Tuesday, June 7, 2016

एक मुक्तक !

बचपन की मित्रता कहाँ हैं !
अब तो बस व्यवहार रह गया !
कष्टों की पीड़ा तो कम है,
आभारों का भार रह गया ।
प्रेम, प्यार रूठना मनाना
हँसी ठिठोली के किस्से,
रह गए बन्द किताबों में बस
जीवन एक व्यापार रह गया ।

::::
अम्बेश तिवारी
06.06.2016

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