Friday, October 25, 2013

“आप इस्तीफ़ा मत देना पी एम साहब”

आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
न चाहते हुए भी आज आपको यह पत्र लिख रहा हूँ | वैसे यह पत्र लिखने का मेरा उद्देश्य आपके पद की गरिमा को कम करना नहीं है मैं आज भी आपका उतना ही सम्मान करता हूँ, जितना तब करता था जब लोग आपको ईमानदार मानते थे| वैसे आप लोगों पर मत जाइए लोगों का क्या है वो तो कुछ भी मान लेते हैं| कभी आसाराम को भगवान् मानते थे और आज पता नहीं क्या क्या मानते हैं| जिन नरेन्द्र मोदी को आपकी पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गाँधी जी ने मौत का सौदागर कहा था आज जनता उनको होने वाला प्रधानमंत्री मान रही है | नॉन सेन्स पीपुल !
वैसे कल आपका हवाई जहाज से दिया हुआ बयान बहुत धांसू था कि मैं कानून से ऊपर नहीं और मैं सीबीआई का सामना करने को तैयार हूँ| आप बोलते बहुत अच्छा हैं! यह बात अलग है कि आज कल आप हवाई जहाज में ज्यादा बोल रहे हैं और ज़मीन पर कम बोलते हैं| हो सकता है कि आपको हवा में रहना ज्यादा अच्छा लगता हो पर  यह जानकार अच्छा लगा कि आपके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है वैसे बात भी सही है जो कुछ आपने और आपकी सरकार ने पिछले 9 साल में किया है वो सब तो भले देर से ही सही पर जनता के सामने आ चुका है तो अब आप क्या छिपाएंगे?
चलिए आपको थोडा सा पास्ट में ले चलते हैं| अगस्त 2012 में जब यह कोयला घोटाला सामने आया था और बीजेपी आपसे इस्तीफा मांग रही थी तब संसद भवन से बाहर निकलते समय आपने पत्रकारों के सामने यह शेर पढ़ा था
हजारों जवाबों से अच्छी मेरी ख़ामोशी है,
न जाने कितने सवालों की इसने आबरू रखी है

तब भी आपने यही कहा था मेरे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है पर एक साल बाद पता लगा कि फाईलें ही गायब हो गयी | चलिए कोई बात नहीं आप कोई चौकीदार थोड़ी हैं जो फाईलों को ताकते रहे, यही कहा था न आपने राज्यसभा में?
 पर आजकल आपका मूड देख कर लग रहा है कि हालात कुछ ठीक नहीं हैं कहीं आप इस्तीफा देने का मूड तो नहीं बना रहे हैं ?
 प्लीज़! सर ऐसा मत कीजियेगा! अब इस्तीफा देने का कोई तुक नहीं बनता हैं| जब पिछले नौ साल से बीजेपी सिर्फ आपका इस्तीफा ही मांगती रही और आप सहन करते रहे| आपके बारे में अगर गूगल पर सर्च कर लो तो पता नहीं कैसे कैसे कार्टून और जोक्स निकल कर सामने आते हैं पर आप वो भी सहन कर लेते हैं| कहीं पढ़ा था कि जब आप योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे और राजीव गाँधी ने योजना आयोग के सदस्यों को Bunch of Jokers कहा था तब आप इस्तीफा देने को तैयार हो गए थे पर फिर समझाए जाने पर आपने राजीव गाँधी को माफ़ कर दिया था और अपना अपमान सहन कर लिया| आपको संसद के अन्दर नारे लगा लगा कर प्रधानमंत्री चोर है कहा गया, उस दिन बायगॉड आप गुस्सा तो बहुत हुए पर आपने वो भी सहन कर लिया| आपके हस्ताक्षर किये हुए अध्यादेश को आपकी पार्टी के उपाध्यक्ष ने बकवास कह कर फाड़ने वाला बता दिया पर आपने वो अपमान भी सहन कर लिया|
 वैसे आपके इतने अपमान हुए हैं कि यह अनुमान लगाना थोडा सा मुश्किल है कि कौन सा वाला अपमान इस्तीफा देने के लायक था| अब जब आपने इतने दिन सहन किया है तो अब तो बहुत थोड़े दिन रह गए हैं सर अब अपना कार्यकाल पूरा करके जाईये| इज्जत तब भी नहीं मिली थी और अब भी नहीं मिलेगी| लेकिन इस देश में प्रधानमंत्री की इज्जत हो या न हो भूतपूर्व प्रधानमंत्री की जरूर होती है|
 इसलिए जस्ट एन्जॉय! और बाय बाय
 आपका
 एक आम आदमी (अरविन्द केजरीवाल की पार्टी वाला आम आदमी नहीं!) 

Thursday, October 24, 2013

आप बहुत याद आयेंगे "मन्ना दा"



आज सुबह सुबह एक बुरी खबर सुनने को मिली कि हम सबके चहेते महान गायक मन्ना डे अब हमारे बीच नहीं रहे | सुन कर काफी दुःख हुआ ! यूँ तो वो काफी लम्बे समय से बीमार थे पर फिर भी उनके जैसा गायक हजारों में एक ही होता है |

मन्ना डे का नाम आते ही कुछ बेहतरीन नगमे कानों में गूंजने लगते हैं | 1955 में बनी फिल्म सीमा में बलराज साहनी पर फिल्माया और शंकर जयकिशन का संगीतबद्ध किया हुआ गीत "तू प्यार का सागर है" हो या अशोक कुमार पर फिल्माया मेरी सूरत तेरी आँखें फिल्म का गीत "पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई" या आनंद का "ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय" या पड़ोसन का "एक चतुर नार " और भी न जाने कितने अनगिनत नगमे ..............

काबुलीवाला का "ऐ मेरे प्यारे वतन" अगर 15 अगस्त और 26 जनवरी को न सुने तो लगता है कुछ कमी रह गयी और आज भी जब मन इस दुनिया की झंझटों से उब जाता है और परेशान होता है तो अक्सर मोबाइल पर फिल्म उपकार का "कसमे वादे प्यार वफ़ा सब" सुन कर मन को हल्का कर लेता हूँ | 

"ऐ मेरी जोहरा ज़बीं" और "यारी है ईमान मेरा" जैसी कव्वालियाँ किसी भी महफ़िल में हमेशा चार चाँद लगाती रही हैं"

वो मन्ना डे ही थे जिन्होंने कहा था "सुर न सजे क्या गाऊँ मैं " पर मन्ना दा के सुर हमेशा सजे और रफ़ी, मुकेश और किशोर जैसे दिग्गजों के बीच शास्त्रीय गायक के रूप में उनकी पहचान हमेशा बनी रही | 

उनके गीत हमेशा हमारे दिलों पर राज करते रहेंगे | ये शब्द सिर्फ श्रद्धांजलि के शब्द नहीं है ये मेरे मन के शब्द हैं जो मन्ना डे के जाने से बेहद दुखी है !

“व्हाट इज इन द नेम”

शेक्सपियर ने यह वाक्य कब और किस सन्दर्भ में कहा था ये तो वो ही जाने (हालांकि ये वाक्य जहाँ भी लिखा होता है उसके नीचे उनका नाम William Shakespeare जरूर लिखा होता है),  पर जब उन्होंने यह बात कही होगी तब उन्हें इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं होगा कि आने वाले समय में इसी नाम का लोग कितना फ़ायदा उठाने वाले हैंक्या वाकई नाम इतना महत्वपूर्ण होता है ? मैं तो कहता हूँ बिलकुल होता हैअगर होता तो हमारे गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में यह क्यों लिखते-

क्रोध पावक जर सकेमन समुद्र समाय |
पुत्र अबला कर सके , नाम कालहि खाय ||

वास्तव में अगर गौर करें तो नाम क्या है ? क्या नाम सिर्फ हमारी पहचान का प्रतीक है या उस से भी बढ़ कर कुछ और ? मान लीजिये मेरा नाम अम्बेश तिवारी होताकुछ और होता तो क्या कोई फर्क पड़ता ? चलिए मेरी बात छोड़ दीजिये मैं तो आम आदमी हूँ (अरविन्द केजरीवाल की पार्टी वाला आम आदमी नहीं नार्मल आम आदमी) पर मुझे लगता है कि नाम हमारे जीवन बहुत अधिक महत्व रखता हैजैसे उदाहरण के लिए बचपन में कई वर्षों तक मैं यही समझता था कि मम्मी जिस चीज़ में पूड़ी या पराठा बनाती हैं वो डालडा हैबाद में पता चला कि यह वनस्पति घी है जिसे डालडा नामक एक ब्रांड के नाम से बेचा जाता है | डबल रोटी या ब्रेड को आज भी बहुत से पुराने लोग मॉडर्न कह कर बुलाते हैं | नूडल्स आज भी सिर्फ मैग्गी ही है और भी बहुत सी ऐसी चीज़ें है जिनका ब्रांड का नाम आज भी मूल उत्पाद से अधिक प्रचलित है जैसे फेविकोल एक आसंजक (चिपकाने वाला पदार्थ अंग्रेजी में Adhesive) है यह कितने लोग जानते है ?

पर जानना चाहिए और इन उत्पादों की वास्तविकता को समझना और परखना चाहिए क्योंकि यह हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं और कई बार इसी ब्रांडिंग का सहारा लेकर सत्तारूढ़ दल सत्ता  में वापसी का रास्ता भी तलाश करते हैं |

इसका सबसे ताजा उदाहरण है कि केंद्र की यूपीए सरकार अब तक की सबसे बड़ी कल्याणकारी योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा का नामकरण इंदिरा गांधी के नाम करने पर विचार कर रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि छह लाख करोड़ रुपये से अधिक की यह योजना पार्टी की छवि को चमका देगी और पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों तथा इसके बाद लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को इसका लाभ मिलेगा। सरकार इस योजना का नाम इंदिराम्मा अन्न योजना रखने पर विचार कर रही है। अगर कांग्रेस पार्टी अपनी योजना में सफल हो जाती हैतो यह किसी भी राजनीतिक दल द्वारा वोट बैंक पर मारा गया सबसे बड़ा धावा होगा। कांग्रेस ने सार्वजनिक धन को अपने नेताओं की छवि चमकाने और चुनावी लाभ हासिल करने में लगाने के तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। पार्टी ने पहले ही सुनिश्चित कर रखा है कि तमाम प्रमुख सरकारी योजनाएंपरियोजनाएं और संस्थानों के नाम नेहरू-गांधी परिवार-राजीवइंदिरा और नेहरू के नाम पर रहें। इससे चुनाव में कांग्रेस को लाभ मिलता हैलेकिन अभी तक किसी भी अधिसत्ता या एजेंसी ने सार्वजनिक धन के इस बेहूदा दुरुपयोग पर सवाल नहीं उठाए। अगर हम अपने आस पास नज़र डाले तो पाएंगे कि कुल मिलाकर 450 से अधिक केंद्रीय और प्रादेशिक कार्यक्रमोंपरियोजनाओं और संस्थानों का नामकरण कांग्रेस पार्टी के तीन नेताओं के नाम पर किया जा चुका है। इनमें शामिल हैं 28,000 करोड़ रुपये की राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजनाइससे भी अधिक राशि वाला राजीव गांधी पेयजल मिशन, 7,000-10,000 करोड़ रुपये की इंदिरा आवास योजना और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय बुजुर्ग पेंशन योजना आदि। पिछले दो दशकों में जवाहरलाल नेहरू के नाम पर जवाहरलाल नेहरू रोजगार योजना और जवाहरलाल नेहरू रिन्यूएबल मिशल योजनाएं चल रही हैं। जवाहरलाल नेहरू रिन्यूएबल मिशन में सात साल के दौरान 50,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होंगे। नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर अन्य योजनाओं में राजीव गांधी नेशनल क्त्रेच स्कीम फॉर चिल्ड्रन ऑफ वर्किंग मदर्सराजीव गांधी उद्यमी मित्र योजनाराजीव गांधी श्रमिक कल्याण योजना और राजीव गांधी शिल्पी स्वास्थ्य बीमा योजना शामिल हैं। इस सूची में हालिया योजना है राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम। यहां तक कि दलित छात्रों के लिए छात्रवृत्तियोजना भी राजीव गांधी के नाम पर है। दलित छात्रों के लिए छात्रवृत्तियोजना का नामकरण राजीव गांधी के नाम पर करने का क्या तुक हैइस वर्ग के नागरिकों के उत्थान में राजीव गांधी का क्या योगदान है?

मतलब यह कि उनके नाम की ब्रांडिंग हर व्यक्ति तक किसी किसी रूप में पहुंच जाए। नवजात शिशुक्रेज में जाने वाले छोटे बच्चेस्कूल में पढ़ने वाले बच्चेकॉलेज में जाने वाले युवागर्भवती महिलाएंकारखानों के कामगारकारीगरस्टॉक मार्केट के खिलाड़ीवरिष्ठ नागरिक यानी समाज के हर वर्ग के लोगों के दिलो-दिमाग में गांधी-नेहरू परिवार का नाम जम जाए। जैसे ही खाद्यान्न योजना का नामकरण इंदिरा गांधी के नाम पर हो जाएगानेहरू-गांधी परिवार बड़ी कुशलता के साथ एक नागरिक के जीवन के हर पहलू से अपने ब्रांड को जोड़ने में सफल हो जाएगा। इसका मतलब कुछ इस तरह होगा- आप जैसे ही एक घूंट पानी पिएं राजीव को याद करेंरोटी खाते हुए इंदिरा गांधी को याद करेंमकान बनाते समय एक बार फिर इंदिरा गांधी का स्मरण करें। घर में बल्ब जलाएं तो राजीवबुजुर्ग पेंशन लें तो इंदिराबस पकड़े तो नेहरूक्रेश में बच्चा छोड़ें तो राजीव गांधी को याद करें।

कांग्रेस को लगता है कि इस नाम की ब्रांडिंग के बल पर वह हमेशा वोट बैंक को बढ़ाती रहेगी। पर क्या इस बार जनता इनके झांसे में आएगी

चलिए छोड़ देते हैं इस सवाल को भविष्य के लिए और फिलहाल हम लोग इस बात की फिक्र करें कि मतदाता सूची में हमारा नाम है या नहीं है ?

हाँ और ब्लॉग के अंत में मैं अपना नाम जरूर लिख दूंगा ताकि सबको याद रहे...........


आपका अपना 

अम्बेश तिवारी 


मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

  मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया ! स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र ...