Saturday, November 19, 2022

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

 

मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी,

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया !


स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र तक साइकल से ऑफिस जाना,

अब भी याद है मुझे उनका एक एक रुपया बचाना !

सुबह और शाम तीन तीन घण्टे ट्यूशन पढ़ाना !

थक कर चूर होकर देर रात को घर वापस आना !


मम्मी से कभी हिसाब नहीं लेते थे पर उन्हें सब एहसास रहता था !

हम बच्चों की छोटी छोटी ख़्वाहिशों का उन्हे आभास रहता था !


पापा खामोश रहते हैं, खुद को व्यक्त करना उन्हें कभी नहीं आया,

पर हमको उनका उदास चेहरा पढ़ना शायद उन्होने ही था सिखाया !


हमारे बीमार होने पर बहुत घबराते हैं पापा !

स्वेटर क्यों नहीं पहना ? मफ़लर कहाँ हैं तुम्हारा ? अब तो जैकेट निकाल लो !

इन बातों पर अब भी डांट लगाते हैं पापा !


पर उनका इस तरह डांटना, मुझे अब बुरा नहीं, बहुत अच्छा लगता है,

क्योंकि आज मैं खुद एक पिता हूँ, पर यह एहसास बहुत तसल्ली देता है, 

कि कोई है, जिसे यह आदमी अब भी बच्चा लगता है!


उनके साथ का मतलब, जैसे बरगद के पेड़ की छाया,

जीवन के हर झंझावात से उनके वरदहस्त ने ही तो बचाया!

उनके घर में होने से दिल में एक सुकून का एहसास रहता है !

वो सदा साथ रहेंगे बस मन में यही विश्वास रहता हैं !


आज पापा के जन्मदिन दिन पर मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं,

मुझ जैसा आलसी, लापरवाह, फक्कड़ इंसान यदि थोड़ा भी जिम्मेदार बना है 

तो यह उनके अनुशासन, और अच्छी परवरिश का ही परिणाम है !

यह उनके संस्कारों का ही असर है कि मेरा समाज में थोड़ा बहुत नाम है !


उन्होने छानने की बहुत कोशिश की पर मैं अब भी पूरी तरह से छन नहीं पाया 

मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी,

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया !


Thursday, November 17, 2022

अक्सर चुप रह जाता हूँ !

हाल-ए-ग़म बतलाना हो तब, मैं पीछे रह जाता हूँ, 

नाराजी दिखलाना हो तब, मैं पीछे रह रह जाता हूँ!

कितने अरमाँ मन में छुपाए, फिर उनके नजदीक पहुँच, 

दिल का हाल बताना हो जब, मैं पीछे रह जाता हूँ।






                                                     

Tuesday, September 20, 2022

कितना मुश्किल होता है !!

सबकी सुनना, पर चुप रहना, कितना मुश्किल होता है,
उससे बिछड़ना पर खुश रहना, कितना मुश्किल होता है !
ज़िन्दा रहने की खातिर हर रोज़ यहाँ मरना पड़ता, 
मरने तक फिर ज़िन्दा रहना, कितना मुश्किल होता है !!
सपनों के मर जाने का अफसोस नहीं होता लेकिन,
फिर भी सपने बुनते रहना, कितना मुश्किल होता है!!
महलों में रहने वाले क्या जाने तपिश दुपहरी की,
हमसे पूछो धूप में जलना कितना मुश्किल होता है!!
जीवन के इस मोड़ पे आकर मुझको ये अहसास हुआ
बीते वक्त का वापस आना, कितना मुश्किल होता है।
इतने दुःख जीवन में पाकर मुझको ये मालूम हुआ
अपनी ही तकदीर से लड़ना, कितना मुश्किल होता है
गीली आँखें, दिल पर पत्थर, चेहरे पर मुस्कान लिए,
तेरी यादों के संग जीना, कितना मुश्किल होता है
अपने गम को सह लेता है हर कोई इस दुनिया में
पर दूजे के गम को सहना कितना मुश्किल होता है।

Sunday, September 18, 2022

हमने भरपूर बचपन जिया है !!!

हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!
हमने दस पैसे की चार संतरे वाली कम्पट खाई है,
हमने रसना और गोल्ड-स्पॉट बड़े चाव से पिया है।
हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!

हम नाचे हैं मिथुन-दा के डिस्को डांस पर,
हमने हसन जहाँगीर का हवा हवा खूब गाया है,
हमने अपने तो छोड़िए, पड़ोसियों के रिश्तेदारों से भी रिश्ता निभाया है।
हमने ट्रांजिस्टर पर बिनाका संगीत माला और हवा महल की कड़ियाँ खूब सुनी है,
हमने बालू के महल बनाये हैं, और मौरंग के ढ़ेर में से शंख और सीपियाँ खूब चुनी है।
हमने बिना बिजली के न जाने कितनी रातें छतों पर सोकर बिताई है,
हमने नंदन, चंदामामा, बिल्लू, पिंकी, और चाचा चौधरी से खूब दोस्ती निभाई है।
हमने ट्रेन में परिवार के साथ होल-डाल और सुराही लेकर सफर किया है।
हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!

हमने वीडियो पर देखी हैं एक रात में तीन से चार पिक्चर,
कमरे में खूब चिपकाएं हैं माधुरी और श्रीदेवी के पोस्टर,
हम टेप रिकॉर्डर में फंसी हुई कैसेट की बेसुरी आवाज़ पर खूब खिलखिलायें हैं,
हमने 8रू की टिकट पर बालकनी में फ़िल्म देखी है, हमने एक रुपये में 8 गोलगप्पे भी खाएं हैं!
हमने देखीं हैं पीसीओ पर कॉल के लिए लगने वाली लम्बी लम्बी कतारें,
हम बैलगाड़ी में घूमें और ताँगे पर भी बैठे, हमने मेले भी देखे गँगा के किनारे!!
हमने काले चोंगे वाले लैंडलाइन फोन और पेजर से लेकर स्मार्ट मोबाइल तक का सफर किया है!!
हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!

"हम-लोग, बुनियाद, रामायण, महाभारत" हमारे ही सामने टीवी पर आए हैं,
देखा है चंद्रकांता और चित्रहार-रंगोली के गाने, स्कूल में बड़े शौक से गुनगुनाये हैं!
मिनरल वाटर या आरओ जानते नहीं थे हम, नल के पानी से कभी बीमार नहीं हुए,
खूब खाएं हैं ठेले से जलेबी और समोसे, बारिश में भीगने से हमें कभी बुखार नहीं हुए!!
देर शाम तक मैदान में खूब खेलते थे चाहे घरवाले कितना भी डांटे,
टीचर की शिकायत कभी नहीं की चाहे मुर्गा बने या खाये हो गाल पर चाँटे !!
फेल होने पर कभी रोये नहीं, पढ़ाई को बोझ समझ कर कभी प्रेशर नहीं लिया है!!
हम 70s और 80s वाली पीढ़ी हैं, हमने भरपूर बचपन जिया है !!

:::
अम्बेश तिवारी
18.09.2022

Saturday, August 6, 2022

बस हमारे पास इतना ही बचा है !!

दो  नयन  हैं  रतजगे   से होंठ  पर  किस्से  ठगे  से
हाथ  रेखा  बिन   अभागे पाँव कुछ कुछ डगमगे से
और  मन  के  द्वार कोलाहल मचा है
बस  हमारे  पास  इतना  ही  बचा  है

एक   सावन   है   सुलगती   आग   जैसा
और    कुछ    अनुबंध   हैं   आधे   अधूरे
शाम है, कुछ सिसकियाँ हैं, हिचकियाँ भी
स्वप्न   हैं   जो    हो   न   पाए   मीत   पूरे
खेलते  हैं  खेल  जो  विधि  ने  रचा है
बस  हमारे  पास   इतना  ही  बचा  है

मोड़  वह  जिस  पर मुड़े तुम फिर न लौटे
वह  गली  जिसमें  तुम्हारा  घर  दिखा था
चित्र  वह  जिसको  सॅंभाला है अभी तक
गीत  वह  जो  देखकर  तुमको लिखा था
और यह जग, प्रेम जिसको कब पचा है
बस  हमारे  पास   इतना   ही   बचा  है

Friday, July 1, 2022

कानपुर मेरी जान !!

अजब, अनूठा, अलबेला सा कानपुर है मेरी जान!
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !
मुँह में पान, दिलों में मस्ती, यहाँ के लोगों की पहचान,
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

झाँसी की रानी का बचपन इस मिट्टी ने सींचा था,
इसी धरा पर भगतसिंह ने क्रांति पाठ भी सीखा था !!
विद्यार्थी जी के प्रताप से, देशभक्ति का बिगुल बजा,
वीर चन्द्रशेखर ने यहीं पर, नया क्रांति इतिहास रचा !
नमन हमारी पुण्य-भूमि, यह कानपुर मेरा अभिमान!!
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!!

सीता माँ की तपोभूमि जो, तपेश्वरी है, पावन धाम,
पनकी वाले बाबा की जय, बन जाते सब बिगड़े काम !
गँगा मईया के घाटों पर, अविरल रस धारा बहती,
हर हर महादेव बम भोले,  स्वरलहरी गुंजित रहती !!
यहाँ शिवालय के जयकारों, से होती हर सुबह प्रणाम !!
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

उद्योगों का केंद्र बना यह, और ज्ञान का है उपवन,
रोजगार मिलता लोगों को, शिक्षा से बदले जीवन !!
कला और विज्ञान ने मिलकर, अमन शान्ति पैगाम दिया !!
यहाँ की प्रतिभाओं ने दुनिया, भर में ऊँचा नाम किया !
आई आई टी और जीएसवीएम, दोनों अपने देश की शान !
कानपुर में बसा हुआ है, एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

जे के मंदिर, ग्रीन पार्क हो, या हो फूल बाग की छाँव
मोती झील की सुन्दरता में, टिकते नहीं धरा पर पाँव !
कभी न रुकते, कभी न झुकते, चलते रहते दिन और रात!
कनपुरिया मस्ती में जीते, चाहे कैसे हों हालात !!
दिल में हो तूफान भले पर चेहरे पर रहती मुस्कान ! 
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

अजब, अनूठा, अलबेला सा कानपुर है मेरी जान!
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !
मुँह में पान, दिलों में मस्ती, यहाँ के लोगों की पहचान,
कानपुर में बसा हुआ है एक छोटा सा हिंदुस्तान !!

Thursday, June 30, 2022

मैं पलभर दुखी नहीं होता !!

आज मम्मी का जन्मदिन है! हालांकि वो हमारे साथ नहीं हैं और 03-07-2016 को वो यह नश्वर शरीर छोड़कर परमधाम को चली गईं थीं पर मैं दुखी नहीं हूँ बल्कि खुश हूँ क्योंकि वो हमेशा मुझे खुश देखना चाहती थीं। आज उनके जन्मदिन के दिन मैं यह कविता उन्हें समर्पित करता हूँ !!

जन्मदिन मुबारक हो मम्मी !!

मैं पल भर दुखी नहीं होता!!
क्यों रोकर तुमको याद करूँ, तुमने तो सदा हँसाया था,
जीवन जीने का सही तौर, तुमने ही तो सिखलाया था।
कैसी भी विपदा आन पड़े, तुम सदा दिलासा देती थीं,
खुशियाँ हम सबके हिस्से में, दुख सारे खुद रख लेती थीं।
जब जीते जी मुझको रोता तुम देख नहीं सकती थीं माँ,
ईश्वर के घर से फिर मुझको कैसे देखोगी तुम रोता!!
मैं पलभर दुखी नहीं होता !!

तुम पास नहीं हो मेरे यह पलभर मुझको एहसास नहीं,
तुम तो मेरी जीवन शैली, तुम बिन मेरी एक श्वास नहीं।
मैं कैसे याद करूं तुमको जब, एक पल भूल नहीं पाता,
मेरी वाणी, मेरी स्मृति, मेरा लेखन तुमसे आता।
वो मुस्काता चेहरा हरदम मेरी आँखों में रहता है,
बस इसीलिए इन आँखों को, आँसू से कभी नहीं धोता!
मैं पलभर दुखी नहीं होता !!
::
अम्बेश तिवारी 
30-06-2022


Thursday, May 19, 2022

संस्मरण : इंटरव्यू भाग-2

संस्मरण : इंटरव्यू  भाग-2
जिन्होंने पिछला भाग नहीं पढ़ा वो कमेंट में दिए लिंक पर जाकर पढ़ लें जिससे आगे की कहानी समझ में आ जाये।

गतांक से आगे-
भण्डारी साहब की बात सुनकर मैं आश्चर्य से उनकी ओर देखता रह गया !! फिर उनको Thank You Sir बोलकर मैं उनके केबिन से निकला और याशिका मैडम के पास पहुंचा !!

"मैम वो भण्डारी सर ने आपसे मिलने के लिए..."
मेरा वाक्य पूरा होता इससे पहले ही उसने इशारे से मुझे बैठने के लिए बोला !! 
मैं बैठ गया ! उसने चपरासी को बुलाया और मेरी ओर देखकर बोली आप चाय लेंगे या कोल्डड्रिंक ?
Anything Mam !! मैंने जवाब दिया !
उसने चपरासी से दो चाय लाने को कहा फिर मुझे सामने बने एक छोटे से कॉन्फ्रेंस रूम में बुलाया और पूछा "आप पहले कभी बॉम्बे गए हैं ?"
मैंने न में सिर हिलाया तो वो बोली 
"ओके! अब मेरी बात ध्यान से सुनिए ! हमारा ऑफिस Lower Parel में बांद्रा-कुर्ला रोड पर है ! तो आपको लोकल से अंधेरी स्टेशन उतर कर West side जाना होगा! वहाँ से ऑटो या बस पकड़ कर जाना होगा !! मुम्बई में आपको लोकल ट्रेन से ही सफर करना होगा जो बेहद crowded होती है ! इसलिए luggage कम से कम ले जाना और जिस स्टेशन में उतरना हो उससे एक स्टेशन आगे का टिकट लेना ! जाते ही सबसे पहले Mumbai Local Train Guide खरीद लेना, उसमें रुट मैप बना रहता है तो जहाँ उतरना हो उससे एक स्टेशन पहले लोकल के गेट पर आ जाना !! लोकल केवल 30 सेकंड रूकती है उसी में चढ़ने वाले चढ़ते हैं और उतरने वाले उतर जाते हैं ! So be attentive !! यहाँ की तरह सो मत जाना। एक बात का खास ख्याल रखना कि हर लोकल में दो डिब्बे सिर्फ महिलाओं के लिए और दो डिब्बे फर्स्टक्लास के होते हैं। वो डिब्बे, बाकी डिब्बों से कुछ खाली दिखेंगे पर गलती से भी महिला डिब्बे या फर्स्टक्लास में मत बैठ जाना वरना बाद में बहुत पछताओगे! दूसरी बात Western Line में बांद्रा और Central Line में Sion से आगे साउथ बॉम्बे में ऑटो नहीं चलता है तो वहाँ लोकल या बस से ही सफर करना! गलती से भी टैक्सी मत करना! वरना जितने पैसे ले जा रहे हो वो एक बार में ही उड़ जाएंगे !! मैं किसी मन्त्रमुग्ध भक्त की तरह उसके प्रवचन बड़े ध्यान से सुन रहा था! फिर उसने एक पेपर पर कम्पनी का पूरा पता, फ़ोन नंबर, और वहाँ जाकर किससे मिलना है यह सारी detail लिखकर दे दी! 
वो मंगलवार दिन था और मुझे शनिवार को सुबह 10 बजे मुम्बई में इंटरव्यू देना था !! इतनी जल्दी रिज़र्वेशन मिलने का सवाल ही नही था तो मैंने उससे पूछा "मैडम ! यह जून का महीना है और इतनी जल्दी ट्रेन में सीट तो मिलेगी नहीं तो मैं जाऊंगा कैसे ?
उसने मुस्कराते हुए जवाब दिया "That's not our problem !! You have to manage anyhow !! अगर टी.टी. को अलग से कोई पैसा देना पड़े तो वो भी मिल जायेगा But you have to reach there at given time, otherwise you'll loose the opportunity !! 
मैंने अपनी चाय खत्म की, उसे thanks कहा और वहाँ से निकल पड़ा ! शाम 5 बजे घर पहुंचा! मम्मी-पापा को पूरी बात बताई ! और कहा कि किसी भी तरह से शुक्रवार की शाम तक मुम्बई पहुँचना है !! 
पापा ने पूछा "मुम्बई में रुकोगे कहाँ?" और "जाओगे कैसे?"
मुझे दोनों जवाब नहीं मालूम थे !
मैंने कहा "कुछ जुगाड़ करते हैं !!" 
अब कानपुर के लौंडे को और कुछ आता हो या न आता हो पर जुगाड़ टेक्नोलॉजी आती है !! 
मुझे याद आया कि कानपुर सेंट्रल के बाहर शकील पानवाले को मुम्बई के टिकट दिलाने में महारत हासिल है ! मैं सीधा शक़ील के पास पहुँचा ! उससे बात की तो वो बोला "हो जाएगा जुगाड़ पर 700 रू लगेंगे।" उन दिनों मुम्बई का टिकट 300 रू के आसपास था और वो दुगुने से ज्यादा माँग रहा था !! मैं उससे पैसे कम करवाने की मशक्कत में लगा ही था कि सामने से मुझे रमेश अंकल आते दिखे !! रमेश अंकल (पापा के दोस्त) रेलवे में TTE थे ! मैं दौड़कर उनके पास पहुँचा और पैर छुए !! 
"यहाँ कैसे?" उन्होंने पूछा! 
मैंने उन्हें पूरी बात बताई तो वो बोले "कहाँ इस fraud शक़ील के चक्कर मे पड़ गए ! यह किसी दूसरे के नाम से टिकट देगा और अगर कहीं रास्ते में बैच पड़ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे!" 
मैंने कहा "फिर क्या करूँ अंकल मुम्बई तो जाना ही है !" वो बोले "तुम कल 4 बजे तक आगरा फोर्ट स्टेशन में आकर मुझसे मिलो ! मैं वहाँ से तुम्हें मुम्बई भिजवा दूँगा! हर हालत में परसों रात तक मुम्बई पहुँच जाओगे!" मैं निश्चिंत हो गया ! वहाँ से वापस घर आकर मुम्बई जाने की तैयारी में जुट गया ! मम्मी अभी भी चिन्तित थीं कि पहली बार इतने बड़े शहर में अकेले जा रहा हूँ और वहाँ रुकने का कोई ठिकाना भी नहीं ! अब मुम्बई में हमारे कानपुर जैसे धर्मशाला तो होते नहीं थे !! बड़े होटल में रुकने का खर्च हम जैसे लोगों के लिए और भी मुश्किल था ! खैर मैंने उन्हें समझाया कि मैं किसी सस्ते होटल या लॉज में जुगाड़ कर लूँगा !! 

तो दूसरे दिन, मैं एक बिना ट्राली वाला सफारी का पुराना सूटकेस लेकर निकल पड़ा !! स्टेशन पहुँच कर आगरा का जनरल टिकट लिया और सामने खड़ी कालका मेल के स्लीपर कोच में घुस गया !! लगभग पौने चार बजे आगरा पहुँचा ! वहाँ TTE रेस्टरूम में रमेश अंकल से मिला ! उन्होंने आगरा से बांद्रा टर्मिनस की एक वेटिंग टिकट हाथ में देते हुए कहा , 
"सुनो बेटा! यहाँ से सवा छह बजे एक आगरा-कोटा एक्सप्रेस जाती है जो सबेरे 9 बजे कोटा पहुँचेगी ! इस गाड़ी के दो डिब्बे देहरादून से आने वाली देहरादून-बांद्रा एक्सप्रेस में जुड़ते हैं ! अभी इस गाड़ी में मैं बर्थ दिलवा दूँगा और कोटा में जो भी TTE हो उससे मेरा नाम बता देना तो कोटा से बांद्रा तक वो बर्थ दे देगा !!" 
ठीक है अंकल thank you so much !! 
चलो चाय पीकर आते हैं !! अंकल जी बोले !!
फिर वहाँ चाय नाश्ता करके हम ट्रेन का इंतज़ार करने लगे !! छह बजे वो मुझे लेकर 4 नम्बर प्लेटफ़ॉर्म पर गए उस ट्रेन के TTE से मेरा परिचय करवाकर बोले "मेरा भतीजा है! इसे बॉम्बे जाना है आप देख लेना जरा" 
मुझे बर्थ दिलवाकर अंकल जी चले गए !! मैं भी अपनी साइड अपर बर्थ में जाकर बैठ गया !!  सुबह करीब सवा सात बजे मैं कोटा पहुँचा !! वो दो डिब्बे जिन्हें उस ट्रेन में जुड़कर मुम्बई जाना था, उन्हें अलग करके बाकी ट्रेन वापस आगरा के लिए चली गई !! मैंने अपना सामान उन्हीं में से एक डिब्बे में एक बर्थ के नीचे बाँध दिया और नीचे उतरकर देहरादून एक्सप्रेस का इंतज़ार करने लगा !! आधे घण्टे बाद ट्रेन आयी !! मैं लपककर TTE के पास पहुँचा और बड़ी रंगबाजी से रमेश अंकल का परिचय देते हुए उससे बर्थ माँगी !!
"बर्थ नहीं है!"
उसने टका से जवाब दिया !!
मैंने फिर जोर देकर रमेश अरोड़ा जी का नाम बताया तो वो गुस्से से बोला 
"अरे जब बर्थ है नहीं तो क्या पैदा कर दें !"
जाओ जहाँ मन हो बैठ जाओ जाके ! अगर कोई बर्थ खाली हुई तो देखते हैं !!
मैं परेशान था क्योंकि अभी पूरे 20 घण्टे से ज्यादा का सफर बाकी था और इस गर्मी में बिना सीट के सफर काटना बेहद मुश्किल हो जाता !! खैर मरता क्या न करता ! जहाँ सामान बाँधा था वहीं जाकर खड़ा हो गया !! ट्रेन में वाकई जगह नहीं थी क्योंकि हर डिब्बे की 72 सीटों पर 100 से 120 लोग तो पहले से ही बैठे थे ! मैं मन ही मन रमेश अंकल को कोस रहा था कि कहाँ फँसा दिया यार !! खैर ट्रेन चली और मैं डिब्बे के बाथरूम के पास ज़मीन पर अखबार बिछा कर बैठ गया !! यूँ ही बैठे बैठे एक एक स्टेशन गुज़रता जा रहा था ! जब ट्रेन रुकती तो मैं उतर कर प्लेटफार्म पर थोड़ा टहल लेता और जब चलती तो फिर वहीं गेट के पास अखबार बिछा कर बैठ जाता !! राजस्थान के स्टेशनों में एक खास बात देखने मिली कि हर स्टेशन पर मारवाड़ी समाज के लोग मुफ्त जलसेवा दे रहे थे !! जैसे ही ट्रेन रुकती लोग दौड़कर डिब्बे के पास आकर खिड़कियों से आपकी बोतलें आदि ठन्डे पानी से भर देते थे !! उन दिनों स्टेशनों में ठण्डे पानी की मशीनों का सिस्टम नहीं शुरु हुआ था !!
खैर यह सब देखते देखते रतलाम स्टेशन आ गया ! इस समय दोपहर का ढाई बजा होगा !! यहाँ गाड़ी आधे घण्टे के लिए रुकी !! मैंने यहीं खाना खाया और फिर TTE के पास जाकर उनसे बर्थ के लिए अनुरोध किया !! पता नहीं क्यों पर उसे मेरी हालात पर तरस आ गया ! वो बोला जाओ S-9 की सात नम्बर बर्थ ले लो !! यह साइड लोअर बर्थ थी एकदम गेट से लगी हुई !! मैं दौड़कर अपना सामान ले आया और उस बर्थ पर कब्जा कर लिया !! और फिर राजस्थान और गुजरात के अलग अलग शहरों से होते हुए अगले दिन यानी शुक्रवार सुबह चार बजे मैं मुम्बई के बांद्रा टर्मिनस तक पहुँच गया !!
मैंने सोचा कि उजाला होने तक यहीं इंतज़ार करता हूँ फिर कुछ होटल आदि का इंतज़ाम करूँगा !! बाहर आकर पहले चाय पिया फिर उसी चायवाले से होटल के बारे में पूछा !! उसने बताया कि यहाँ ढेर सारे होटल हैं !! मैं तीन चार होटलों में गया पर सारे होटल महँगे थे !! कोई भी 1500 से नीचे नहीं था !! और मेरे पास कुल 2000 रू थे जिसमें से 250 रू खर्च हो चुके थे !! तो मुझे तीन चार सौ वाला होटल चाहिए था !! मैं वापस फिर उसी चायवाले के पास पहुँचा तो उसने कहा आप खार ईस्ट या सांताक्रुज ईस्ट चले जाइये वहाँ कुछ सस्ते लॉज मिल सकते हैं !! 
मैं लोकल ट्रेन से सांताक्रुज ईस्ट पहुंचा ! वहाँ पर एक ऑटो वाले से मैंने किसी सस्ते लॉज के बारे में पूछा ! मेरे लहज़े से वो समझ गया कि मैं भी भैया हूँ !! बोला कहाँ के हैं आप ? मैंने कहा कानपुर के !! 
वो बोला "अरे हम लालगंज रायबरेली से हैं !! आप तो मेरे ही इलाके हैं चलिए आपका कुछ तो इंतज़ाम करवाना ही पड़ेगा !!" वो मुझे थोड़ी दूरी पर एक सस्ते से लॉज में ले गया जिसका नाम अनिल गेस्ट हाउस था !! उसमें एक बड़े से हॉल में अलुमिनियम पार्टीशन करके 8×6 के छोटे छोटे केबिन बनाये गए थे !! जिसका किराया 300 रू रोज़ था !! मैंने एक केबिन ले लिया ! उसमें एक 6 बाय 3 का bed और बगल में एक चौकी पड़ी थी जिसमें एक जग में पानी और एक ग्लास था ! केबिन में बाहर से ताला लगा सकते थे पर ऊपर से सब एक ही था तो कोई सुरक्षा नहीं थी ! मैंने भी सोचा कि जब भी बाहर जाऊँगा तो रुपये और documents अपने साथ ही ले जाऊँगा !! रह गए कपड़े तो वो कोई क्यों चुराने लगा !! 
अब मेरे पास शुक्रवार का पूरा दिन था क्योंकि इंटरव्यू तो कल सुबह था इसलिए मैंने तय किया कि आज सबसे पहले जाकर कम्पनी का ऑफिस पता करूँगा जिससे कल इंटरव्यू के लिये समय से पहुँच सकूँ, फिर थोड़ा मुम्बई दर्शन किया जाएगा !! 
तो सुबह 10 बजे जीवन में पहली बार मुम्बई का वड़ापाव नाश्ते में खाकर मैं निकल पड़ा! पहले मुम्बई लोकल ट्रेन गाइड खरीदी फिर लोकल में बैठा। सांताक्रुज से अंधेरी केवल दो स्टेशन आगे है, पर मैंने टिकट जोगेश्वरी तक का लिया। पहली बार मुम्बई लोकल का सफर उसके peak hours में किया ! बाप रे ! कैसे रहते हैं लोग यहाँ !! इतनी भीड़ तो हमारे यहाँ केवल कार्तिक पूर्णिमा के मेले में या परेड की रामलीला में होती है।
थोड़ी देर बाद मैं Blue Cross Limited के ऑफिस के बाहर खड़ा था। बड़ी सी बिल्डिंग थी। उसके ठीक बगल में Himalaya कम्पनी का ऑफिस था। मुझे अपने होटल से यहाँ आने में लगभग 45 मिनट लगे। ऑफिस तो देख लिया अब क्या किया जाए ? मैंने खुद से सवाल किया और निकल पड़ा मुम्बई दर्शन को! सबसे पहले दादर स्टेशन पहुँचा जहाँ से shared taxi में बैठकर केवल 5रू में सिद्धिविनायक मन्दिर पहुँचा! गणपति दर्शन के बाद महालक्ष्मी मन्दिर और फिर गेटवे ऑफ इण्डिया ! शाम को जुहू में पहले अमिताभ बच्चन का बंगला प्रतीक्षा देखने गया। पर लोगों ने बताया कि अब वो यहाँ नहीं रहते। पास ही उनका दूसरा बंगला जलसा है उसमें रहते हैं। उनकी माताजी अभी भी इसी बंगले में रहती हैं। फिर मैं शाम को जुहू चौपाटी गया। वहाँ की भेल और पानीपुरी खाई। पूरे दिन खूब मस्ती करके देर रात लॉज पर पहुँचा। 

अगले दिन शनिवार को सुबह जल्दी तैयार होकर मैं कंपनी के ऑफिस 09:30 तक पहुँच गया! मुझे वहाँ Mr.N.Sateesh (National Sales Head) से मिलना था! Reception पर अपना परिचय देते हुए मैंने पूरी बात बताई! उन्होंने मुझे Mr.Rajesh Puri के पास भेजा जो शायद H.R.  Department से थे !  
पुरी साहब मुझे सतीश जी केबिन के बाहर तक ले गए और बोले अभी सर आये नहीं है! जब आएंगे तब आपको मिलवा देंगे। आप यहाँ इंतज़ार करिए। मैं बाहर पड़े सोफे पर बैठकर सतीश जी इंतज़ार करने लगा! 
लगभग पौने ग्यारह बजे एक छोटे से कद का घुंघराले बाल और मोटा से चश्मा लगाए एक व्यक्ति आया और मेरी ओर देखे बिना ही केबिन में   चला गया। शायद यही सतीश जी थे। मेरी धड़कने तेज हो रही थीं! यह पहला मौका था जब मैं किसी कम्पनी के National Head से मिलने जा रहा था। अब इंतज़ार मुश्किल हो रहा था।  लगभग साढ़े ग्यारह बजे, पुरी साहब हाथ में मेरी file लिए हुए उनके केबिन में दाखिल हुए! 5 मिनट बाद एक व्यक्ति आया और बोला जाइये आपको बुला रहे हैं। 
Sir May I Come in?
Yes please! Have a seat!
इंटरव्यू शुरू हुआ -

Q:- So tell me some thing about yourself?

Sir I am Ambesh Tiwari........के बाद पूरा एक traditional introduction.

Q:- This is first time you came to Bombay?

Yes Sir!!

Q:- When did you reached here?

Sir, Yesterday Morning!

Q:- So, what you did yesterday whole day?

Sir, I visited various places like Siddhi Vinayak, Gateway, Juhu Chaupati etc.

Q:-Very good! so you enjoyed a lot?

Yes Sir!

Q:- What are major products of your company?

Sir, It's Slimmerz(Weight reducing Capsule), Esulide-100DT(Nimesulide) Onkar-20 (Omeprazole) etc. 

Q:- Tell me about the indications and mode of action of Omeprazole.

Sir it is used for hyperacidity. 

Q:- and mode of action ??

Sorry Sir !!

Q:- OK, Mr.Tiwari please tell me the three major products of our company Blue Cross !!

Sorry Sir ! I don't know. 

Q:- Mr.Tiwari, you had plenty of time to spend ! Don't you think that you should gain the knowledge of the products of that company in which you are planning to work?

......................लम्बी खामोशी !! Sorry Sir !!

OK Mr.Tiwari, wait outside !!

मैं केबिन से बाहर निकल आया !! मैं समझ चुका था कि परिणाम क्या आने वाला है। दस मिनट बाद पुरी साहब बाहर आये और बोले आइए मेरे साथ !!
मुझे वो अपनी सीट पर ले गए और बोले "सॉरी ! तिवारी जी आपका selection नहीं हुआ है! आप अपना travelling expense इस फॉर्म में भर कर ले सकते हैं यह कहकर उन्होंने एक form मुझे दे दिया ! 
मैं आँखों में आँसू लिए वो फॉर्म हाथ में लेकर बाहर रिसेप्शन पर आ गया! किसी तरह काँपते हाथों से मैंने वो फॉर्म भर कर रिसेप्शन में जमा कर दिया। थोड़ी देर बाद पुरी साहब ने खर्चे के रुपये दिए और हाथ मिलाते हुए बोले "Better Luck next time!"
23 साल के जीवन में यह मेरा पहला Failure या Rejection था! जो आत्मविश्वास कल तक चरम पर था, आज वो धराशायी हो चुका था!

पर दोस्तों ज़िंदगी की असली लड़ाई इसके बाद शुरू हुई थी ! 
इस असफलता से मैं कैसे उबरा और कुछ दिनों के बाद Blue Cross से भी बड़ी कम्पनी J.B.CHEMICALS LTD यानी "Unique" में मुझे कैसे नौकरी मिली इसकी कहानी अगले भाग में !!

Tuesday, February 1, 2022

प्रतियोगिता दर्पण - एक छोटी सी लव स्टोरी

 साल 1998 की है ! हम ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में थे ! चूँकि मोहल्ले में हमारी इमेज एक पढ़ाकू लड़के की थी तो मन में बहुत सारे अरमान होते हुए भी साला इमेज के चक्कर में हम अपने ख्वाबों का गला घोंट कर गुड़ बॉय बने रहते थे!! 
हालाँकि सामने वाली गली में रहने वाली विनीता माथुर हमको बचपन से पसन्द थी पर बीस बिस्वा वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में जन्मे हम यानी मोहित बाजपेई पुत्र श्री रामरतन बाजपेई यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि भले इराक विश्वयुद्ध में अमेरिका को हरा दे या बांग्लादेश एकदिवसीय वर्ल्डकप जीत जाए पर पण्डित जी अपने लौंडे को कायस्थ की लड़की के साथ पेंच लड़ाते देख कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे !! इसलिए विनीता को मन ही मन बेहद चाहने के बावजूद हम कभी इज़हारे मोहब्बत करने की हिम्मत ही नहीं कर पा रहे थे। पर कमबख्त इस दिल का क्या करते जो उसके लिए पागल था!!
विनीता डीजी कॉलेज से बीए कर रही थी और हम डीएवी कॉलेज से बीएससी। दोनों का कॉलेज पासपास था तो हम कई बार हम उसे अपनी पुरानी चेतक स्कूटर पर लिफ्ट देने की पेशकश कर चुके थे। एकाध बार वो मान भी गयी पर हम Hi, Hello, how are you या ज्यादा से ज्यादा "पढ़ाई कैसी चल रही है" से आगे बढ़ ही नहीं पा रहे थे ! हमें बस एक मौके के तलाश थी और वो मौका हमें दिया "प्रतियोगिता दर्पण" ने !! 
तो किस्सा कुछ यूँ है कि उन दिनों हमारी उम्र के हर युवा के लिए बैंक, एसएससी आदि की तैयारी करना एक आवश्यक कर्म था और हम सब प्रतियोगिता दर्पण नामक मासिक पत्रिका पढ़ते थे! प्रतियोगिता दर्पण में हर माह एक निबन्ध प्रतियोगिता होती थी जिसके विजेताओं को क्रमशः 1001, 501 और 251 के प्रथम द्वितीय और तृतीय पुरस्कार दिए जाते थे। अगस्त 1998 की प्रतियोगिता दर्पण में निबंध का विषय था "नारी सशक्तिकरण में भारत की भूमिका"। चूँकि हमारी लेखन और भाषण कला पूरे मोहल्ले में जगप्रसिद्ध थी इसलिए एक दिन दोपहर में विनीता हाथ में किताबें लिए मेरे घर आयी। मम्मी से बोली आंटी मोहित है ? वो मुझे अपने कोर्स का कुछ पूछना है! मम्मी ने मुझे आवाज़ दी "मोहित देखो विनीता तुमसे कुछ पूछने आयी है!!"  मेरे तो बाँछे खिल गईं !! मेरे पहुंचने पर वो मैगज़ीन मुझे दिखाती हुए बोली "मोहित मेरे लिए यह निबन्ध लिख दो प्लीज !! मैं अपने नाम से भेजना चाहती हूँ" 
हमने छूटते ही सवाल किया "मान लो कि हमने निबन्ध लिखा और उस निबन्ध को इनाम मिला तो वो इनाम तो तुम रखोगी हमको क्या मिलेगा?"
उसने हँसते हुए जवाब दिया "पहले इनाम मिले तो,  फिर देखेंगे" 
इस संक्षिप्त मुलाकत के बाद हमने पूरी शिद्दत से उसके लिए निबन्ध लिखा और उसे दे दिया जिसे उसने अपने नाम से भेज दिया!! फिर मैं इस बात को भूल ही गया !!
पर दो महीने बाद एक दिन वो प्रतियोगिता दर्पण और मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए मेरे घर आई और बोली "मोहित !! तुम्हारे लिखे निबंध को द्वितीय पुरस्कार मिला है!! यह देखो किताब में मेरा नाम छ्पा है! तुम्हारी वजह से!! Thank you so much" "मालूम है मम्मी तो सारे रिश्तेदारों को फ़ोन करके बता चुकी हैं !!" उसने खुशी से चहकते हुए कहा !!
हूँ अच्छा है !! पर इन सबसे मुझे क्या फायदा!! मैंने स्टाइल मारते हुए बेरुखी से जवाब दिया !!
"अरे फायदा क्यों नहीं होगा !! यह लो ! उसने मेरे हाथ में कुछ पैसे और मिठाई का डिब्बा रख दिया !! और बताया कि मेरे लिखे उस निबन्ध को 501 रू का पुरुस्कार मिला था। उस जमाने में मनी-ऑर्डर आता था और डाकिया कुछ पैसे काटकर पैसे देता था तो विनीता को कुल 475/- रू मिले थे! वो सोंटे वाले हनुमान जी के मन्दिर में ग्यारह रूपये का प्रसाद चढ़ा कर बाकी बचे 464 रुपयों में से आधे यानी 232/- रूपये और प्रसाद मुझे देने के लिए लायी थी!! 
मैंने प्रसाद तो खा लिया पर इम्प्रैशन जमाने के लिए रुपये उसे वापस देते हुए कहा "मुझे रुपये नहीं चाहिए! यह तुम्हीं रखो !!"
पर वो जिद पर अड़ गयी "देखो तुमने मेहनत से लिखा था तो आधे पैसे पर तो तुम्हारा ही हक़ है"
अब मैंने उसे अपनी हैंडराइटिंग में कॉपी किया फिर मैगजीन के ऑफिस में रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजा तो आधे पैसे पर तो मेरा भी हक़ है न !! 
बस यही वो क्षण था जब मेरे दिमाग में खुराफात घूम गयी !! मैंने कहा कि मैं एक शर्त पर यह पैसे ले सकता हूँ, और वो यह कि, इन पैसों से हम दोनों एक फ़िल्म देखने चलें और फिर किसी अच्छे से रेस्तरां में बैठकर लंच करें !
उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली अच्छा बच्चू मेरे साथ डेट पर जाने का अच्छा बहाना ढूँढा है तुमने ! मैने हँसकर कहा "ऐसा ही समझ लो एक दिन के लिए तुम जस्ट फ्रेंड से मेरी गर्ल-फ्रेंड बन जाओ!"
वो हँसकर बोली ठीक है कल सोचकर बताऊँगी !! 
दूसरे दिन उसका लैंडलाइन पर फोन आया "मोहित मैं तैयार हूँ ! कब चलना है !" मैंने कहा कल कॉलेज के बाद दो बजे नवीन मार्किट में सिंह बुक स्टाल पर मिलो तब पूरा प्लान बताऊँगा!"
दूसरे दिन तय हुआ कि शनिवार को हम दोनों कॉलेज जल्दी छोड़ देंगे! 11:30 बजे मैं डीजी कॉलेज के सामने उसका इंतजार करूँगा!! वहाँ से हम दोनों हीर पैलेस में "कुछ कुछ होता है" देखेंगे और फिर क्वालिटी रेस्टोरेंट में खाना खाएंगे !! घर पर बोलकर आना है कि शाम 5 बजे तक लौटेंगे !!
तो तय समयानुसार हम दोनों मिले फिर उसे अपनी पुरानी स्कूटर पर बिठाकर हम फर्राटे से मालरोड की ओर निकल पड़े ! अभी फ़िल्म शुरू होने में समय था तो हम दोनों ने पहले बिरहाना रोड में शंकर के गोलगप्पे निपटाए क्योंकि उसको गोलगप्पे बहुत पसंद थे। 
"कुछ कुछ होता है" देखते हुए सिनेमाहॉल के भीतर क्या हुआ, इसे राज़ ही रहने देते हैं या यूँ कहें कि इसे आपकी कल्पना पर छोड़ देते हैं !! पर इतना जरूर था कि हॉल से निकलते वक्त हम दोनों यह बात जान चुके थे कि हम अब just friends तो नहीं थे।
इंटरवल में कोल्डड्रिंक और समोसा खाने के बाद पेट में ज्यादा जगह नहीं बची थी इसलिए हमने लंच के तौर पर पूरा खाना खाने के बजाय पहले क्वालिटी में डोसा और फिर रीटा में आइसक्रीम खाई! शायद ज़िन्दगी में पहली बार मैं किसी लडक़ी के साथ ऐसे घूम रहा था! पर यह सब करते हुए हमें कतई इस बात का भान नहीं रहा कोई हमें यह सब करते देख रहा था! 
जी हाँ !! जैसे हर लवस्टोरी में एक विलेन होता है वो यहाँ भी था !! माथुर अंकल के बगल में रहने वाले कपूर साहब का बेटा बन्टी जो बीएनडी कॉलेज के अपने दोस्तों के साथ फ़िल्म देखने आया था उसने हमारी पूरी गतिविधियों को नोट कर लिया था। पर चूँकि वो मोहल्ले में आवारागर्दी के लिए बदनाम था तो उसे मालूम था कि उसकी बातों पर कोई यकीन नहीं करेगा अतः उसने हमें बदनाम करवाने और हमारे किस्से को फसाना बनाकर हर घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी मोहल्ले में आटा-चक्की चलाने वाले केदार नाथ गुप्ता उर्फ कल्लू भईया को !! 
कल्लू भईया को आप चलता फिरता अखबार कह सकते हैं !! किसके घर में क्या चल रहा है, कौन कब  आ-जा रहा है, किसकी किससे लड़ाई चल रही है उनको सब पता होता था !! तो बन्टी ने कल्लू भईया को दो राजश्री की पुड़िया खिलाकर हमारी लवस्टोरी का प्रसारण पूरे मोहल्ले में करवा दिया !! 
बात माथुर अंकल के कान तक भी पहुँची ! उन्होंने पहले विनीता से पूछा ! थोड़ी टालमटोल के बाद विनीता ने पूरा किस्सा (सिनेमाहाल के अन्दर वाले हिस्से को छोड़कर) उनके सामने तोते की तरह उगल दिया ! माथुर अंकल मेरे पापा के उग्र स्वभाव से परिचित थे अतः उन्होंने मम्मी से बात की और अपनी तरफ से नमक-मिर्च लगा कर पेश किया पर मम्मी ने मेरी आशा के विपरीत प्रतिक्रिया देते हुए उन्हें यह कह कर समझा-बुझा के भेज दिया कि "भाई साहब ! यह उमर ही ऐसी है ! बच्चों ने कोई गलत काम नहीं किया है और मुझे उन दोनों पर पूरा यकीन है! आप निश्चिंत रहिए और लोगों की बातों पर ध्यान मत दीजिये बाकी मैं मोहित से बात करूंगी!!"
मम्मी ने हमसे पूछा तो हमने वही कहानी दोहरा दी ! मम्मी ने समझाया कि "बेटा देखो हमको तो कोई फर्क नहीं पड़ता पर अगर कहीं पापा को पता लग गया तो तुम जानते ही हो ! इसलिए हो सके तो विनीता से थोड़ा दूर ही रहो !! पर अब क्या फायदा था बन्टी और कल्लू भईया की कृपा से हम दोनों मोहल्ले के प्रेमीयुगल तो साबित हो ही चुके थे !! 
विनीता का हमसे मिलना जुलना बन्द हो चुका था! कॉलेज जाते समय उसके साथ जासूस के तौर पर मिश्रा जी की बेटी रुचि को लगा दिया गया था!! पर हम भी कम नहीं थे हमने अपने दोस्त नितिन की बहन गरिमा को सारी बात बताई जो विनीता और रुचि के साथ ही पढ़ती थी। हमने उससे कहा कि कॉलेज के बाद किसी तरह से थोड़ी देर के लिए रुचि को विनीता से दूर ले जाया करो जिससे हम कुछ देर उससे बात कर सकें !!
खैर यह मुलाकातों का सिलसिला ज्यादा दिन नहीं चला क्योंकि ग्रेजुएशन करते ही विनीता को उसके भाई विकास के पास लखनऊ भेज दिया गया और वो वहीं से एम.ए. की पढ़ाई करने लगी !! अब उससे कभी कभार ही मुलाक़ात होती थी वो भी सबके सामने मोहल्ले के कॉमन फंक्शन में !! 
ग्रेजुएशन के बाद मैं एक कम्पनी में नौकरी करने दिल्ली चला गया !! 2004 में मैं दिल्ली में ही था जब पता लगा कि विनीता की शादी हो गयी और उसका पति नोएडा में किसी कंपनी में इंजीनियर है!! एक दिन मैं वीकेंड में कानपुर आया हुआ था ! संडे रात की श्रमशक्ति से मुझे वापस जाना था! अचानक माथुर अंकल अपने हाथ में बनारसी के लड्डू का डिब्बा और एक किलो ग़ज़क लिए चले आ रहे थे ! आते ही मम्मी से बोले "भाभी जी कल देखा था मोहित को तो सोचा आज तो दिल्ली जा ही रहा होगा! उससे कहिए यह मिठाई और ग़ज़क विनीता के यहाँ पहुंचा देगा प्लीज !! विनीता का पता और मोबाइल नम्बर मैंने इस पर्ची में लिख दिया है!" उन्होंने पर्ची मेरे हाथ में थमा दी ! नोएडा सेक्टर 62 का पता था !! मैंने टालने के लिए कहा "अंकल मैं रहता हूँ द्वारका में और यह नोएडा सेक्टर 62 मेरे लिए एकदम उल्टा है! मैं अगले संडे से पहले नहीं जा पाउँगा !" पर मम्मी ने मेरी बात काटते हुए कहा "पर तेरा ऑफिस तो ओखला में हैं न ! कल शाम ऑफिस से निकल कर सीधे नोएडा चले जाना और रात तक वापस आ जाना !!" 
मैंने नाराजगी वाली नजरों से मम्मी की तरफ देखा !! पर मम्मी ने डिब्बे मेरे बैग में रख दिये और बोलीं एड्रेस संभाल कर रखना !! माथुर अंकल चले गए !!
मैं रास्ते भर विनीता के बारे में सोचता रहा !! अगले दिन मैंने 5 बजे ही ऑफिस छोड़ दिया! नेहरू प्लेस से नोएडा की बस पकड़ कर मैं हाथ में डिब्बा लिए चल दिया !! ठीक 6:15 पर मैं उसकी सोसाइटी के बाहर था! उसके फ्लैट 409 की घण्टी बजाते समय मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था !! 
दरवाजा खुला और एक खूबसूरत नौजवान सामने था !! "आप मोहित हैं न ?? मैं अभिषेक ! आइए अंदर आइए !!"
मैं उससे हाथ मिलाकर अन्दर गया !! पीछे से हल्के हरे रंग का सूट पहने विनीता आयी और जोर से बोली "कैसे हैं मोहित जी?"
"यह मैं मोहित से मोहित जी कब से हो गया विनीता?"
अरे यार नाराज़ क्यों होते हो बैठो तो पहले ! अभिषेक ने कहा।
मैंने कहा नहीं ऐसी कोई बात नहीं पर विनीता और मैं एक ही उम्र के हैं इसलिए कहा !!
फिर हम दोनों बातचीत करने लग गए वही नार्मल क्रिकेट, पॉलिटिक्स, सेंसेक्स आदि की बातचीत !
कुछ देर बाद चाय आयी और फिर खाना !! खाने की टेबल पर अभिषेक बोला "भाई मोहित मैं तो शाही पनीर बनवाना चाह रहा था पर विनी ने कहा कि तुम्हें पनीर के बजाय दम-आलू ज्यादा पसंद हैं तो हमने कहा यही सही !!" 
बातें करते करते कब 09:30 बज गए पता ही नहीं चला !! मैं चलने को हुआ तो अभिषेक बोले चलो मैं तुम्हें बस स्टैंड तक अपनी गाड़ी से छोड़ देता हूँ!
मैंने विनीता को गुडनाईट कहा और चल दिया ! मेरे बाहर निकलते ही अभिषेक ने विनीता की तरफ देखा और कहा देखा विनी !! मैं शर्त जीत गया !! 
विनीता के चेहरे पर हँसी और संतुष्टि का भाव नज़र आ रहा था !! पर मैं कुछ समझ नहीं पाया तो अभिषेक मेरे कन्धे पर हाथ रखकर बोला "अरे चलो रास्ते में बताता हूँ !" 
गाड़ी बाहर निकाल कर अभिषेक बोला सिगरेट चलेगी दोस्त ? मैंने हाँ में सिर हिलाया तो उसने गाड़ी के डैशबोर्ड से क्लासिक रेगुलर की डिब्बी निकाल कर एक सिगरेट मेरी ओर बढ़ाई और एक खुद ले ली !! लाइटर से सिगरेट जला कर वो बोला "यही सोच रहे हो न कि मेरी और विनी की क्या शर्त थी!!"
"तो सुनो कल रात में जब डैडी का फ़ोन आया कि उन्होंने तुम्हारे हाथ से मिठाई भेजी है तब से मैं विनी के चेहरे पर तनाव देख रहा था! कल रात मैंने कई बार पूछा पर उसने कुछ नहीं बताया !! अचानक आज सुबह उसने अपने आप मुझे तुम्हारी और उसकी प्रतियोगिता दर्पण वाली पूरी कहानी सुना दी !! मुझे बहुत अच्छा लगा कि चलो मेरी पत्नी को मुझ पर पूरा यकीन है और वो मुझसे कुछ छिपायेगी नहीं ! फिर मैंने उससे कहा कि अगर तुम इस बात को न भी बतातीं तो क्या फर्क पड़ता !! तब उसने कहा कि उसे डर था कि कहीं तुम यानी मोहित मेरे सामने कुछ ऐसा न कह दो  जिससे मुझे तुम दोनों पर शक हो जाये !"
तब जानते हो दोस्त मैंने क्या जवाब दिया ?
मैंने कहा माय डिअर विनी तुम हम लड़कों को नहीं जानती हम जिसे वाकई चाहते हैं न उसे कभी तकलीफ में नहीं देख सकते! अगर मोहित ने वाकई तुमसे प्यार किया होगा तो शर्त लगा लो, वो कुछ भी नहीं बोलेगा !! और देखो मोहित मैं शर्त जीत गया !!
उसने एक साँस में सब कुछ कह दिया!!
मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा "दोस्त तुमने शर्त ही नहीं, मेरा दिल भी जीत लिया !! विनीता तुम्हारे साथ बहुत खुश रहेगी !!"
इसके बाद हम दोनों बिना कुछ कहे उसकी गाड़ी में बैठ गये !! रेडियो सिटी 103.4 एफएम पर गाना बज रहा था -
"भंवरे ने खिलाया फूल, फूल को ले गया राजकुंवर"

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©अम्बेश तिवारी

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

  मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया ! स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र ...