Sunday, October 16, 2016

हुनरमंदी चन्द सिक्कों में सिमटती जा रही हैं

हुनरमंदी चन्द सिक्कों में सिमटती जा रही हैं,

ख़्वाहिशें कम हो रहीं हैं, उम्र बढ़ती जा रही है। 

मैं कहीं राजा, कहीं जोकर, कहीं बनता ग़ुलाम,

ज़िन्दगी यह ताश के पत्तों सी बंटती जा रही है। 

मैं किताबों में कहीं खोया था, बस यह सोचकर,

याद कर के वो मुझे, पन्ने पलटती जा रही है। 

वक़्त बदलेगा कभी मेरा इसी उम्मीद में, 

धीरे धीरे अब मेरी सूरत बदलती जा रही है। 

बैल-कोल्हू की तरह अपनी धुरी में घूमता मैं,

ज़िंदगी बस बेक़रारी में गुजरती जा रही है। 


एक सैनिक की अभिलाषा !

मुझे न देना धन और दौलत या कोई सम्मान,
बस इतनी सी ख्वाहिश पूरी करना हे भगवान !
मन में कुछ अभिलाषाएं हैं, दिल में हैं अरमान,
बस आगे ही आगे बढ़ता जाए हिंदुस्तान !
हो सबसे आगे हिन्दुस्तान,
यह अपना प्यारा हिन्दुस्तान ।
हो सबसे आगे हिन्दुस्तान,
यह अपना प्यारा हिन्दुस्तान ।

1.
घर से निकले जब बेटी तब,
कोई डर न सताये ।
कभी न मन घबराये !
उसके सुन्दर चेहरे पर
तेज़ाब न डाला जाये,
तेज़ाब न डाला जाये !
फिर दहेज़ के लालच में,
कोई बहू जलाई न जाये,
कोई बहू जलाई न जाये ।
और किसी कन्या की हत्या,
गर्भ में न हो जाये,
गर्भ में न हो जाये ।
आज बेटियां बढ़ा रही हैं
अपने देश की शान,
देश की हर एक नारी का
हमें करना है सम्मान !
तभी तो बनेगा देश महान,
हो सबसे आगे हिन्दुस्तान !

2.
देश तरक्की करे, चाँद तक,
क्या मंगल तक जाये,
कोई रोक न पाये ।
याद रहे पर धरती पे कोई,
भूखा न रह जाये ।
भूख से न मर जाये !
भ्रष्टाचार, अशिक्षा, बेकारी
को दूर भगायें !
आओ हाथ बढ़ाएं
निर्मल भारत के सपने को,
मिलकर सत्य बनायें,
आओ वृक्ष लगायें !
जितना सेवा करता सैनिक,
उतनी करे किसान,
अगर देश की शक्ति है सैनिक,
तो है नींव किसान !
के दोनों से है हिन्दुस्तान !
यह अपना भारत देश महान !

3.
जब हम हों सीमा पे डटे,
तब शहर में दंगा न हो,
घर में दंगा न हो !
जाति धर्म के नाम पे
अपमानित यह तिरंगा न हो !
घर में दंगा न हो !
धर्म के ठेकेदारों के बहकावे में मत आना,
तुम कहीं बहक न जाना,
प्यार मोहब्बत की धरती पर
नफरत मत उपजाना,
तुम कहीं बहक न जाना ।
कहीं न फाड़ी जाए गीता,
कहीं जले न कुरआन,
राम के घर में ईद मने,
होली खेले रहमान ।
बनेगा तब यह देश महान,
हो सबसे आगे हिन्दुस्तान ।
मुझे न देना धन और दौलत या कोई सम्मान,
बस इतनी सी ख्वाहिश पूरी करना हे भगवान !
हो सबसे आगे हिन्दुस्तान ।
हो सबसे आगे हिन्दुस्तान ।

::
अम्बेश तिवारी

Monday, September 26, 2016

मत परखियेगा लिबासों से किसी मेहमान को !

मत परखियेगा लिबासों से किसी मेहमान को,
आप ठुकरा ही न दें शायद कभी भगवान को !
मुश्किलों के दौर में जिस शख्स ने की हो मदद,
भूलियेगा मत कभी उस दोस्त के अहसान को !
नासमझ बनता रहा लफ्जों-नज़र से जो मेरी,
रोज़ ख़त लिखते रहे, हम भी उसी नादान को !
बढ़ गया रुतबा हमारा दौलतो-असबाब से,
बस ग़नीमत है यही भूले नहीं ईमान को !
वो मुकद्दस इश्क़ मेरा दर्द बनकर रह गया,
पास दिल के रख लिया उस कीमती सामान को
सांस में अब भी समाई है उसी की जो महक,
हर जगह पर ढूंढ़ते हैं बस उसी पहचान को !
जी यही करता हमारा छोड़ कर इस महल को,
ख़ोज लायें उस पुराने टूटते दालान को !
इंतिहा ये भी हुई है इश्क़ में "अम्बेश" अब,
मौन रहकर मान लेतें हैं सभी फरमान को !

::::
अम्बेश तिवारी "अम्बेश"

Friday, September 16, 2016

ज़ुबाँ पे बंदिश नहीं मगर जज़्बात पे पहरेदारी है !

ज़ुबाँ पे बंदिश नहीं मगर, जज़्बात पे पहरेदारी है,
सच कहना और सच लिखना अब बहुत बड़ी फनकारी है ।
राम कहे न ईद मुबारक, अनवर होली न खेले,
मज़हब के ठेकेदारों का फिर से फतवा जारी है ।
अजब सियासत का यह मौसम, कोयल है चुपचाप खड़ी,
क्योंकि गीत सुनाना अब मेंढ़क की जिम्मेदारी है ।
अब भी यूँ खामोश रहे तो, यह बर्बादी निश्चित है,
आज पड़ोसी का घर उजड़ा, कल अपनी भी बारी है ।
अपने घर का सूरज क्यों सारी दुनिया में रोशन है,
बस इतनी सी बात पे हर एक जुगनू का मन भारी है ।

:::::
अम्बेश तिवारी

Friday, September 9, 2016

कारवाँ ज़िन्दगी का यूँ चलता रहा !

एक ग़ज़ल की कोशिश -

कारवाँ ज़िन्दगी का यूँ चलता रहा,
जग गिराता रहा, मैं संभलता रहा ।
उसके बिन उम्र ऐसे कटी बेखबर,
रात ढलती रही, दिन निकलता रहा ।
राह में कितने शोले और अंगार थे,
पाँव जलते रहे पर मैं चलता रहा ।
मैंने जिस पर भरोसा किया बेपनाह,
मुझको हर मोड़ पर वो ही छलता रहा ।
उसने कपड़ों के जैसे ही रिश्ते चुने,
वक़्त के साथ रिश्ते बदलता रहा ।
वो दगा दे के मुझको चला भी गया,
मैं खड़ा देखता हाथ मलता रहा ।
आप रोशन हुए एक शमा की तरह,
मोम बन कर मगर मैं पिघलता रहा ।
जिसकी राहों में मैंने गुज़ारे थे दिन,
मुझसे बचकर वो राहें बदलता रहा ।
है अँधेरा बहुत सब यह कहते रहे,
मैं मगर एक दिया बनके जलता रहा ।

::::
अम्बेश तिवारी

Tuesday, August 30, 2016

यह दिल के राज़ इशारों में बताया करिये !

खुली आँखों को कोई ख्वाब दिखाया करिये,
कभी आँधी में चरागों को जलाया करिये ।
यूँ सरेआम मोहब्बत की न बातें करिये,
यह दिल के राज़ इशारों में बताया करिये ।
फ़ुर्क़त-ए-इश्क़ में रोना सभी को आता है,
किसी की बेबसी पे अश्क बहाया करिये ।
सिर्फ मस्जिद में इबादत नहीं हुआ करती,
कभी गरीब की बस्ती में भी जाया करिये ।
खिलखिलाने से हुस्न पर निखार आता है,
देख कर हाल मेरा खुद को हँसाया करिये ।
वो न मन्दिर में रहेगा न किसी मस्जिद में,
ख़ुदा को अपनी ज़ेहनियत में बसाया करिये ।
बहुत उम्दा न सही, हम भी ग़ज़ल कहते हैं,
कभी महफ़िल में हमें भी तो बुलाया करिये ।

:::::

अम्बेश तिवारी

Sunday, August 21, 2016

हवा के संग संग गीत सुनाना अच्छा लगता है !

हवा के संग संग गीत सुनाना अच्छा लगता है,
तारे गिन गिन रात बिताना अच्छा लगता है ।
वो बोलीं इस बारिश में एक रेनकोट ले लो,
हम बोले हमें भीग के आना अच्छा लगता है !

कोई भुला न पाया अपने बचपन वाले खेल,
कंचे, लूडो, गुल्ली डंडा, पटरी वाली रेल,
क्लास के बाहर मुर्गा बनना, रोज़ मार खाना,
नकल मार कर पेपर लिखना या हो जाना फेल ।
बारिश में भी पतंग उड़ाना अच्छा लगता है,
उनसे नज़र के पेंच लड़ाना अच्छा लगता है ।
हवा के संग संग गीत सुनाना अच्छा लगता है,
तारे गिन गिन रात बिताना अच्छा लगता है ।

मोती झील की सैर सुहानी, माल रोड की चाट,
अब भी याद आती है उनसे पहली मुलाक़ात ।
छुप छुप मिलना, बातें करना लव लैटर देना,
वो रीगल में फ़िल्म देखना, DDLJ साथ,
हमको अब तक वही ज़माना अच्छा लगता है,
उनकी गली में आना जाना अच्छा लगता है ।
हवा के संग संग गीत सुनाना अच्छा लगता है,
तारे गिन गिन रात बिताना अच्छा लगता है ।

जब से शादी हुई रात दिन बन गए कोल्हू बैल,
याद रह गया सब्जी, भाजी, राशन, नून और तेल,
महंगाई में आटा गीला, पतली हो गयी दाल,
पत्नी से प्रतिदिन का झगड़ा, जैसे कोई खेल ।
बिना बात के बहस लड़ाना अच्छा लगता है,
जब वो रूठे उन्हें मनाना अच्छा लगता है ।
हवा के संग संग गीत सुनाना अच्छा लगता है,
तारे गिन गिन रात बिताना अच्छा लगता है ।
वो बोलीं इस बारिश में एक रेनकोट ले लो
हम बोले हमें भीग के आना अच्छा लगता है !

:::::अम्बेश तिवारी "अम्बेश"

Sunday, August 14, 2016

माँ ने मुझे इंसान को पढ़ना सिखा दिया !

1

कैसे भी मुश्किलात हों लड़ना सिखा दिया,
ठोकर लगे तो गिर के संभलना सिखा दिया ।
अब मुझको ज़माने के तौर हो गए मालूम,
माँ ने मुझे इंसान को पढ़ना सिखा दिया !
दो वक़्त की रोटी तो थी पहले भी कमाई,
कैसे हो बरक्कत मुझे करना सिखा दिया !

2

तेरे बिन यह शहर कितना अज़ीब लगता है,
चाहने वाला भी मुझको रक़ीब लगता है,
जिनके सर पे है उनकी माँ का साया अब मुझको,
ऐसा हर शख्स बड़ा खुशनसीब लगता है !

Thursday, August 11, 2016

कुछ मुक्तक -

कुछ मुक्तक -

1.
सावन में बादलों के आँसू निकल रहे हैं,
जैसे धरा से मिलने को वो मचल रहे हैं ।
जब से हुई मोहब्बत दोनों का हाल यह है,
तुम भी फिसल रहे हो, हम भी फिसल रहे हैं ।

2.

जो दोस्त अपना हमको कब से बता रहीं थीं,
पैसे भी हमारे वो जम कर उड़ा रहीं थीं ।
पहुँचे जब उनके घर पर इज़हारे इश्क़ करने,
डोली में बैठ कर वो ससुराल जा रहीं थीं !

3
इस दिल में मोहब्बत के कुछ दीप जल न पाये,
तुमने की बेवफाई, और हम संभल न पाये।
दुनिया बदल गई है, मौसम बदल गए हैं,
तुम भी बदल गए हो, पर हम बदल न पाये ।

4

तुमने तो समझा जुगनू, महताब बन गया मैं,
तेरे सभी सवालों का जवाब बन गया मैं ।
तुमने बिना पढ़े ही ठुकरा दिया था जिसको,
अब पढ़ रहा ज़माना वो किताब बन गया मैं !

5

कभी शोला कभी शबनम कभी अंगार लिखेंगे,
कभी आँसू की नदिया और कभी मझधार लिखेंगे !
हम अपनी ज़िन्दगी की दास्ताँ जब भी लिखेंगे तब,
तुम्हारा नाम लिखेंगे, तुम्हारा प्यार लिखेंगे !

Friday, August 5, 2016

बड़ा ही मुश्किल है !

किसी से दिल का लगाना बड़ा ही मुश्किल है
आज कल मिलना मिलाना बड़ा ही मुश्किल है,
दूर जो रहता है वो दौड़ के आ जाएगा,
पास वालों को बुलाना बड़ा ही मुश्किल है !
ग़मों का बोझ इस कदर बढ़ा है चेहरे पर,
आज कल हँसना हँसाना बड़ा ही मुश्किल है !
प्राइवेट नौकरी और उसपे यह महँगाई की मार,
इस तरह घर को चलाना बड़ा ही मुश्किल है !
मंच पर आजकल बस चुटकुले ही चलते हैं,
दिल की कविताएं सुनाना बड़ा ही मुश्किल है !
कहीं भी इतनी मोहब्बत न मिलेगी तुझको,
यह वतन छोड़ के जाना बड़ा ही मुश्किल है !
तालियां ही नहीं पेमेंट भी देना वरना,
फिर से 'अम्बेश' का आना बड़ा ही मुश्किल है !

--------अम्बेश तिवारी "अम्बेश"

Monday, August 1, 2016

एक छंद सैनिकों के नाम -

कब तक बातें होंगी और मुलाक़ातें होंगी,
सैनिकों के शव हम कब तक उठाएंगे !
सुधरा नहीं जो कभी आज कैसे सुधरेगा,
अहिंसा का पाठ उसे कब तक पढ़ाएंगे !
हम भेजें चिट्ठियां वो भेजते आतंकियों को,
ऐसा यह व्यापार हम कब तक चलाएंगे !
पीठ पे लिए हैं घाव एक नहीं बार-बार,
छप्पन इंची सीना उन्हें कब हम दिखाएंगे !

::::अम्बेश तिवारी

Tuesday, July 26, 2016

सलमान बरी हो जाते हैं !

बड़े बड़े घोटाले कर बेईमान बरी हो जाते हैं,
सौ गुनाह करके अमीर इंसान बरी हो जाते हैं ।
हिरन ख़ुदकुशी कर लेता है, गाड़ी खुद ही चलती है,
कोर्ट में यह साबित करके सलमान बरी हो जाते हैं ।

::::अम्बेश तिवारी
26.07.2016

Thursday, July 21, 2016

"माँ" तुम्हारे बिन मगर यह ज़िन्दगी कटती नहीं !

जब से माँ हमें छोड़ कर गईं हैं एक-एक दिन जैसे एक एक बरस की तरह निकलता है । अभी कुल 18 दिन बीते हैं पर ऐसा लग रहा है कि एक सदी बीत गई हो ! लोग आते हैं, समझाते हैं, चले जाते हैं पर मैं अब भी वहीँ खड़ा हूँ ! समझ नहीं आता क्या करूं ?

आज कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं -

रोज़ निकले चाँद सूरज, यह घड़ी रूकती नहीं,
कितना भी मुट्ठी में पकड़ो, रेत पर टिकती नहीं,
सब मुझे समझा रहे आगे बढ़ाओ ज़िन्दगी,
"माँ" तुम्हारे बिन मगर यह ज़िन्दगी कटती नहीं !
तुमने इतना था दिया जिसको मैं गिन सकता नहीं,
फिर भी जाने ख्वाहिशें कितनी हैं जो मरती नहीं !
सैकड़ों रिश्ते यहाँ हैं सब मगर वीरान हैं,
एक माँ-बेटे के रिश्ते की ख़लिश घटती नहीं !
लाख समझाया मगर यह दिल मेरी सुनता नहीं,
और माँ तेरी यह सूरत से आँख से हटती नहीं !
दूसरों को सीख देना है बड़ा आसान पर,
खुद पे जब आती मुसीबत तब ज़ुबाँ खुलती नहीं !

:::::::अम्बेश तिवारी "अम्बेश"
21.07.2016

Sunday, July 17, 2016

माँ तुम अब भी यहीं कहीं हो !

जब से मम्मी हमसब को छोड़ कर गईं हैं ऐसा लगता है सारा संसार सूना हो गया है ! न तो ऑफिस में ही मन लगता है न ही  कुछ लिखने की इच्छा होती है ।

ऐसे में मम्मी के जाने के बाद अपने अंतर्मन की भावनाओं को कलमबद्ध करने का छोटा सा प्रयास किया है । यह कविता माँ के बारे में नहीं है बल्कि माँ के जाने के बाद मेरी क्या स्थिति है उसके बारे में है -

माँ तुम अब भी यहीं कहीं हो !

मेरे अंतर्मन में तुम हो,
और आँखों में रची बसी हो ।
मेरा मन बस यही पुकारे,
माँ तुम अब भी यहीं कहीं हो !

रोज रात को जब घर लौँटू,
लगे कि रस्ता ताक रही हो ।
मुझे खिलाने को खाना तुम,
अब तक भूखी जाग रही हो ।
रोज़ सवेरे मुझे जगाने को,
आवाज़ लगाती हो तुम।
मेरी हर चिंता में अपनी
काया सदा गलाती हो तुम ।
सब कहते हैं चली गयीं तुम,
अब दुनिया में कहीं नहीं हो ।
पर मेरा मन यही पुकारे,
माँ तुम अब भी यहीं कहीं हो !

कितने कष्ट सहे तुमने पर,
अपना दुखड़ा कभी न रोया ।
हम बच्चों की खातिर तुमने,
अपना तन मन जीवन खोया ।
आशावान बने रहने का,
पाठ सदा सिखलाती हो तुम ।
चाहे कैसी भी विपदा हो,
साहस सदा दिलाती हो तुम ।
चिता में जलने से पहले तुम,
कष्टों में सौ बार जली हो ।
पर मेरा मन यही पुकारे,
माँ तुम अब भी यहीं कहीं हो ।

एक तुम्हारे होने भर से,
घर में कितना उजियारा था ।
कितनी बार हमारी खातिर,
तुमने अपना मन मारा था ।
मैं चाहे गुस्सा हो जाऊं,
तुम नाराज़ नहीं होती थी ।
किसे बताऊँ इस दुनिया में,
मैं तुमको सबसे प्यारा था ।
कभी जो पूरी न हो पाये,
जीवन की वो एक कमी हो ।
फिर भी मेरा मन कहता है,
माँ तुम अब भी यहीं कहीं हो ।

जब जाऊँगा कहीं काम से,
टीका कौन लगाएगा माँ ।
बीमारी में थपकी देकर,
मुझको कौन सुलायेगा माँ !
कौन बलाएं लेगा मेरी,
किसे कहूँगा दुःख अपना ।
दुनिया भर की बुरी नज़र से,
मुझको कौन बचाएगा माँ !
कैसे रह पाऊंगा तुम बिन,
क्यों तुम हमसे रूठ गई हो !
रो रो कर मन यही पुकारे,
माँ तुम अब भी यहीं कहीं हो !

घर के हर कमरे में तुम हो,
आँगन में, चौके में तुम हो ।
होली और दीवाली में तुम,
खुशियों के मौके में तुम हो ।
बच्चों की किलकारी में तुम,
कपड़ों की अलमारी में तुम ।
दान धर्म व्रत पूजा में तुम,
परजों की त्योहारी में तुम ।
हम सब की लाचारी में तुम,
पापा की बीमारी में तुम,
इस घर का आधार तुम्ही हो,
घर की चारदीवारी में तुम,
मैं कैसे यह मानूँ के तुम,
चली गई हो, कहीं नहीं हो ।
मेरा मन अब तक कहता है,
माँ तुम अब भी यहीं कहीं हो !

::अम्बेश तिवारी
12-07-2016

Monday, June 27, 2016

आओ हँस कर बात करें !

आओ हँस कर बात करें !
यह छोटा सा जीवन इसको
क्यों रो कर बर्बाद करें,
आओ हँस कर बात करें !

1.
माना मुश्किल बहुत सफ़र है,
अंधियारी सी एक डगर है,
घना कुहासा बिखरा बिखरा,
धुंधलाती हर एक नज़र है,
पर रोते रहने से क्या यह,
गम छोटा हो जाएगा !
पीड़ा का गुणगान सुनाने से
क्या दुःख मिट जाएगा !
सुख दुःख एक अवस्था मन की,
यह तो आना जाना है,
जीवन यूँ ही चलता रहता,
कुछ खोना कुछ पाना है,
क्यूँ हम शोक मनाये इसका,
क्यों कोई अवसाद करें !
आओ हँस कर बात करें !

2.
हर मज़हब ने, हर भाषा में,
बस इतना सिखलाया है !
यह जीवन दो चार दिनों का,
क्षण-भंगुर यह काया है !
काहे का अभिमान करे हम,
औरों से क्यों द्वेष करें,
धन-दौलत, बंगले और गाड़ी,
चार दिनों की माया है !
एक दूजे का सुख-दुःख बांटें,
और अच्छा व्यवहार करें,
कष्ट किसी को कभी न देवें,
कष्टों का उपचार करें !
जो अपने हों दूर कहीं तो,
उनको दिल से याद करें !
आओ हँस कर बात करें !

3.
जात-पात से ऊपर उठकर,
मज़हब की दीवारें तोड़ो ।
भेदभाव को दूर हटा कर,
नफरत वाली बातें छोड़ो ।
क्या रखा है मन्दिर मस्जिद,
हिन्दू और मुसलमाँ में,
हाथ मिलाओ, गले लगाओ,
दिल से दिल का नाता जोड़ो ।
और सियासी चालों में तुम,
गलती से मत फंस जाना !
इनका मकसद हमें लड़ाना
इन बातों में मत आना !
भूल के सारे शिकवे हम सब,
अपना वतन आबाद करें !
आओ हँस कर बात करें !

::::
अम्बेश तिवारी
27.06.2016

Saturday, June 25, 2016

एक छंद -

मित्रों मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं कि मैं श्रृंगार के बजाय पीड़ा, दर्द, रिश्तों आदि पर क्यों लिखता हूँ !
तब मैंने अपनी पीड़ा एक छोटे से छंद के जरिये कही है कि -

ज़िन्दगी की भट्टी में जो रात दिन जल रहे हैं,
उनको मुहब्बतों की आग क्या जलायेगी !
जिनके बदन से पसीना गिरे बूँद-बूँद,
सावन की बारिश क्या उनको भिगायेगी !
खून के जो आँसू रोते रहते हैं उम्र भर,
इश्क़ की कहानी कैसे उनको रुलाएगी !
रोटी की फिकर में जो जागते हैं रात भर,
याद महबूब की क्या उनको जगाएगी !

::::अम्बेश तिवारी "अम्बेश"

Friday, June 24, 2016

मेरा परिचय -

आया हूँ सुनाने आपको मैं कविताएं किन्तु,
मेरी कविताओं में न कुछ भी विशेष है !
भूख है, उदासी है, तपन धूप की मिलेगी,
कभी जो न पूरे होते सपने वो शेष हैं ।
इश्क़ और आशनाई कैसे मैं सुनाऊँ जब,
जाति-धर्म मज़हबों में बँट रहा यह देश है !
मेरे गीतों में मिलेगा कष्ट आम आदमी का,
दर्द बांटता हूँ मेरा नाम "अम्बेश" है !

Tuesday, June 21, 2016

कुछ छंद !

1.
आया हूँ सुनाने आपको मैं कविताएं पर,
मेरी कविताओं में न कुछ भी विशेष है !
भूख है, उदासी है, तपन धूप की मिलेगी,
कभी जो न पूरे होते सपने वो शेष हैं ।
इश्क़ और आशनाई कैसे मैं सुनाऊँ जब,
जाति-धर्म मज़हबों में बँट रहा यह देश है !
मेरे गीतों में मिलेगा कष्ट आम आदमी का,
दर्द बांटता हूँ मेरा नाम "अम्बेश" है !

2.
चुटकुले सुना के लोग पा गएं हैं पद्मश्री,
औ हम जैसे लोग कवितायेँ पढ़ते रहे !
भूखे पेट सो जाते हैं बच्चे मजदूर के,
औ सेठों के गोदामों में अनाज सड़ते रहे !
करके घोटाले सारे नेता मौज काट रहे,
जेलों में बेचारे बे-कसूर मरते रहे !
मर गया किसान जो चुका न पाया क़र्ज़ और,
माल्या जी लंदन उड़ान भरते रहे ।

3.
आदमी नहीं हैं हम, वोट बैंक हैं महज,
उनको जिताया था अब इनको जिताएंगे ।
पूँजीपतियों के बनते रहेंगे ताजमहल,
हम जैसे लोग झोपड़ी में रह जाएंगे ।
साठ साल एक परिवार ने दिखाए स्वप्न,
कुछ साल हमें अब ख्वाब यह दिखाएँगे,
पांच साल दे चुके हो, और पांच साल दे दो,
आएंगे जी आएंगे तब अच्छे दिन आएंगे ।

4.

ज़िन्दगी की भट्टी में जो रात दिन जल रहे
उनको मुहब्बतों की आग क्या जलायेगी !
श्रम के पसीने से जो भीगता बदन यहाँ,
सावन की बारिश क्या उनको भिगायेगी !
खून के जो आँसू रोते रहते हैं उम्र भर,
इश्क़ की कहानी कैसे उनको रुलाएगी !
रोटी की फिकर में जो जागते हैं रात भर,
याद महबूब की क्या उनको जगाएगी !

5.

कब तक बातें होंगी और मुलाक़ातें होंगी,
सैनिकों के शव हम कब तक उठाएंगे !
सुधरा नहीं जो कभी आज कैसे सुधरेगा,
अहिंसा का पाठ उसे कब तक पढ़ाएंगे !
हम भेजें चिट्ठियां वो भेजते आतंकियों को,
ऐसा यह व्यापार हम कब तक चलाएंगे !
पीठ पे लिए हैं घाव एक नहीं बार-बार,
छप्पन इंची सीना उन्हें कब हम दिखाएंगे !

Thursday, June 16, 2016

वो रिश्तेदार हैं मेरे !

न मेरा हाल पूछेंगे, न दो आँसू बहाएंगे,
वो रिश्तेदार हैं मेरे, वो छुप कर मुस्कुराएंगे !
सुनाएंगे मुझे खुद की तरक्की की सभी बातें,
मेरी गुरबत, मेरे ऐबों के कारण है, जताएँगे !
भरी महफ़िल में छेड़ेंगे मेरी रुस्वाई के किस्से,
मुझे हर बात में जैसे भी हो नीचा दिखाएँगे !
बिना खंजर के मुझको घाव देते हैं ज़ुबाँ से वो,
मेरे सूखे हुए ज़ख्मों पे नश्तर वो चलाएंगे !
मैं सच बोलूं तो मुझ पर बदजुबानी का लगे ठप्पा,
मचाकर शोर अपने झूठ को वो सच बनाएंगें !
कभी जो आइना देखें, तो टूटेंगे गुमाँ उनके,
वो खुशफहमी में हैं, कि अब मेरी हस्ती मिटायेंगे !
फ़क़त इस वास्ते 'अम्बेश' चुप बैठा है महफ़िल में,
कभी मेरी वफ़ा के सामने वो सर झुकाएँगे ।

अम्बेश तिवारी "अम्बेश"
16.06.2016

Thursday, June 9, 2016

मेरी तालीम का मुझ पर असर है !

मेरी तालीम का मुझ पर असर है,
जो तेरे सामने झुकती नज़र है ।
बिना गलती के माँगूं मैं मुआफ़ी,
यही रिश्ते निभाने का हुनर है ।
के जब इंसान पत्थर भी जो मारे,
उसे बदले में फल देता शज़र है ।
हर इक चेहरे पे नक़ली मुस्कुराहट,
बड़े फनकार लोगों का शहर है ।
अमीरी में भी कितने ग़म है तुमको,
किसी की बददुआओं का कहर हैं ।
के पूरी हो ही जाती हर तमन्ना,
मेरे अल्लाह की मुझ पर मेहर है ।
मुझे मंज़िल मिलेगी एक न एक दिन,
इसी उम्मीद में कटता सफ़र है ।
बड़ा शायर बना फिरता है देखो,
वही "अम्बेश" जो अब दरबदर है ।

::::
अम्बेश तिवारी "अम्बेश"
09.06.2016

Tuesday, June 7, 2016

मेरे गिले और तुम्हारे शिकवे !

मेरे गिले और तुम्हारे शिकवे, वही पुराने सदा रहेंगे,
मगर तुम्हारी मोहब्बतों के बस हम दीवाने सदा रहेंगे !

वो चिट्ठियों में गुलाब देना, वो हरकतों से जवाब देना,
वो तेरी नज़रों के तीर, उनके वही निशाने सदा रहेंगे !
मेरे गिले और तुम्हारे शिकवे, वही पुराने सदा रहेंगे

वो तेरा सबसे नज़र चुराकर, वो बातें करना यूँ छत पे आकर !
वो शेर, नगमे, ग़ज़ल औ किस्से, वही फ़साने सदा रहेंगे !
मेरे गिले और तुम्हारे शिकवे, वही पुराने सदा रहेंगे

ज़माने भर की ख़ुशी तुम्हें हम, जो दे न पाए तो गम न करना,
मगर मोहब्बत की यह कशिश और यही ज़माने सदा रहेंगे !
मेरे गिले और तुम्हारे शिकवे, वही पुराने सदा रहेंगे

मैं रूठ जाऊं तो तुम मनाना, तुम्हे मना लेगा यह दीवाना,
यूँ हँसते गाते कटेगा जीवन यही तराने सदा रहेंगे !
मेरे गिले और तुम्हारे शिकवे, वही पुराने सदा रहेंगे |

जब आएगा उम्र का वो लम्हा, के ज़िन्दगी की हों ख़त्म घड़ियाँ,
नए जनम में मिलेंगे फिर से, यही ठिकाने सदा रहेंगे !
मेरे गिले और तुम्हारे शिकवे, वही पुराने सदा रहेंगे

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अम्बेश तिवारी
07.06.2016

एक मुक्तक !

बचपन की मित्रता कहाँ हैं !
अब तो बस व्यवहार रह गया !
कष्टों की पीड़ा तो कम है,
आभारों का भार रह गया ।
प्रेम, प्यार रूठना मनाना
हँसी ठिठोली के किस्से,
रह गए बन्द किताबों में बस
जीवन एक व्यापार रह गया ।

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अम्बेश तिवारी
06.06.2016

तुम प्रेम गीत मत गाना साथी !

तुम प्रेम गीत मत गाना साथी !
प्रेम गीत मत गाना !

जब तक कन्धों पर रहे भार,
भारत माँ का तुम पर उधार,
अपना तन मन धन सब देकर,
मिट्टी का क़र्ज़ चुकाना साथी !
प्रेम गीत मत गाना साथी,
प्रेम गीत मत गाना !

कितने जवान आतंकवाद की,
भेंट यहाँ चढ़ जाते हैं !
उनके बीवी बच्चे, प्रियजन,
बस बिलख बिलख रह जाते हैं !
क्या उनके अश्रु भुलाकर हम,
यूँ प्रेम मगन हो पाएंगे
क्या उनके बलिदानों को हम,
बस यूँ हीं व्यर्थ गँवाएंगे !
इन बलिदानों पे तुम भी चाहे,
न्योछावर हो जाना साथी !
पर प्रेम-गीत मत गाना साथी,
प्रेम गीत मत गाना !

तुम मुझे भुला दो कष्ट नहीं,
पर राष्ट्रप्रेम मत बिसराना,
मेरे सुख की खातिर तुम,
निज आदर्शों से मत डिग जाना ।
मैं भारतवर्ष  की नारी हुँ,
जो जौहर में जल जाती हैं,
पर किसी दरिंदे के आगे,
मर्यादा नहीं गंवाती हैं ।
तुम उसकी लाज बचाने को,
चाहे मर मिट जाना साथी !
पर प्रेम गीत मत गाना साथी,
प्रेम गीत मत गाना !

मुझको तब तक स्वीकार
तुम्हारा प्रेम नहीं हो पायेगा,
मानवता का हर शत्रु न जब तक
काल-ग्रसित हो जाएगा !
है नहीं जरूरी के तुम केवल
शस्त्र उठा कर लड़ सकते,
इतिहास साक्षी है के,
युद्ध तो कलम से भी हो जाएगा !
मेरी वियोग पीड़ा से डर
तुम कहीं हार मत जाना साथी !
प्रेम गीत मत गाना साथी,
प्रेमगीत मत गाना !

तुम प्रेम गीत मत गाना साथी !
प्रेम गीत मत गाना !

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अम्बेश तिवारी
06.06.2016

Monday, June 6, 2016

सत्य अहिंसा से लोगों का !

सत्य अहिंसा से लोगों का अब बस इतना नाता है,
दीवारों पर लिखते हैं, दीवाली पर पुत जाता है !
उस गरीब का खेत बिक गया जिस इन्साफ के चक्कर में,
वो इन्साफ किसी धनवान की चौखट पर बिक जाता है !
यहाँ किसानों के मरने पर एक आवाज़ नहीं आती,
हीरोइन का पल्लू उड़ना, अखबारों में छप जाता है !
उनके गम क्या कहूँ , कि जिनके घर दंगों में खाक हुए !
तिनका तिनका जोड़ के कैसे कोई घर बनवाता है ।
कुछ भी फर्क नहीं आता है सत्ता के गलियारों में,
सालाना त्यौहार के जैसा यह चुनाव हो जाता है !
सत्य अहिंसा से लोगों का अब बस इतना नाता है,
दीवारों पर लिखते हैं, दीवाली पर पुत जाता है !

अम्बेश तिवारी

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

  मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया ! स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र ...