मत लेना तुम मेरा नाम !
तुम्हें सैकड़ों काम पड़े हैं, तुम अतिव्यस्त जगत के प्राणी !
कैसे तुम्हें सुनाऊँ अपने, अंतर्मन की करूण कहानी !
मेरा जीवन काँटों जैसा, तुम फ़ूलों से ज्यादा कोमल,
तुम जैसे निर्मल गंगा हो, मैं बारिश का बहता पानी,
अपना जगमग शहर संभालो, छोड़ो मेरा उजड़ा ग्राम !
मत लेना तुम मेरा नाम !
बड़े बड़े हैं ख़्वाब तुम्हारे, और बड़ा सा एक संसार ;
मेरे सपने लाश हो गए, जिन्हें न मिलते कन्धे चार ।
तुम्हें सुलभ हैं सब सुख साधन, मैं श्रमजीवी कृषक समान,
तुम जैसे अतिशीघ्र सफलता, मैं जैसे बिकता व्यापार !
मैं क्या हूँ अब तुम मत सोचो, तुमको मुझसे अब क्या काम !
मत लेना तुम मेरा नाम !
:::::अम्बेश तिवारी
18.05.2016