चुनी जिसमे 8 लोगों के बैठने का पर्याप्त स्थान और सामान आदि रखने की पूरी व्यवस्था थी | काफी मोलतोल के बाद रू1000/- भाड़ा तय हुआ | और हम लोग पुरी के लिए लगभग 07:10 पर निकल पड़े ! भुवनेश्वर से पुरी 63 किमी है और सड़क मार्ग से लगभग 1 घंटा 20 मिनट का समय लगता है | 6 लेन के हाईवे पर आप अपनी स्वयं की गाड़ी से एक घंटे से भी कम समय में पहुँच सकते हैं | हम लोग लगभग 08:30 बजे पुरी पहुँच गए |
पुरी एक छोटा सा लगभग 5-6 किमी के रेडियस में बसा हुआ टाउन है जिसका मुख्य उद्योग पर्यटन ही है ! जगन्नाथ भगवान् के मंदिर वाली मुख्य सड़क को ग्रैंड रोड के नाम से जाना जाता है ! जब हम लोग पहुंचे थे तब एक समस्या बहुत बड़ी थी कि किसी भी सार्वजानिक वाहन को मंदिर के पास तक जाना मना था ! हम लोगों ने पहले यह सोचा कि बगड़िया धर्मशाला में रुका जाए पर बगड़िया तक कोई वाहन नहीं आ जा रहा था अतः मैंने एक स्थान पर सभी को रूकने को कहा और यशू को साथ लेकर किसी अच्छे धर्मशाला या होटल की खोज में निकल पड़ा ! थोड़े से प्रयास के बाद हमे टाउन थाना पुरी के ठीक सामने स्थित नीलाचल भक्त निवास एवं यात्री निवास में रहने का स्थान मिल गया ! यह होटल श्री जगन्नाथ मंदिर कार्यालय द्वारा ही संचालित है और काफी रियायती भी है ! हमने जो कमरा चुना था उसमे आपस में जुड़े हुए तीन कमरे थे जिनमे 3+3+1=7 बेड पड़े थे ! कमरे में दो बाथरूम थे जिनमे एक भारतीय और दूसरा पाश्चात्य शैली का शौचालय का था | किराया मात्र रू1050/- प्रतिदिन | होटल का पूरा विवरण निम्नवत है-

Nilachal Bhakt Niwas & Yatri Niwas
A unit of Shri Jagannath Temple Administration
  In front of Town Police Station Grand Road Puri-752001
Ph.06752-224561, 224562
Manager-Mr.P.K.Nanda
Mobile-09937689803, 09861444677



 सामान इत्यादि ठीक तरह से व्यवस्थित करते करते यह याद ही नहीं रहा कि रात के दस बजने को है | पर मुझे इतनी जल्दी नींद कहाँ आनी थी ! सभी लोगों ने साथ लाया हुआ खाना ही लिया पर मेरा मन अब कचौरी आदि खाने को नहीं था अतः मैं यशू के साथ बाहर निकला ! होटल से निकलते ही दायीं तरफ बगल में एक फ़ास्ट फ़ूड रेस्तरां “Pink n Blue” था और उससे जुड़ा हुआ एक मारवाड़ी बासा भोजनालय ! हम दोनो ने मारवाड़ी भोजनालय में जाकर दाल-चावल खाया और फिर निकल पड़े जगन्नाथ मंदिर तक पदयात्रा पर जिससे आसपास की स्थितियों का जायजा लिया जा सके ! सबसे बड़ी जानकारी जो चाहिए थी वो यह कि मम्मी को इस लगभग पौन किमी की दूरी तय करवाने के क्या साधन हो सकते हैं ? खैर पता यह लगा कि ट्रैफिक के सिपाही सुबह साढ़े छः के बाद ही सक्रिय होते हैं अतः उससे पहले ऑटो या साइकिल रिक्शा का प्रयोग मंदिर के बाहर तक किया जा सकता है | थोड़ा बहुत घूम कर हम लोग वापस आगये और होटल में आ कर सो गए ! सोने से पहले मैंने मम्मी-पापा से सुबह 5:30 तैयार होने को कह दिया जिससे मम्मी को जल्दी दर्शन करवाया जा सके ! अन्य लोग तो बाद में भी दर्शन कर सकते थे |
तारीख : 16 अगस्त 2015 दिन रविवार

मैं और मम्मी-पापा सुबह 6 बजे तैयार होकर भगवान् जगन्नाथ के प्रथम दर्शन के लिए निकलने ही वाले थे कि अचानक तेज़ मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी ! पर मैंने कहा कि यह मौका अच्छा है क्योंकि बारिश की वजह से अभी मंदिर में भीड़ कम होगी | अतः हमने वैसे ही तेज़ बारिश में निकलने का निश्चय किया ! मैं एक छाता लेकर बाहर आया और एक ऑटो वाले को आवाज़ दी और हम लोग उस ऑटो में बैठ कर मंदिर चल दिए | मंदिर पहुँचने पानी कुछ कम हो गया था पर इतना फिर भी था कि अन्दर तक पंहुचते पंहुचते हम पूरा भीग चुके थे |


जैसा कि आप इस चित्र में देख सकते हैं कि यह मंदिर का मुख्य द्वार है ! द्वार के सामने एक गरुण स्तम्भ है | कहते हैं कि जितनी ऊंचाई पर गरुण की मूर्ति इस स्तम्भ पर स्थापित है ठीक इसी ऊंचाई पर भगवान् जगन्नाथ की मुख्य प्रतिमा भी स्थापित है ! मंदिर में प्रवेश करते ही 22 सीढियाँ मिलती हैं | मैं धीरे-धीरे मम्मी को लेकर आराम से इन 22 सीढ़ियों को चढ़ा | अन्दर जाकर फिर चार पांच सीढियां है और तब आप प्रवेश करते हैं मुख्य मंदिर के अन्दर ! हम धीरे धीरे भीतर पहुंचे और भगवान् जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के नए विग्रहों के दर्शन किये ! कुछ देर वहां रुक कर हम बाहर आये | पानी अब फिर तेज़ी से बरसने लगा था अतः मम्मी को एक किनारे पर शेड में बैठा कर हम भी वहीँ रुक गए | थोड़ी देर वहां रुकने के पश्चात् जब पानी थोड़ा कम हुआ तब हम मुख्य मंदिर की परिक्रमा और उसी परिसर में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त अन्य मंदिरों के दर्शन हेतु निकले | मंदिर के पूरे विवरण के लिए आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते ! www.bharatdiscovery.org/India/जगन्नाथ_रथयात्रा | यहाँ एक बात गौर तलब है कि पुरी मंदिर के दर्शन करते समय वहां के पंडों और छोटे मंदिरों के पुजारियों से ख़ास सावधानी बरतने की जरूरत है वरना हर मंदिर में आप से चढ़ावे की मांग और बिना आपको बताये वो लोग संकल्प पढ़ देंगे और आपसे 200/- से 1000/- का चढ़ावा रखवा लेंगें ! यह लोग साथ आई स्त्रियों को बहुत भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने और डराने का प्रयास करते हैं ! अतः इनसे ख़ास सावधान रहने की आवयश्कता है ! तो हमने वहां स्थित अन्य मंदिरों जैसे  बिमला माता मंदिर, नील माधव मंदिर, सूर्य मंदिर, कांचीगणेश मंदिर, श्री लक्ष्मी मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर आदि के दर्शन किये | वहां मुख्य मंदिर के ठीक पीछे 5 फिट ऊंचाई का एक बेहद छोटा सा मंदिर है ! इसे एकादशी का मंदिर कहा जाता है | वहां एकादशी की एक प्रतीकात्मक उलटी मूर्ति स्थापित है | जैसा कि हम सब जानते हैं कि उत्तरभारत में एकादशी के दिन चावल न खाने की परंपरा है पर चूँकि भगवान् जगन्नाथ के मंदिर में साल के 365 दिन दाल-चावल का भोग लगता है अतः ऐसी मान्यता है कि कभी किसी विशेष एकादशी के अवसर पर स्वयं एकादशी ने आकर भगवान् को चावल खाने से रोका तब श्री कृष्ण ने उनकी अवहेलना करते हुए उन्हें वहां उल्टा लटकने का आदेश दिया | उसके बाद से ऐसी मान्यता है कि भगवान् जगन्नाथ के दर्शन के साथ इस एकादशी मंदिर के दर्शन करने वाल व्यक्ति के लिए किसी भी एकादशी में चावल त्याज्य नहीं है ! इन मंदिरों के दर्शन के पश्चात् हमने वहां के विशेष प्रसाद अटका भोज के लिए रू611/- की पर्ची भी कटवाई | यहाँ यह बात बताना बेहद जरूरी है कि भगवान जगन्नाथ मंदिर का एक बड़ा आकर्षण यहां की रसोई है। यह रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 500 रसोईए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं। मंदिर में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तनों को एक दूसरे पर रखा जाता है और लकड़ी पर पकाया जाता है. इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकते जाती है | मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है, चाहे कुछ हजार लोग हों या लाख, प्रसाद सभी लोगों को खिला सकते हैं | मन्दिर की रसोई में एक विशेष कक्ष रखा जाता है, जहाँ पर महाप्रसाद तैयार किया जाता है। इस महाप्रसाद में अरहर की दालचावल, सागदही व खीर जैसे व्यंजन होते हैं। इसका एक भाग प्रभु का समर्पित करने के लिए रखा जाता है तथा इसे कदली पत्रों पर रखकर भक्तगणों को बहुत कम दाम में बेच दिया जाता है। इसीलिए जगन्नाथ मन्दिर को प्रेम से संसार का सबसे बड़ा होटल कहा जाता है। मन्दिर की रसोई में प्रतिदिन बहत्तर क्विंटल चावल पकाने का स्थान है। इतने चावल एक लाख लोगों के लिए पर्याप्त होते हैं | तो हमने जो प्रसाद की रू611/- की पर्ची कटवाई थी वो दरअसल इसी महाप्रसाद के लिए थी | यहाँ यह बात भी बताने वाली है कि जो पैसा हमसे लिया जाता है वो उसका 1/2 हिस्सा मंदिर में दान के रूप में जाता है जिससे प्रतिदिन सैकड़ों लोग मुफ्त में भोजन पाते है और एक आधे हिस्से का महाप्रसाद आपको दिया जाता है | यह आप सुबह पैसा जमाकर शाम साढ़े पांच बजे स्वयं आकर ले सकते हैं या जिस कार्यालय से आपने प्रसाद बुक किया है वहां का प्रतिनिधि आपके होटल तक भी पंहुचा सकता है | खैर यह कार्य करते हुए हम मंदिर के बाहर आये ! अब तक लगभग 08 बज चुका था | बाहर निकल कर मैंने एक साइकिल रिक्शा पर मम्मी पापा को बैठाकर होटल भेज दिया और स्वयं पैदल टहलते हुए वापस होटल पंहुचा| अब चाय आदि पीने के बाद दीदी, मीतू, यशू और बच्चों को दर्शन के लिए ले जाना था | आभास था कि आज रविवार होने की वजह से अब तक काफी भीड़ हो चुकी होगी अतः देर भी हो सकती है इसलिए मैंने प्रस्ताव दिया कि कुछ नाश्ता आदि कर लिया जाये पर कोई भी व्यस्क नाश्ते के लिए तैयार नहीं हुआ अतः मैंने दोनों बच्चों को बगल वाले रेस्तरां में ले जाकर मसाला डोसा खिलाया | फिर हम लोग दर्शन के लिए निकल पड़े | इस बार मंदिर पंहुचने पर पता लगा कि हमें काफी लम्बी कतार और भीड़ से गुज़रना था पर अच्छी बात यह थी कि 9 बजे से 11 बजे तक 2 घंटे के लिए दर्शन एकदम मूर्ति के पास से होते हैं अतः यह कतार की भीड़ और धक्का मुक्की उतनी तकलीफदेह नहीं थी क्योंकि मन में पास से दर्शन करने की उमंग जो थी | बारिश अब भी हो रही पर हम सब उत्साह में जय जगन्नाथ का उद्घोष करते हुए मंदिर में प्रवेश कर गए | इस बार जो दर्शन हुए तो लगा साक्षात् गिरधर गोपाल मेरे सामने खड़े हों ! मन प्रसन्न हो गया ! पत्नी की आँखों से तो ख़ुशी के आंसू छलक पड़े ! खुश हम सभी लोग थे और इसी प्रसन्नता के साथ हम बाहर निकल आये ! बाहर आकर हमने अन्य मंदिरों के दर्शन किये और फिर वापस चल पड़े ! रास्ते में सबने इडली सांभर का नाश्ता किया और मम्मी पापा के लिए आलू-चाप खरीदे | होटल वापस पहुँच कर हम सबने आराम किया | पुरी यदि आप मार्च से अक्टूबर के बीच जा रहे हैं तो दोपहर के 12 से शाम 4 तक आपको होटल में रहना उचित होगा क्योंकि बाहर काफी उमस वाली गर्मी होती है ! तो हम भी सिर्फ दोपहर का खाना खाने बाहर आये और फिर जाकर होटल में सो गए ! शाम को 5 बजे हम सब तैयार होकर समुद्र दर्शन के लिए निकल पड़े | हमारे होटल से समुद्र तट तक जाने का ऑटो का किराया लगभग 60-80 रू था | पुरी का समुद्रतट बहुत अच्छा है | गज़ब की लहरें है | हमने वहां एक स्थान पर मम्मी को बिठाया और चप्पलें आदि उतार कर आगे बढ़ गए | अचानक से एक तेज़ लहर हम सबको कमर तक भिगोते हुए हमारी चप्पलें बहा ले गई ! बड़ी मशक्कत के बाद हमे सारी चप्पलें मिल पायी | समुद्रतट पर करीब दो घंटे मस्ती करने के पश्चात् हम वापस होटल आ गए | थोड़ी ही देर बाद जो भगवान् जगन्नाथ का महा-प्रसाद हमने सुबह बुक किया था वो लेकर मंदिर का एक पंडा हमारे होटल पहुँच गया | वहीँ पास की एक दूकान से मैं पत्तल खरीद लाया और हम सबने उस महाप्रसाद को ग्रहण किया| एक बड़ी सी मटकी में चावल, और दो छोटी मटकियों में दाल और सब्जी थी | प्रसाद बेहद स्वादिष्ट था | आत्मा तृप्त हो गयी | भगवान का प्रसाद खाकर हम सब सोने के हुए ! तो इस प्रकार भगवान् जगन्नाथ के दरबार में हमारा पहला दिन समाप्त हुआ !

तारीख : 17 अगस्त 2015 दिन सोमवार
दुसरे दिन सुबह हम सब एक बार फिर एक बार भगवान् जगन्नाथ के दर्शन हेतु गए ! वहां से लौटते समय हमने बाज़ार देखा ! आज का मुख्य कार्यक्रम पुरी में ही स्थिति अन्य दर्शनीय स्थलों में घूमना था ! इसके लिए हमने एक बड़ी ऑटो तय कर ली | पुरी में अन्य दर्शनीय स्थलों में मुख्यतः चन्दन तालाब, जनकपुरी, राम मंदिर, लोकनाथ मंदिर, गुण्डिचा मंदिर, हनुमान पुरी, नरसिंहदेव मंदिर और शंकराचार्य भवन है | यदि आप इन सभी जगहों पर घूमने जायेंगे तो लगभग 6 से 7 घंटे का समय लगेगा | यह पूरी यात्रा 2 साइड कहलाती है | इसका किराया लगभग 600-800 रू है और यह आपके मोल-तोल करने की क्षमता पर भी निर्भर है | चूँकि इस दिन सावन का सोमवार होने के कारण हम सब का व्रत था और धूप भी बहुत तेज़ थी अतः हमने सिर्फ एक साइड का प्रोग्राम रखा जिसका किराया 350/-रू तय हुआ | तो हम चन्दन तालाब, जनकपुरी, राम मंदिर, और नरसिंहदेव मंदिर के दर्शन करके करीब 1 बजे होटल वापस आ गए | शाम के समय हम फिर समुद्रतट का आनंद लेने गए और लौट कर बाज़ार घूमने और खरीदारी करने में काफी समय चला गया | हमारे होटल से मंदिर के बीच काफी अच्छी बाज़ार थी | पुरी में शंख बहुत अच्छे मिलते हैं पर असली और नकली शंखों की पहचान बहुत जरूरी है | असली शंख अर्धपारदर्शी (Transluscent) होता है अर्थात तेज़ रौशनी उसके आर-पार जा सकती है जबकि नकली POP से बने शंख अपारदर्शी (Opaque) होते हैं | हमें चार शंख खरीदने थे अतः मोलतोल की बेहद लम्बी प्रक्रिया के बाद हमने बड़े आकर के चार शंख रू 500/- प्रति शंख के हिसाब से 2000/- में खरीदे |  पुरी की एक विशेष चीज़ यहाँ का खाजा है ! खाजा एक मिठाई होती है जो संभवतः मैदे की कई पर्त वाली पापड़ी को शक्कर में पगा कर बनाई जाती है | वैसे तो आपको पुरी में मंदिर के आसपास हर जगह खाजा बिकता दिखाई देगा पर सबसे अच्छी क्वालिटी का खाजा समुद्रतट के पास एक प्रसिद्ध मिठाई की दुकान काकातुआ (KAKATUA) के यहाँ मिलता है | आप समुद्रतट से पैदल भी काकातुआ की दुकान जा सकते हैं या जिस वाहन से समुद्र तट तक जा रहे हैं उसे बोल देंगे तो वो भी आपको काकातुआ की दुकान तक पंहुचा देगा | यात्रा से लौट कर प्रसाद में बांटने के लिए यह बेहद अच्छी और स्वादिष्ट वस्तु है ! तो हमने चार किलो खाजा भी खरीदा | खरीदारी आदि करके हम लोगों ने बगल वाले रेस्तरां में जाकर खाना खाया और होटल जाकर विश्राम किया | इस प्रकार पुरी में हमारा दूसरा दिन समाप्त हुआ |

तारीख : 18 अगस्त 2015 दिन मंगलवार

पुरी की यात्रा में हमारा तीसरा और अंतिम दिन था | इस दिन का कार्यक्रम एक दिन पहले ही बन चुका था | पुरी से बस या टैक्सी द्वारा एक 12 घंटे का टूर पैकेज मिलता है | बस द्वारा जाने पर 180/- से 240/- प्रतिव्यक्ति किराये पर जाया जा सकता है | पर यदि आप के साथ यात्रियों की संख्या 5 या उससे ज्यादा है तो बस के बजाय अपनी सुविधा और सामर्थ्य के अनुसार आप इंडिका, इन्नोवा या टवेरा इत्यादि बुक कर सकते हैं | इंडिका लगभग 1300/- और टवेरा या इन्नोवा 2200/- में मिल जाती हैं | यह टूर सुबह 7 से 7:30 के बीच शुरू होता है और शाम को 6:30 से 7 के बीच पुरी में ही आकर ख़त्म होता है | इसमें आपको चंद्रभागा समुद्रतट, कोणार्क का सूर्य मंदिर, धवल गिरी का बौद्ध मंदिर, भुबनेश्वर का लिंगराज मंदिर, केदार गौरी, उदय गिरी, खंडगिरी की पहाड़ियां एवं जैन मंदिर और अंत में नंदन कानन चिड़ियाघर ले जाया जाता है | सोमवार के दिन नंदन कानन बंद रहता है अतः इस टूर का कार्यक्रम सोमवार को न बनाये | हमने अपने लिए एक दिन पहले ही रू2200/- में एक टवेरा बुक कर ली थी | सुबह मम्मी का एक बार फिर मंदिर जाने का मन हुआ अतः मम्मी, मीतू और दीदी सुबह तड़के ही मंदिर चली गयी | मैं बच्चों के साथ होटल में रुका रहा | उनके लौटने के बाद हमने चाय पी और फिर यात्रा पर निकल पड़े | वहां से एक एक स्पॉट से होते हुए हम शाम को पुरी वापस पंहुचे | इस प्रकार पुरी में हमारा तीसरा दिन भी समाप्त हुआ | हमारी ट्रेन पुरुषोत्तम एक्सप्रेस रात 9:45 पर थी अतः होटल में एक घंटा आराम करने के बाद हमने बगल के रेस्तरां में खाना खाया और फिर भगवान जगन्नाथ की जय बोलते हुए वापस चल पड़े | इस प्रकार पुरी में हमारे तीन दिन पूरे हुए | 

3 comments:

Akhilesh said...

बेहद रोचक एवं जानकारी वर्धक यात्रा वृत्तांत लिखा है. ऐसा लगा की मैं भी पुरी की यात्रा ही कर रहा हूँ.

Unknown said...

अति सुन्दर

Bindesh kumar said...

बहुत सुन्दर

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