Tuesday, February 1, 2022

प्रतियोगिता दर्पण - एक छोटी सी लव स्टोरी

 साल 1998 की है ! हम ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में थे ! चूँकि मोहल्ले में हमारी इमेज एक पढ़ाकू लड़के की थी तो मन में बहुत सारे अरमान होते हुए भी साला इमेज के चक्कर में हम अपने ख्वाबों का गला घोंट कर गुड़ बॉय बने रहते थे!! 
हालाँकि सामने वाली गली में रहने वाली विनीता माथुर हमको बचपन से पसन्द थी पर बीस बिस्वा वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में जन्मे हम यानी मोहित बाजपेई पुत्र श्री रामरतन बाजपेई यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि भले इराक विश्वयुद्ध में अमेरिका को हरा दे या बांग्लादेश एकदिवसीय वर्ल्डकप जीत जाए पर पण्डित जी अपने लौंडे को कायस्थ की लड़की के साथ पेंच लड़ाते देख कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे !! इसलिए विनीता को मन ही मन बेहद चाहने के बावजूद हम कभी इज़हारे मोहब्बत करने की हिम्मत ही नहीं कर पा रहे थे। पर कमबख्त इस दिल का क्या करते जो उसके लिए पागल था!!
विनीता डीजी कॉलेज से बीए कर रही थी और हम डीएवी कॉलेज से बीएससी। दोनों का कॉलेज पासपास था तो हम कई बार हम उसे अपनी पुरानी चेतक स्कूटर पर लिफ्ट देने की पेशकश कर चुके थे। एकाध बार वो मान भी गयी पर हम Hi, Hello, how are you या ज्यादा से ज्यादा "पढ़ाई कैसी चल रही है" से आगे बढ़ ही नहीं पा रहे थे ! हमें बस एक मौके के तलाश थी और वो मौका हमें दिया "प्रतियोगिता दर्पण" ने !! 
तो किस्सा कुछ यूँ है कि उन दिनों हमारी उम्र के हर युवा के लिए बैंक, एसएससी आदि की तैयारी करना एक आवश्यक कर्म था और हम सब प्रतियोगिता दर्पण नामक मासिक पत्रिका पढ़ते थे! प्रतियोगिता दर्पण में हर माह एक निबन्ध प्रतियोगिता होती थी जिसके विजेताओं को क्रमशः 1001, 501 और 251 के प्रथम द्वितीय और तृतीय पुरस्कार दिए जाते थे। अगस्त 1998 की प्रतियोगिता दर्पण में निबंध का विषय था "नारी सशक्तिकरण में भारत की भूमिका"। चूँकि हमारी लेखन और भाषण कला पूरे मोहल्ले में जगप्रसिद्ध थी इसलिए एक दिन दोपहर में विनीता हाथ में किताबें लिए मेरे घर आयी। मम्मी से बोली आंटी मोहित है ? वो मुझे अपने कोर्स का कुछ पूछना है! मम्मी ने मुझे आवाज़ दी "मोहित देखो विनीता तुमसे कुछ पूछने आयी है!!"  मेरे तो बाँछे खिल गईं !! मेरे पहुंचने पर वो मैगज़ीन मुझे दिखाती हुए बोली "मोहित मेरे लिए यह निबन्ध लिख दो प्लीज !! मैं अपने नाम से भेजना चाहती हूँ" 
हमने छूटते ही सवाल किया "मान लो कि हमने निबन्ध लिखा और उस निबन्ध को इनाम मिला तो वो इनाम तो तुम रखोगी हमको क्या मिलेगा?"
उसने हँसते हुए जवाब दिया "पहले इनाम मिले तो,  फिर देखेंगे" 
इस संक्षिप्त मुलाकत के बाद हमने पूरी शिद्दत से उसके लिए निबन्ध लिखा और उसे दे दिया जिसे उसने अपने नाम से भेज दिया!! फिर मैं इस बात को भूल ही गया !!
पर दो महीने बाद एक दिन वो प्रतियोगिता दर्पण और मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए मेरे घर आई और बोली "मोहित !! तुम्हारे लिखे निबंध को द्वितीय पुरस्कार मिला है!! यह देखो किताब में मेरा नाम छ्पा है! तुम्हारी वजह से!! Thank you so much" "मालूम है मम्मी तो सारे रिश्तेदारों को फ़ोन करके बता चुकी हैं !!" उसने खुशी से चहकते हुए कहा !!
हूँ अच्छा है !! पर इन सबसे मुझे क्या फायदा!! मैंने स्टाइल मारते हुए बेरुखी से जवाब दिया !!
"अरे फायदा क्यों नहीं होगा !! यह लो ! उसने मेरे हाथ में कुछ पैसे और मिठाई का डिब्बा रख दिया !! और बताया कि मेरे लिखे उस निबन्ध को 501 रू का पुरुस्कार मिला था। उस जमाने में मनी-ऑर्डर आता था और डाकिया कुछ पैसे काटकर पैसे देता था तो विनीता को कुल 475/- रू मिले थे! वो सोंटे वाले हनुमान जी के मन्दिर में ग्यारह रूपये का प्रसाद चढ़ा कर बाकी बचे 464 रुपयों में से आधे यानी 232/- रूपये और प्रसाद मुझे देने के लिए लायी थी!! 
मैंने प्रसाद तो खा लिया पर इम्प्रैशन जमाने के लिए रुपये उसे वापस देते हुए कहा "मुझे रुपये नहीं चाहिए! यह तुम्हीं रखो !!"
पर वो जिद पर अड़ गयी "देखो तुमने मेहनत से लिखा था तो आधे पैसे पर तो तुम्हारा ही हक़ है"
अब मैंने उसे अपनी हैंडराइटिंग में कॉपी किया फिर मैगजीन के ऑफिस में रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजा तो आधे पैसे पर तो मेरा भी हक़ है न !! 
बस यही वो क्षण था जब मेरे दिमाग में खुराफात घूम गयी !! मैंने कहा कि मैं एक शर्त पर यह पैसे ले सकता हूँ, और वो यह कि, इन पैसों से हम दोनों एक फ़िल्म देखने चलें और फिर किसी अच्छे से रेस्तरां में बैठकर लंच करें !
उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली अच्छा बच्चू मेरे साथ डेट पर जाने का अच्छा बहाना ढूँढा है तुमने ! मैने हँसकर कहा "ऐसा ही समझ लो एक दिन के लिए तुम जस्ट फ्रेंड से मेरी गर्ल-फ्रेंड बन जाओ!"
वो हँसकर बोली ठीक है कल सोचकर बताऊँगी !! 
दूसरे दिन उसका लैंडलाइन पर फोन आया "मोहित मैं तैयार हूँ ! कब चलना है !" मैंने कहा कल कॉलेज के बाद दो बजे नवीन मार्किट में सिंह बुक स्टाल पर मिलो तब पूरा प्लान बताऊँगा!"
दूसरे दिन तय हुआ कि शनिवार को हम दोनों कॉलेज जल्दी छोड़ देंगे! 11:30 बजे मैं डीजी कॉलेज के सामने उसका इंतजार करूँगा!! वहाँ से हम दोनों हीर पैलेस में "कुछ कुछ होता है" देखेंगे और फिर क्वालिटी रेस्टोरेंट में खाना खाएंगे !! घर पर बोलकर आना है कि शाम 5 बजे तक लौटेंगे !!
तो तय समयानुसार हम दोनों मिले फिर उसे अपनी पुरानी स्कूटर पर बिठाकर हम फर्राटे से मालरोड की ओर निकल पड़े ! अभी फ़िल्म शुरू होने में समय था तो हम दोनों ने पहले बिरहाना रोड में शंकर के गोलगप्पे निपटाए क्योंकि उसको गोलगप्पे बहुत पसंद थे। 
"कुछ कुछ होता है" देखते हुए सिनेमाहॉल के भीतर क्या हुआ, इसे राज़ ही रहने देते हैं या यूँ कहें कि इसे आपकी कल्पना पर छोड़ देते हैं !! पर इतना जरूर था कि हॉल से निकलते वक्त हम दोनों यह बात जान चुके थे कि हम अब just friends तो नहीं थे।
इंटरवल में कोल्डड्रिंक और समोसा खाने के बाद पेट में ज्यादा जगह नहीं बची थी इसलिए हमने लंच के तौर पर पूरा खाना खाने के बजाय पहले क्वालिटी में डोसा और फिर रीटा में आइसक्रीम खाई! शायद ज़िन्दगी में पहली बार मैं किसी लडक़ी के साथ ऐसे घूम रहा था! पर यह सब करते हुए हमें कतई इस बात का भान नहीं रहा कोई हमें यह सब करते देख रहा था! 
जी हाँ !! जैसे हर लवस्टोरी में एक विलेन होता है वो यहाँ भी था !! माथुर अंकल के बगल में रहने वाले कपूर साहब का बेटा बन्टी जो बीएनडी कॉलेज के अपने दोस्तों के साथ फ़िल्म देखने आया था उसने हमारी पूरी गतिविधियों को नोट कर लिया था। पर चूँकि वो मोहल्ले में आवारागर्दी के लिए बदनाम था तो उसे मालूम था कि उसकी बातों पर कोई यकीन नहीं करेगा अतः उसने हमें बदनाम करवाने और हमारे किस्से को फसाना बनाकर हर घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी मोहल्ले में आटा-चक्की चलाने वाले केदार नाथ गुप्ता उर्फ कल्लू भईया को !! 
कल्लू भईया को आप चलता फिरता अखबार कह सकते हैं !! किसके घर में क्या चल रहा है, कौन कब  आ-जा रहा है, किसकी किससे लड़ाई चल रही है उनको सब पता होता था !! तो बन्टी ने कल्लू भईया को दो राजश्री की पुड़िया खिलाकर हमारी लवस्टोरी का प्रसारण पूरे मोहल्ले में करवा दिया !! 
बात माथुर अंकल के कान तक भी पहुँची ! उन्होंने पहले विनीता से पूछा ! थोड़ी टालमटोल के बाद विनीता ने पूरा किस्सा (सिनेमाहाल के अन्दर वाले हिस्से को छोड़कर) उनके सामने तोते की तरह उगल दिया ! माथुर अंकल मेरे पापा के उग्र स्वभाव से परिचित थे अतः उन्होंने मम्मी से बात की और अपनी तरफ से नमक-मिर्च लगा कर पेश किया पर मम्मी ने मेरी आशा के विपरीत प्रतिक्रिया देते हुए उन्हें यह कह कर समझा-बुझा के भेज दिया कि "भाई साहब ! यह उमर ही ऐसी है ! बच्चों ने कोई गलत काम नहीं किया है और मुझे उन दोनों पर पूरा यकीन है! आप निश्चिंत रहिए और लोगों की बातों पर ध्यान मत दीजिये बाकी मैं मोहित से बात करूंगी!!"
मम्मी ने हमसे पूछा तो हमने वही कहानी दोहरा दी ! मम्मी ने समझाया कि "बेटा देखो हमको तो कोई फर्क नहीं पड़ता पर अगर कहीं पापा को पता लग गया तो तुम जानते ही हो ! इसलिए हो सके तो विनीता से थोड़ा दूर ही रहो !! पर अब क्या फायदा था बन्टी और कल्लू भईया की कृपा से हम दोनों मोहल्ले के प्रेमीयुगल तो साबित हो ही चुके थे !! 
विनीता का हमसे मिलना जुलना बन्द हो चुका था! कॉलेज जाते समय उसके साथ जासूस के तौर पर मिश्रा जी की बेटी रुचि को लगा दिया गया था!! पर हम भी कम नहीं थे हमने अपने दोस्त नितिन की बहन गरिमा को सारी बात बताई जो विनीता और रुचि के साथ ही पढ़ती थी। हमने उससे कहा कि कॉलेज के बाद किसी तरह से थोड़ी देर के लिए रुचि को विनीता से दूर ले जाया करो जिससे हम कुछ देर उससे बात कर सकें !!
खैर यह मुलाकातों का सिलसिला ज्यादा दिन नहीं चला क्योंकि ग्रेजुएशन करते ही विनीता को उसके भाई विकास के पास लखनऊ भेज दिया गया और वो वहीं से एम.ए. की पढ़ाई करने लगी !! अब उससे कभी कभार ही मुलाक़ात होती थी वो भी सबके सामने मोहल्ले के कॉमन फंक्शन में !! 
ग्रेजुएशन के बाद मैं एक कम्पनी में नौकरी करने दिल्ली चला गया !! 2004 में मैं दिल्ली में ही था जब पता लगा कि विनीता की शादी हो गयी और उसका पति नोएडा में किसी कंपनी में इंजीनियर है!! एक दिन मैं वीकेंड में कानपुर आया हुआ था ! संडे रात की श्रमशक्ति से मुझे वापस जाना था! अचानक माथुर अंकल अपने हाथ में बनारसी के लड्डू का डिब्बा और एक किलो ग़ज़क लिए चले आ रहे थे ! आते ही मम्मी से बोले "भाभी जी कल देखा था मोहित को तो सोचा आज तो दिल्ली जा ही रहा होगा! उससे कहिए यह मिठाई और ग़ज़क विनीता के यहाँ पहुंचा देगा प्लीज !! विनीता का पता और मोबाइल नम्बर मैंने इस पर्ची में लिख दिया है!" उन्होंने पर्ची मेरे हाथ में थमा दी ! नोएडा सेक्टर 62 का पता था !! मैंने टालने के लिए कहा "अंकल मैं रहता हूँ द्वारका में और यह नोएडा सेक्टर 62 मेरे लिए एकदम उल्टा है! मैं अगले संडे से पहले नहीं जा पाउँगा !" पर मम्मी ने मेरी बात काटते हुए कहा "पर तेरा ऑफिस तो ओखला में हैं न ! कल शाम ऑफिस से निकल कर सीधे नोएडा चले जाना और रात तक वापस आ जाना !!" 
मैंने नाराजगी वाली नजरों से मम्मी की तरफ देखा !! पर मम्मी ने डिब्बे मेरे बैग में रख दिये और बोलीं एड्रेस संभाल कर रखना !! माथुर अंकल चले गए !!
मैं रास्ते भर विनीता के बारे में सोचता रहा !! अगले दिन मैंने 5 बजे ही ऑफिस छोड़ दिया! नेहरू प्लेस से नोएडा की बस पकड़ कर मैं हाथ में डिब्बा लिए चल दिया !! ठीक 6:15 पर मैं उसकी सोसाइटी के बाहर था! उसके फ्लैट 409 की घण्टी बजाते समय मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था !! 
दरवाजा खुला और एक खूबसूरत नौजवान सामने था !! "आप मोहित हैं न ?? मैं अभिषेक ! आइए अंदर आइए !!"
मैं उससे हाथ मिलाकर अन्दर गया !! पीछे से हल्के हरे रंग का सूट पहने विनीता आयी और जोर से बोली "कैसे हैं मोहित जी?"
"यह मैं मोहित से मोहित जी कब से हो गया विनीता?"
अरे यार नाराज़ क्यों होते हो बैठो तो पहले ! अभिषेक ने कहा।
मैंने कहा नहीं ऐसी कोई बात नहीं पर विनीता और मैं एक ही उम्र के हैं इसलिए कहा !!
फिर हम दोनों बातचीत करने लग गए वही नार्मल क्रिकेट, पॉलिटिक्स, सेंसेक्स आदि की बातचीत !
कुछ देर बाद चाय आयी और फिर खाना !! खाने की टेबल पर अभिषेक बोला "भाई मोहित मैं तो शाही पनीर बनवाना चाह रहा था पर विनी ने कहा कि तुम्हें पनीर के बजाय दम-आलू ज्यादा पसंद हैं तो हमने कहा यही सही !!" 
बातें करते करते कब 09:30 बज गए पता ही नहीं चला !! मैं चलने को हुआ तो अभिषेक बोले चलो मैं तुम्हें बस स्टैंड तक अपनी गाड़ी से छोड़ देता हूँ!
मैंने विनीता को गुडनाईट कहा और चल दिया ! मेरे बाहर निकलते ही अभिषेक ने विनीता की तरफ देखा और कहा देखा विनी !! मैं शर्त जीत गया !! 
विनीता के चेहरे पर हँसी और संतुष्टि का भाव नज़र आ रहा था !! पर मैं कुछ समझ नहीं पाया तो अभिषेक मेरे कन्धे पर हाथ रखकर बोला "अरे चलो रास्ते में बताता हूँ !" 
गाड़ी बाहर निकाल कर अभिषेक बोला सिगरेट चलेगी दोस्त ? मैंने हाँ में सिर हिलाया तो उसने गाड़ी के डैशबोर्ड से क्लासिक रेगुलर की डिब्बी निकाल कर एक सिगरेट मेरी ओर बढ़ाई और एक खुद ले ली !! लाइटर से सिगरेट जला कर वो बोला "यही सोच रहे हो न कि मेरी और विनी की क्या शर्त थी!!"
"तो सुनो कल रात में जब डैडी का फ़ोन आया कि उन्होंने तुम्हारे हाथ से मिठाई भेजी है तब से मैं विनी के चेहरे पर तनाव देख रहा था! कल रात मैंने कई बार पूछा पर उसने कुछ नहीं बताया !! अचानक आज सुबह उसने अपने आप मुझे तुम्हारी और उसकी प्रतियोगिता दर्पण वाली पूरी कहानी सुना दी !! मुझे बहुत अच्छा लगा कि चलो मेरी पत्नी को मुझ पर पूरा यकीन है और वो मुझसे कुछ छिपायेगी नहीं ! फिर मैंने उससे कहा कि अगर तुम इस बात को न भी बतातीं तो क्या फर्क पड़ता !! तब उसने कहा कि उसे डर था कि कहीं तुम यानी मोहित मेरे सामने कुछ ऐसा न कह दो  जिससे मुझे तुम दोनों पर शक हो जाये !"
तब जानते हो दोस्त मैंने क्या जवाब दिया ?
मैंने कहा माय डिअर विनी तुम हम लड़कों को नहीं जानती हम जिसे वाकई चाहते हैं न उसे कभी तकलीफ में नहीं देख सकते! अगर मोहित ने वाकई तुमसे प्यार किया होगा तो शर्त लगा लो, वो कुछ भी नहीं बोलेगा !! और देखो मोहित मैं शर्त जीत गया !!
उसने एक साँस में सब कुछ कह दिया!!
मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा "दोस्त तुमने शर्त ही नहीं, मेरा दिल भी जीत लिया !! विनीता तुम्हारे साथ बहुत खुश रहेगी !!"
इसके बाद हम दोनों बिना कुछ कहे उसकी गाड़ी में बैठ गये !! रेडियो सिटी 103.4 एफएम पर गाना बज रहा था -
"भंवरे ने खिलाया फूल, फूल को ले गया राजकुंवर"

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©अम्बेश तिवारी

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

  मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया ! स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र ...