Thursday, December 19, 2013

राहुल जी संभल जाओ, लोग आपको फंसा रहे हैं.......................

आदरणीय राहुल जी,
      वैसे मुझे पूरा विश्वास है कि आप  यह पत्र पढने वाले नहीं हैं फिर भी मैं लिख रहा हूँ क्योंकि पता लगा है कि आपको सब मिलकर कांग्रेस का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने जा रहे हैं, अगर कहीं ऐसा हो गया तो मुझे बहुत बुरा लगेगा क्योंकि ये तो वही बात हुई कि करे कोई और भरे कोई | सब मिलकर आपको बलि का बकरा बनाना चाहते हैं | पर खैर इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेने से पहले आपको कुछ बातें गहराई से समझ लेनी चाहिए |
मैं जानता हूँ कि आपने अपने चारों ओर जो चाटुकार मंडली बना रखी है वो कभी भी आपको आपके मंत्रियों द्वारा की गयी गलतियों के बारे में ईमानदारी से राय नहीं देगी पर मैं कांग्रेस का एक बहुत पुराना वोटर होने के नाते आपको कुछ बताना चाहता हूँ | आपका 2004-2009 तक का यूपीए शासन बेहद अच्छा और उत्साहजनक था पर 2009 के बाद से आप लोग लगातार घोटालों और भ्रष्टाचार के दलदल में फंसते चले गए पर शायद आपकी पार्टी के नेता और मंत्री इस अहंकार में आ गए कि न तो आप कभी गद्दी से हटेंगे और न ही भाजपा कभी सत्ता में आ सकती है पर क्या आपके नेताओं और मंत्रियों को कभी यह एहसास नहीं हुआ कि जनता अपनी खुली आँखों से यह सबकुछ देख रही है और हर चाल को समझ रही है, इसलिए कभी न कभी इसका अंत सुनिश्चित है | आप लोगों ने आम जनता की आवाज़ सुनना, उसकी मंशा को समझना, उसके कष्टों को समझना कुछ भी जरूरी नहीं समझा | आप बताइए! सर एक आम आदमी जो साधारण नौकरी करता है (जिसका वेतन साल में एक बार 500 से 1000 रुपये बढ़ता है), जो रिक्शा चलाता है, मजदूरी करता है, सब्जी की दुकान लगाता है, सड़कों से कचरा बीनता है, आपकी सरकार की गलत नीतियों के कारण बढ़ी महंगाई से कैसे मुकाबला कर सकता है? आप कहते हैं सस्ता अनाज देंगे पर किसकी जेब से? मध्यमवर्ग की जेब काट कर ही देंगे न? ये जो दिल्ली में आम आदमी पार्टी हैं न ये सिर्फ और सिर्फ मध्यमवर्ग है और यह हर जगह है | यह UP, MP, BIHAR, PUNJAB हर जगह दुखी है| पर आप इस आम मध्यमवर्गीय व्यक्ति की तकलीफ को समझने में पूरी तरह से असफल रहे |
आप उसके वोटों की इस गणित को समझने में भी असफल रहे कि पहले सिर्फ 35-45% वोटिंग होती थी और एक बहुत बड़ा वर्ग जो की मध्यमवर्ग और युवावर्ग होता था वो न तो वोट डालता था और न हीं राजनीति के प्रति इतना जागरूक होता था पर अब 65-75% और कहीं कहीं 80% वोटिंग हो रही है और यह जो एक्स्ट्रा 30% वोटर है यह वही मध्यमवर्गीय और गरीब युवा है जो आज महंगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार से पीड़ित है पर आपने, आपकी पार्टी ने, और आपके पार्टी के नेताओं ने न सिर्फ इनकी अनदेखी की बल्कि मौके बेमौके इनका मज़ाक भी उड़ाया | आज वही युवा आपका मज़ाक उड़ा रहा है | एक और बात जो आप और आपकी पार्टी के नेता समझने में असफल रहे कि जिस गरीब और निम्नवर्गीय जनता के लिए आप मनरेगा, भूमि अधिग्रहण बिल, और खाद्य सुरक्षा बिल लेकर आये हैं वो भी सिर्फ इस मध्यमवर्गीय युवा के मौखिक और सोशल मीडिया पर किये गए प्रचार के चलते आपसे दूर होता चला जा रहा है | पर आप और आपकी पार्टी के नेता उस मध्यमवर्गीय युवा की ताकत का वास्तविक आंकलन करने में असफल रहे | ये निम्नवर्गीय जनता अभी इतनी समझदार नहीं है कि टीवी पर दिखाए गए आपके लुभावने विज्ञापनों का सही आंकलन कर सके | आपने दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान और म.प्र. में खूब विज्ञापन दिखाए पर उसका कोई असर नहीं हुआ लेकिन जब उसी निम्नवर्गीय जनता के आस पास रहने वाला कोई मध्यवर्गीय व्यक्ति (जो उसके रोज़गार का साधन उसको मुहैया कराता है) उसे आपके खिलाफ भड़काता है तो आपकी सारी केंद्रीय लाभकारी योजनाओं के बावजूद वो आपके विरूद्ध हो जाता है |
इसके अलावा एक और ख़ास बात जो आप समझने में असफल रहे वो यह कि इस देश में अभी भी 90 करोड़ हिन्दू रहते है और सिर्फ 20 करोड़ मुस्लिम | यह 90 करोड़ हिन्दू भले जातियों के आधार पर आपस में विभाजित हों पर जब बात धार्मिकता की आती है तो सब एक हो जाते हैं| आपकी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति के कारण उस निम्नवर्गीय हिन्दू समुदाय को बीजेपी बड़ी आसानी अपनी तरफ मोड़ रही है जिसे कायदे से आपकी केंद्र सरकार की योजनाओं से लाभान्वित होने के कारण आपके साथ खड़ा होना चाहिए था| आपके नेता ऐसे ऐसे बयान देते रहते हैं कि उन्हें न तो बहुसंख्यक समुदाय की परवाह है, और न देश की सुरक्षा की उनके लिए सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के वोट जरूरी है| आपको क्या लगता है कि भाजपा जो इतने भारी बहुमत से म.प्र., राजस्थान, या छत्तीसगढ़ में जीती है ये सिर्फ भाजपा के मुख्यमंत्रियों का अच्छा काम है या श्री नरेन्द्र मोदी का कोई जादू है? जी ऐसा 100% बिलकुल नहीं है! इसमें बहुत बड़ा हाथ आपकी सरकार, नीतियों, कार्यप्रणाली और आपके नेताओं के दिए गए बयानों के प्रति आम जनता का गुस्सा है और भाजपा और श्री नरेन्द्र मोदी ने सिर्फ इस गुस्से की आग को भड़काने के लिए खूब हवा दी है|
पर मैं यह मानता हूँ कि इस देश को न तो नरेन्द्र मोदी की जरूरत हैं, न राहुल गाँधी की और न ही अरविन्द केजरीवाल की बल्कि इस देश को जरूरत है चुनावी सिस्टम में व्यापक बदलाव की, वोट, तुष्टिकरण, जाति, धर्म, भाषा, धनबल, बाहुबल और घृणा की राजनीति के अंत की, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, अशिक्षा, जैसी समस्यायों के निदान के लिए मजबूत और दृढ इच्छाशक्ति वाले नेतृत्व की, जनता की समस्याओं को समझने वाले नेता की | व्यक्ति कभी बदलाव नहीं लाते बल्कि व्यक्तियों द्वारा बनाया गया सिस्टम एक बड़ा बदलाव ला सकता है |
मैं आपका ध्यान भाजपा की एक बहुत बड़ी कमी की ओर ले जाना चाहता हूँ कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भले ही कितना भी सशक्त हो पर इनके जनप्रतिनिधि जैसे विधायक और सांसद जमीनी स्तर पर कभी जनता के लिए काम नहीं करते हैं बल्कि हमेशा नशे में रहते हैं और जनता को भी नशे में रखते हैं| कभी इन्होने श्री अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता और राम मंदिर के मुद्दे का नशा लोगों में फैलाया था और सोचते रहे सिर्फ उस नाम और मुद्दे के सहारे बिना काम किये जनता इनको वोट देती रहेगी पर जब वो नशा टूटा तो जनता जाग गयी और यह लोग सत्ता से बाहर हो गये| आज यह लोग नरेन्द्र मोदीके नशे में है और वही नशा जनता में फैला रहे हैं पर यकीन मानिए यह नशा भी उतर जाएगा, एक बार उन्हें सत्ता में आ जाने दीजिये| यह बात आप भी जानते हैं कि श्री नरेन्द्र मोदी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है कि वो आते ही देश की सारी समस्याएं पल भर में दूर कर देंगे| श्री नरेन्द्र मोदी भले ही कितने अच्छे नेता हो पर मुझे पूरा यकीन है कि इनके जनप्रतिनिधि फिर नशे में ही रहेंगे और जनता के लिए काम नहीं करेंगे | आप देखिये इनका पूरा प्रचार सिर्फ नरेन्द्र मोदी के नाम पर और कांग्रेस की कमियां गिनाने पर केन्द्रित है | किसी भी भाजपा के नेता या प्रचारक से यह पूछ लीजिये कि 2004 या 2009 में लोकसभा चुनाव क्यों हारे थे तो कोई भी जवाब नहीं दे पायेगा | पर फिर भी लोग उन्हें पसंद कर रहे हैं और विकल्प के रूप में देख रहे हैं क्योंकि लोग आपसे नाराज हैं, दुखी हैं और उनके पास कोई और विकल्प नहीं है| आपको यह समझने की जरूरत है कि ठीक इसी तरह जब 5 साल बाद जब लोग भाजपा से निराश, नाराज़ और दुखी होंगे तो वो फिर से विकल्प की तलाश करेंगे|
तब आपको वो विकल्प बनने के लिए अपने आपको अभी से तैयार करना होगा वर्ना कहीं ऐसा न हो कि जैसे आज दिल्ली में आम आदमी पार्टी भाजपा के विकल्प के रूप में सामने हैं वैसे ही 5 साल बाद वो सारे देश में भाजपा का विकल्प बन जाये | यहाँ एक बात आपके पक्ष में है कि आपके पास सारे भारत में एक बनी बनाई पहचान और मजबूत संगठन है जो अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी को बनाने में अभी बहुत समय लगेगा| यही वो समय है जब आप अपनी पार्टी की कार्यप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करें और खुद को और अपनी पार्टी को मध्यम और निम्नवर्गीय युवाओं से जोड़े| इसके लिए आपको अपने आसपास उन लोगों को रखना होगा जो बिना किसी निजी स्वार्थ के आपको निष्पक्ष सलाह दे सके न कि ऐसे लोग जो आपको वास्तविकता से दूर रखते हैं|
एक और बहुत महत्वपूर्ण बात जो आपको समझनी चाहिए कि एक ऐसी चीज़ जो आपके पास श्री नरेन्द्र मोदी से बहुत ज्यादा है और वो है समय | आप अभी 43 वर्ष के हैं और मोदी 63 के | सोचिये आप के पास अभी सक्रिय राजनीति के लिए 40 वर्ष हैं और नरेन्द्र मोदी के पास सिर्फ 20 | अभी जीवन बहुत बड़ा है और बहुत सी लड़ाइयाँ है | सोचिये जब आप 63 के होंगे तब मोदी 83 के होंगे तब वो आयु के उस ढलान पर होंगे जहाँ आज लाल कृष्ण आडवाणी है| जहाँ तक मैंने श्री नरेन्द्र मोदी को समझा है मेरे ख्याल से यदि वो 10-15 साल भाजपा में शीर्ष पद पर रह जाते हैं तो भाजपा में उनके बराबर कोई नेता नहीं होगा | तब श्री नरेन्द्र मोदी के बाद भाजपा में नेतृत्व का वही संकट खड़ा होगा जो 80 के दशक में श्रीमती इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस में था| 
राहुल जी हम कांग्रेस के वोटर हैं और 1947 से कांग्रेस का समर्थन करते आये हैं, हमने तब भी कांग्रेस को वोट दिया जब 1977 में पूरा देश जयप्रकाश नारायण के जनांदोलन का समर्थन कर रहा था, तब भी जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पूरे देश में बोफोर्स घोटाले के चलते एक कांग्रेस विरोधी माहौल बना दिया था | हम तब भी कांग्रेस के साथ थे जब 1991, 1996, 1998, 1999 पूरा उत्तर भारत भाजपा के राम मंदिर आन्दोलन और अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता के साथ खड़ा था| उस समय भी हम आपके साथ थे जब कांग्रेस नरसिंह राव, सीताराम केसरी, की नेतृत्व अक्षमता, शरद पवार, अर्जुन सिंह, और नारायण दत्त तिवारी जैसे नेताओं के विरोध और राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया और जीतेन्द्र प्रसाद की मृत्यु के कारण बेहद कमजोर हालत में थी |
पर राहुल जी, आज हमारा पूरा परिवार, पूरा मोहल्ला, सारे रिश्तेदार, मित्र, परिचित, सहकर्मी और जिससे भी मैं मिलता हूँ सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस का विरोध करते हैं | उनमे से कुछ नरेन्द्र मोदी और भाजपा को वोट देने की बात करते, कुछ आम आदमी पार्टी को समर्थन देते हैं और कुछ अपने अपने निजी स्वार्थों और समीकरणों के कारण सपा और बसपा को वोट देना चाहते है पर पिछले 6 महीने में मुझे एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला जो खुल कर आत्मविश्वास के साथ कांग्रेस को वोट या समर्थन देने की बात कहता हो |
मैं यह कहना चाहता हूँ कि भले 2014 की गेंद आपके हाथ से फिसल चुकी हो पर आपके लिए आने वाले 5 साल सुनहरा मौका है इस देश की राजनीति को बदलने का | आप लगे रहिये, अपने आपको तपाते रहिये और देखिएगा 5 या 10 साल बाद फिर देश आपकी तरफ देख रहा होगा| तब तक हो सके तो अपने आसपास बैठे दिग्गियों, मनीष तिवारिओं, सिब्बलों, और चिदाम्बरमों से छुटकारा पा लीजिये |

आपके उत्तर का अभिलाषी
कांग्रेस का एक परम्परागत वोटर 

Monday, November 18, 2013

समाज का डर-एक छोटी सी कहानी

मित्रों आज अपनी लिखी हुई एक छोटी सी कहानी आप लोगों के साथ बांटना चाहूँगा इस कहानी के तीन पात्र हैं-  एक मध्यमवर्गीय पति, उसकी पत्नी भावना और उन दोनों की बेटी निमिषा |


सुनो! मैं अपनी निमिषा को Co-Education में नहीं पढ़ाऊंगी! रात में सोते वक़्त भावना ने आदेश सुनाया |

पर क्यों? मैंने पूछा |

मैंने कह दिया नहीं तो नहीं बस ! आप वो ****** Girls School में एडमिशन करवाने का कोई जुगाड़ लगाओ या फिर ****** Girls Convent  भी अच्छा है उनमे एडमिशन भी आसानी से हो जायेगा  भावना ने इस बार थोडा तेज़ आवाज़ में जोरदार ढंग से अपनी बात कही|

पर वो जहाँ पढ़ रही है वो भी अच्छा स्कूल है और ****** Girls School या ****** Girls Convent  ये दोनों काफी दूर हैं हमारे घर से और आने जाने में लगभग दो घंटे बर्बाद होंगे, उसके इसके अलावा खर्चा बढेगा वो अलग, वो जहाँ पढ़ रही है उसे वहीँ पढने दो मैंने कहा |

 “मैं कुछ नहीं जानती मुझे उसे Co-Education में नहीं पढ़ाना तो नहीं पढाना बस” भावना ने फिर वही रट दोहराई |

आखिर बात क्या है कुछ बताओगी? मैंने पूछा

भावना ने कोई जवाब नहीं दिया !

ये आज तुम्हे Co-Education में नहीं पढ़ाने वाला भूत कहाँ से सवार हो गया है, तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है आखिर?मैंने खुलकर जानना चाहा |

Co-Education में पढने वाली लड़कियां बिगड़ जाती हैं !” भावना ने दो टूक जवाब दिया |

पर तुम तो Co-Education में नहीं पढ़ी हो तुम कैसे बिगड़ गयी मैंने बात को मज़ाक में टालने के लिए कहा |

देखो मुझे सीरियस मैटर्स पर मज़ाक बिलकुल पसंद नहीं, मैं यहाँ तुमसे एक सीरियस टॉपिक डिस्कस करना चाहती हूँ और तुम्हे अपना सेन्स ऑफ़ ह्यूमर दिखाने से फुर्सत नहीं इस बार भावना थोडा गुस्से में थी |

चलो मज़ाक नहीं करते हैं पर तुम्ही बताओ क्या Co-Education में पढ़ने वाले सारे बच्चे बिगड़ जाते हैं? मुझे लगता है जरूर तुम्हारे मन में कोई और बात है जो तुम मुझसे छिपा रही हो” मैंने उसे शांत करते हुए कहा |

तुम्हे कभी अपने ऑफिस, टीवी, फेसबुक और ब्लॉग लिखने से फुर्सत मिल जाये तो आँख खोल कर देख लेना कि समाज में क्या-क्या हो रहा है और क्या क्या गुल खिला रही हैं आजकल की लड़कियां भावना ने मुझे ताना देते हुए कहा |

यार! तुम मुझे सीधे सीधे यह बताओगी कि हुआ क्या है या ऐसे ही पहेलियों में बात करती रहोगी?” मैंने सीधे मुद्दे पर आते हुए पूछा |

तुम्हे पता है वो कोने वाले शुक्ला जी की लड़की जो B.Tech करके नॉएडा में नौकरी कर रही थी, उसने क्या किया?” भावना ने पूछा |

अब मुझे कैसे पता होगा? तुम्ही बताओमैंने प्रतिप्रश्न किया |

उसने अपने साथ पढने वाले एक साउथ इंडियन लड़के के साथ कोर्ट मैरिज कर ली और अब एक महीने बाद शुक्ला जी को पता लगा| भावना ने बताया |

तो इस घटना का अपनी निमिषा के Co-Education में पढने से क्या सम्बन्ध है? मैंने कहा |

देखो ज्यादा अनजान मत बनो! मुझे लगता है कि Co-Education में पढने वाली लड़कियां कुछ ज्यादा ही बोल्ड हो जाती हैं तभी उनमे इस तरह के कदम उठाने की हिम्मत आ जाती है” भावना ने अपने मन का डर खुलकर बताया |

देखो तुम घबराओ मत, अपनी निमिषा इस तरह का कोई काम नहीं करेगी मैंने उसे समझाते हुए कहा|
तुम यह कैसे कह सकते हो? उसने आशंका जताई |

क्योंकि उसे ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी, वो जिससे भी चाहेगी, मैं उसकी शादी करने के लिए तैयार हो जाऊंगा मैंने हँसते हुए जवाब दिया |

वाह! बहुत अच्छी शिक्षा और संस्कार दे रहे हो तुम अपनी बेटी को, मतलब तुम अभी से उसे यह सिखा रहे हो कि वो हमारी मर्ज़ी से नहीं बल्कि अपनी मर्ज़ी से शादी करने के लिए आज़ाद है उसने लगभग गुस्से में आते हुए कहा|

हाँ मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं मना नहीं करूंगा मैंने कहा |

मतलब तुम्हे समाज का कोई डर नहीं है उसने पूछा |
नहींमैंने जवाब दिया |

और फिर हम दोनों के बीच यह बहस काफी देर तक चलती रही जब तक मैंने आत्मसमर्पण करके इस मसले को कुछ समय के लिया टाल नहीं दिया |

हाँ कहानी के अंत में एक बात मैं आप सबको जरूर बताना चाहूँगा कि मेरी बेटी निमिषा अभी सिर्फ 6 साल की है और क्लास फर्स्ट में पढ़ती है |

Wednesday, November 13, 2013

नरेन्द्र मोदी की बात और मुफ्त का प्रचार.......

किसी पत्रकार ने नरेन्द्र मोदी के बारे में ठीक ही कहा था कि आप उनका समर्थन कर सकते हैं, आप उनका विरोध कर सकते हैं पर आप उन्हें नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते | पर आजकल मैं देख रहा हूँ कि लोगों में मोदी का नाम लेकर प्रचार पाने की होड़ सी लगी हुई है | अभी कुछ दिन पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे जा चुके डॉ. यूआर अनंतमूर्ति ने कहा था कि वे ऐसे देश में नहीं रहना चाहेंगे जिस पर मोदी का शासन हो। कुछ महीने पहले उन्होंने मीडिया से बात करते हुए नरेंद्र मोदी की तुलना जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर से की थी। डॉ. यूआर अनंतकृष्णमूर्ति ने मोदी की तुलना इटली के फासीवादी तानाशाह मुसोलिनी से भी कर चुके हैं। उनका कहना है कि मोदी का नाम आते ही उन्हें मुसोलिनी की याद आ जाती है। 

इससे पहले कांग्रेस के नेता उन्हें "मौत का सौदागर" और "दानव" तक बता चुके हैं और आज जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर हरबंस मुखिया ने नरेंद्र मोदी की तुलना मुगल शासक औरंगजेब से की है। मुखिया कहते हैं कि मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के लिए अब तक जो रास्ता अपनाया है उसमें औरंगजेब की चतुराई और रास्ते के कांटों के लिए निर्ममता साफ झलकती है।
जनवरी, 2010 में कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर ने नरेंद्र मोदी की तुलना इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन से कर डाली थी। स्थानीय निकाय चुनावों में मतदान को अनिवार्य करने की गुजरात सरकार की कोशिशों पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए अय्यर ने मोदी को सद्दाम जैसा बताया था।

पाकिस्तान में कई लोग नरेंद्र मोदी के कद से परेशान हैं। मशहूर पाकिस्तानी पत्रकार, लेखिका और फिल्मकार बीना सरवर के मुताबिक, 'जिस तरह से आप लोग (भारतीय) हाफिज सईद के बढ़ते असर से चिंतित हैं, ठीक उसी तरह पाकिस्तान में लोग मोदी के बढ़ते कद से परेशान हैं। सईद से डर थोड़ा कम है क्योंकि वह निकट भविष्य में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि नहीं बनने वाले हैं।' पाकिस्तान के न्यूज चैनल एआरवाई के एंकर और पत्रकार आमिर गौरी भी मोदी और उनके भाषणों की तुलना हाफिज सईद से करते हैं।

इससे भी मजेदार बात यह है कि जब मशहूर गायिका स्वर कोकिला और भारत रत्न से सम्मानित सुश्री लता मंगेशकर ने कहा कि वो श्री नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनते देखना चाहती हैं तो कांग्रेस के एक मंत्री भक्त चरण दास ने यहाँ तक कह डाला कि लता जी को कितने लोग जानते हैं? ये भक्त चरण दास वहीँ है जो उन्नाव में सपने के आधार पर की जाने वाली खुदाई के मुख्य कर्ताधर्ता थे|

हाँ! यहाँ मैं नोबल पुरस्कार से सम्मानित श्री अमर्त्य सेन का जिक्र करना भूल गया जिन्होंने कहा था कि भारत का नागरिक होने के नाते वो नहीं चाहते कि मोदी देश के प्रधानमंत्री बने|
मसला यह है कि आखिर क्यों नरेन्द्र मोदी इतने महत्वपूर्ण हो गए कि हर कोई या तो उनके समर्थन में है या विरोध में | इससे पहले भी देश में चुनाव हुए हैं और 2009 में भाजपा के प्रत्याशी श्री अडवाणी जी भी कट्टर संघ के प्रचारक और हिंदूवादी नेता थे, और तो और वो 1992 की विवादित ढांचा विध्वंश के मामले में आरोपी भी हैं तब क्या कारण है कि उनके खिलाफ हमें इस तरह के बयान देखने को नहीं मिले |

मतलब साफ़ है लोग जानते हैं कि इस समय पूरे देश में नरेन्द्र मोदी के नाम की एक जबरदस्त लहर है और मोदी के समर्थक उनके खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनना चाहते जबकि उनके विरोधी इसी आस में बैठे रहते हैं कि कोई बड़ी शाख्शियत उनके खिलाफ कुछ बोले और वो लोग उसका जमकर प्रचार करें |

पर एक बात तो तय है कि नरेन्द्र मोदी का नाम इस समय जबरदस्त लाइमलाइट में है और हर व्यक्ति उनके नाम के साथ अपना नाम जोड़ कर प्रचार पाने के जुगाड़ में है |
किसी और की क्या बात करें मैं स्वयं भी यह ब्लॉग इसीलिए लिख रहा हूँ कि शीर्षक में मोदी का नाम देखकर ज्यादा से ज्यादा लोग इस ब्लॉग को पढेंगे|

चलिए आप भी करते रहिये मोदी की चर्चा अच्छी या बुरी कुछ भी पर मोदी की बात होनी चाहिए..........

Saturday, November 9, 2013

कॉर्पोरेट जगत की विसंगतियां

मित्रों यह कहानी आज कल के कॉर्पोरेट जगत की विसंगतियों पर लिखा गया एक व्यंग है जिसे धार्मिक प्रतीकों के माध्यम चित्रित किया गया है | मेरा उद्देश्य किसी समुदाय विशेष की धार्मिक भावनाओं को ठेस पंहुचाना कतई नहीं है|
यदि इस कहानी से किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो मैं उसके लिए क्षमा चाहता हूँ| मैं इस कहानी का लेखक नहीं हूँ बल्कि यह कहानी एक आईआईएम के प्राध्यापक द्वारा लिखी गयी थी और कई वर्ष पूर्व मुझे मेरे एक मित्र ने मेल से भेजी थी जो मूल रूप से अंग्रेजी में थी मैंने केवल उसका हिंदी अनुवाद किया है............

लंका का युद्ध समाप्त करने के बाद हनुमान जी अपनी छुट्टियाँ बिताने चित्रकूट चले गए और वहां आराम से राम जी द्वारा निर्मित विशेष झरने (जिसे हम हनुमान धारा के नाम से जानते हैं) में स्नान का आनंद ले रहे थे कि तभी अयोध्या के फाइनेंस और एकाउंट्स डिपार्टमेंट से उनके लैपटॉप पर एक मेल आया कि उन्हें अपने advance dues क्लियर करने हैं जो एडवांस उन्होंने लंका से हिमालय पर जाने और संजीवनी बूटी लाने के लिए लिया था| हनुमान जी पहले मेल पर कोई ध्यान नहीं दिया पर 3-4 रिमाइंडर मेल्स और CUG  मोबाइल पर लगातार कॉल आने के बाद मजबूरन हनुमान जी अपनी छुट्टियाँ कैंसिल करके अयोध्या लौट आये|

उन्होंने अपने TA, DA, बिल, सुषेन वैद्य का बिल , रास्ते में कालनेमि से लड़ने के खर्चे, संजीवनी बूटी की कीमत, लौटते समय भरत जी के तीर से घायल होने पर फर्स्ट ऐड के खर्चे, Transportation Charges और Misc Expenses आदि आदि तुरंत सबमिट कर दिया|

1.       आपकी Tour Sanction Report कहाँ है ?  HR Dept ने पुछा | हनुमान जी ने किसी तरह 2–3 बार मिन्नतें करके वो रिपोर्ट सम्बंधित अधिकारियों से प्राप्त कर ली|

2.       हनुमान जी ने Air Travel का T.A. bill क्लेम किया था पर उन्हें केवल सेकंड क्लास स्लीपर का किराया दिया गया और अन्य खर्चों जैसे सुषेन वैद्य का बिल , रास्ते में कालनेमि से लड़ने के खर्चे, संजीवनी बूटी की कीमत, लौटते समय भरत जी के तीर से घायल होने पर फर्स्ट ऐड के खर्चे, के बिल का पेमेंट नहीं किया गया क्योंकि उन खर्चों के लिए कोई सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट नहीं था |

जब उन्होंने इसका कारण पुछा तो उन्हें बताया गया कि

a)       अपने पद के हिसाब से आप सिर्फ सेकंड क्लास स्लीपर के ही entitled हैं|
b)       आप उन चीज़ों के लिए क्लेम नहीं कर सकते हैं जिनका प्रॉपर बिल आपके नहीं है|

तब हनुमान जी श्री राम से जाकर मिले और उन्हें अपने यात्रा खर्चे पर की गयी कटौती की जानकारी दी| श्री राम को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने तुरंत HR Manager और Accounts Manager को बुलाया और कहा कि हनुमान जी को तुरंत उनका Air travel और अन्य खर्चों का पेमेंट किया जाये तब HR Manager ने उनको HR Manual और Marketing Manual दिखाते हुए कहा कि यह नियम महाराज दशरथ जी के पिता जी द्वारा बनाए गए थे अब यदि आप मर्यादा पुरुषोत्तम होते हुए अपने पूर्वजों द्वारा बनाये गए नियमों का उल्लंघन करना चाहते हैं तो मुझे कोई समस्या नहीं है|
श्री राम कुछ न बोल सके| उन्होंने ने हनुमान जी के लिए दूसरा उपाय सोचा और उनसे कहा कि तुम अपना बाकी का अमाउंट मुझसे कैश ले लो | पर हनुमान जी श्री राम से कैश कैसे ले सकते थे ?

उन्होंने प्रभु को उत्तर दिया हे प्रभु मैं लक्ष्मण जी सेवा के लिए आपसे कैश कैसे ले सकता हूँ ? लक्ष्मण जी मेरे लिए उतने ही आदरणीय हैं जितने आप|

हनुमान जी मन ही मन सोचने लगे क्यों उन्होंने एकाउंट्स डिपार्टमेंट की बातें सुनकर अपनी छुट्टियाँ कैंसिल करी, सारी औपचारिकताएं पूरी करी, और उनके कारण श्री राम को एक ऐसी असमंजसपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ा|
हनुमान जी इस घटना के बाद भी श्री राम और अयोध्या के साथ उसी निष्ठा से काम करते रहे जैसे वो इस घटना के पहले कर रहे थे|

मित्रों हनुमान जी तो भगवान थे पर हम जैसे तुच्छ मानवों को इस घटना से एक सबक लेना चाहिए और वो यह कि

बिना समुचित पूर्वस्वीकृति के कोई भी काम न करें, चाहे काम कितना भी अतिआव्यश्यक और महत्वपूर्ण क्यों न हो

ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, यह औपचारिकताएं पूरी करने में हो सकता है लक्ष्मण जी न बचे! बस इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा|  
 



Friday, November 1, 2013

जैसे उनके दिन फिरे :: श्री हरि शंकर परसाई का व्यंग

वर्षों पहले लिखा हुआ प्रसिद्ध व्यंगकार श्री हरिशंकर परसाई जी व्यंग पर आज के समय में भी कितना प्रासंगिक ------

एक था राजा। राजा के चार लड़के थे। रानियाँ? रानियाँ तो अनेक थीं, महल में एक 'पिंजरापोल' ही खुला था। पर बड़ी रानी ने बाकी रानियों के पुत्रों को जहर देकर मार डाला था। और इस बात से राजा साहब बहुत प्रसन्न हुए थे। क्योंकि वे नीतिवान थे और जानते थे कि चाणक्य का आदेश है, राजा अपने पुत्रों को भेड़िया समझे। बड़ी रानी के चारों लड़के जल्दी ही राजगद्दी पर बैठना चाहते थे, इसलिए राजा साहब को बूढ़ा होना पड़ा।

एक दिन राजा साहब ने चारों पुत्रों को बुलाकर कहा, पुत्रों मेरी अब चौथी अवस्था आ गई है। दशरथ ने कान के पास के केश श्वेत होते ही राजगद्दी छोड़ दी थी। मेरे बाल खिचड़ी दिखते हैं, यद्यपि जब खिजाब घुल जाता है तब पूरा सिर श्वेत हो जाता है। मैं संन्यास लूँगा, तपस्या करूँगा। उस लोक को सुधारना है, ताकि तुम जब वहाँ आओ, तो तुम्हारे लिए मैं राजगद्दी तैयार रख सकूँ। आज मैंने तुम्हें यह बतलाने के लिए बुलाया है कि गद्दी पर चार के बैठ सकने लायक जगह नहीं है। अगर किसी प्रकार चारों समा भी गए तो आपस में धक्का-मुक्की होगी और सभी गिरोगे। मगर मैं दशरथ सरीखी गलती नहीं करूँगा कि तुम में से किसी के साथ पक्षपात करूँ। मैं तुम्हारी परीक्षा लूँगा। तुम चारों ही राज्य से बाहर चले जाओ। ठीक एक साल बाद इसी फाल्गुन की पूर्णिमा को चारों दरबार में उपस्थित होना। मैं देखूँगा कि इस साल में किसने कितना धन कमाया और कौन-सी योग्यता प्राप्त की। तब मैं मंत्री की सलाह से, जिसे सर्वोत्तम समझूँगा, राजगद्दी दे दूँगा। जो आज्ञा, कहकर चारों ने राजा साहब को भक्तिहीन प्रणाम किया और राज्य के बाहर चले गए।

पड़ोसी राज्य में पहुँचकर चारों राजकुमारों ने चार रास्ते पकड़े और अपने पुरुषार्थ तथा किस्मत को आजमाने चल पड़े। ठीक एक साल बाद - फाल्गुन की पूर्णिमा को राज-सभा में चारों लड़के हाजिर हुए। राजसिंहासन पर राजा साहब विराजमान थे, उनके पास ही कुछ नीचे आसन पर प्रधानमंत्री बैठे थे। आगे भाट, विदूषक और चाटुकार शोभा पा रहे थे। राजा ने कहा, 'पुत्रों ! आज एक साल पूरा हुआ और तुम सब यहाँ हाजिर भी हो गए। मुझे उम्मीद थी कि इस एक साल में तुममें से तीन या बीमारी के शिकार हो जाओगे या कोई एक शेष तीनों को मार डालेगा और मेरी समस्या हल हो जाएगी। पर तुम चारों यहाँ खड़े हो। खैर अब तुममें से प्रत्येक मुझे बतलाए कि किसने इस एक साल में क्या काम किया कितना धन कमाया' और राजा साहब ने बड़े पुत्र की ओर देखा।

बड़ा पुत्र हाथ जोड़कर बोला, 'पिता जी, मैं जब दूसरे राज्य में पहुँचा, तो मैंने विचार किया कि राजा के लिए ईमानदारी और परिश्रम बहुत आवश्यक गुण है। इसलिए मैं एक व्यापारी के यहाँ गया और उसके यहाँ बोरे ढोने का काम करने लगा। पीठ पर मैंने एक वर्ष बोरे ढोए हैं, परिश्रम किया है। ईमानदारी से धन कमाया है। मजदूरी में से बचाई हुई ये सौ स्वर्णमुद्राएँ ही मेरे पास हैं। मेरा विश्वास है कि ईमानदारी और परिश्रम ही राजा के लिए सबसे आवश्यक है और मुझमें ये हैं, इसलिए राजगद्दी का अधिकारी मैं हूँ।'

वह मौन हो गया। राज-सभा में सन्नाटा छा गया। राजा ने दूसरे पुत्र को संकेत किया। वह बोला, 'पिताजी, मैंने राज्य से निकलने पर सोचा कि मैं राजकुमार हूँ, क्षत्रिय हूँ - क्षत्रिय बाहुबल पर भरोसा करता है। इसलिए मैंने पड़ोसी राज्य में जाकर डाकुओं का एक गिरोह संगठित किया और लूटमार करने लगा। धीरे-धीरे मुझे राज्य कर्मचारियों का सहयोग मिलने लगा और मेरा काम खूब अच्छा चलने लगा। बड़े भाई जिसके यहाँ काम करते थे, उसके यहाँ मैंने दो बार डाका डाला था। इस एक साल की कमाई में पाँच लाख स्वर्णमुद्राएँ मेरे पास हैं। मेरा विश्वास है कि राजा को साहसी और लुटेरा होना चाहिए, तभी वह राज्य का विस्तार कर सकता है। ये दोनों गुण मुझमें हैं, इसलिए मैं ही राजगद्दी का अधिकारी हूँ।' पाँच लाख सुनते ही दरबारियों की आँखें फटी-की फटी रह गईं।

राजा के संकेत पर तीसरा कुमार बोला, 'देव मैंने उस राज्य में जाकर व्यापार किया। राजधानी में मेरी बहुत बड़ी दुकान थी। मैं घी में मूँगफली का तेल और शक्कर में रेत मिलाकर बेचा करता था। मैंने राजा से लेकर मजदूर तक को साल भर घी-शक्कर खिलाया। राज-कर्मचारी मुझे पकड़ते नहीं थे क्योंकि उन सब को मैं मुनाफे में से हिस्सा दिया करता थ।। एक बार स्वयं राजा ने मुझसे पूछा कि शक्कर में यह रेत-सरीखी क्या मिली रहती है? मैंने उत्तर दिया कि करुणानिधान, यह विशेष प्रकार की उच्चकोटि की खदानों से प्राप्त शक्कर है जो केवल राजा-महाराजाओं के लिए मैं विदेश से मँगाता हूँ। राजा यह सुनकर बहुत खुश हुए। बड़े भाई जिस सेठ के यहाँ बोरे ढोते थे, वह मेरा ही मिलावटी माल खाता था। और मँझले लुटेरे भाई को भी मूँगफली का तेल-मिला घी तथा रेत-मिली शक्कर मैंने खिलाई है। मेरा विश्वास है कि राजा को बेईमान और धूर्त होना चाहिए तभी उसका राज टिक सकता है। सीधे राजा को कोई एक दिन भी नहीं रहने देगा। मुझमें राजा के योग्य दोनों गुण हैं, इसलिए गद्दी का अधिकारी मैं हूँ। मेरी एक वर्ष की कमाई दस लाख स्वर्णमुद्राएँ मेरे पास हैं।' 'दस लाख' सुनकर दरबारियों की आँखें और फट गईं।

राजा ने तब सब से छोटे कुमार की ओर देखा। छोटे कुमार की वेश-भूषा और भाव-भंगिमा तीनों से भिन्न थी। वह शरीर पर अत्यंत सादे और मोटे कपड़े पहने था। पाँव और सिर नंगे थे। उसके मुख पर बड़ी प्रसन्नता और आँखों में बड़ी करुणा थी। वह बोला, 'देव, मैं जब दूसरे राज्य में पहुँचा तो मुझे पहले तो यह सूझा ही नहीं कि क्या करूँ। कई दिन मैं भूखा-प्यासा भटकता रहा। चलते-चलते एक दिन मैं एक अट्टालिका के सामने पहुँचा। उस पर लिखा था 'सेवा आश्रम'। मैं भीतर गया तो वहाँ तीन-चार आदमी बैठे ढेर-की-ढेर स्वर्ण-मुद्राएँ गिन रहे थे। मैंने उनसे पूछा, भद्रो तुम्हारा धंधा क्या है?' 'उनमें से एक बोला, त्याग और सेवा।' मैंने कहा, 'भद्रो त्याग और सेवा तो धर्म है। ये धंधे कैसे हुए?' वह आदमी चिढ़कर बोला, 'तेरी समझ में यह बात नहीं आएगी। जा, अपना रास्ता ले।' स्वर्ण पर मेरी ललचाई दृष्टि अटकी थी। मैंने पूछा, 'भद्रो तुमने इतना स्वर्ण कैसे पाया?' वही आदमी बोला, 'धंधे से।' मैंने पूछा, कौन-सा धंधा? वह गुस्से में बोला, 'अभी बताया न! सेवा और त्याग। तू क्या बहरा है?'

'उनमें से एक को मेरी दशा देखकर दया आ गई। उसने कहा, 'तू क्या चाहता है?' 'मैंने कहा, मैं भी आप का धंधा सीखना चाहता हूँ। मैं भी बहुत सा स्वर्ण कमाना चाहता हूँ।' उस दयालु आदमी ने कहा, 'तो तू हमारे विद्यालय में भरती हो जा। हम एक सप्ताह में तुझे सेवा और त्याग के धंधे में पारंगत कर देंगे। शुल्क कुछ नहीं लिया जाएगा, पर जब तेरा धंधा चल पड़े तब श्रद्धानुसार गुरुदक्षिणा दे देना।' पिताजी, मैं सेवा-आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने लगा। मैं वहाँ राजसी ठाठ से रहता, सुंदर वस्त्र पहनता, सुस्वादु भोजन करता, सुंदरियाँ पंखा झलतीं, सेवक हाथ जोड़े सामने खड़े रहते। अंतिम दिन मुझे आश्रम के प्रधान ने बुलाया और कहा, 'वत्स, तू सब कलाएँ सीख गया। भगवान का नाम लेकर कार्य आरंभ कर दे।' उन्होंने मुझे ये मोटे सस्ते वस्त्र दिए और कहा, 'बाहर इन्हें पहनना। कर्ण के कवच-कुंडल की तरह ये बदनामी से तेरी रक्षा करेंगे। जब तक तेरी अपनी अट्टालिका नहीं बन जाती, तू इसी भवन में रह सकता है, जा, भगवान तुझे सफलता दें।'

'बस, मैंने उसी दिन 'मानव-सेवा-संघ' खोल दिया। प्रचार कर दिया कि मानव-मात्र की सेवा करने का बीड़ा हमने उठाया है। हमें समाज की उन्नति करना है, देश को आगे बढ़ाना है। गरीबों, भूखों, नंगों, अपाहिजों की हमें सहायता करनी है। हर व्यक्ति हमारे इस पुण्यकार्य में हाथ बँटाये : हमें मानव-सेवा के लिए चंदा दें। पिताजी, उस देश के निवासी बडे भोले हैं। ऐसा कहने से वे चंदा देने लगे। मझले भैया से भी मैंने चंदा लिया था, बड़े भैया के सेठ ने भी दिया और बड़े भैया ने भी पेट काटकर दो मुद्राएँ रख दीं। लुटेरे भाई ने भी मेरे चेलों को एक सहस्र मुद्राएँ दी थीं। क्योंकि एक बार राजा के सैनिक जब उसे पकड़ने आए तो उसे आश्रम में मेरे चेलों ने छिपा लिया था। पिताजी, राज्य का आधार धन है। राजा को प्रजा से धन वसूल करने की विद्या आनी चाहिए। प्रजा से प्रसन्नतापूर्वक धन खींच लेना, राजा का आवश्यक गुण है। उसे बिना नश्तर लगाए खून निकालना आना चाहिए। मुझमें यह गुण है, इसलिए मैं ही राजगद्दी का अधिकारी हूँ। मैंने इस एक साल में चंदे से बीस लाख स्वर्ण-मुद्राएँ कमाई जो मेरे पास हैं।'

'बीस लाख' सुनते ही दरबारियों की आँखें इतनी फटीं कि कोरों से खून टपकने लगा। तब राजा ने मंत्री से पूछा, 'मंत्रिवर, आपकी क्या राय है? चारों में कौन कुमार राजा होने के योग्य है?' मंत्रिवर बोले, 'महाराज इसे सारी राजसभा समझती है कि सब से छोटा कुमार ही सबसे योग्य है। उसने एक साल में बीस लाख मुद्राएँ इकट्ठी कीं। उसमें अपने गुणों के सिवा शेष तीनों कुमारों के गुण भी हैं - बड़े जैसा परिश्रम उसके पास है, दूसरे कुमार के समान वह साहसी और लुटेरा भी है। तीसरे के समान बेईमान और धूर्त भी। अतएव उसे ही राजगद्दी दी जाए। मंत्री की बात सुनकर राजसभा ने ताली बजाई।

दूसरे दिन छोटे राजकुमार का राज्याभिषेक हो गया। तीसरे दिन पड़ोसी राज्य की गुणवती राजकन्या से उसका विवाह भी हो गया। चौथे दिन मुनि की दया से उसे पुत्ररत्न प्राप्त हुआ और वह सुख से राज करने लगा। कहानी थी सो खत्म हुई। जैसे उनके दिन फिरे, वैसे सबके दिन फिरें।

Friday, October 25, 2013

“आप इस्तीफ़ा मत देना पी एम साहब”

आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
न चाहते हुए भी आज आपको यह पत्र लिख रहा हूँ | वैसे यह पत्र लिखने का मेरा उद्देश्य आपके पद की गरिमा को कम करना नहीं है मैं आज भी आपका उतना ही सम्मान करता हूँ, जितना तब करता था जब लोग आपको ईमानदार मानते थे| वैसे आप लोगों पर मत जाइए लोगों का क्या है वो तो कुछ भी मान लेते हैं| कभी आसाराम को भगवान् मानते थे और आज पता नहीं क्या क्या मानते हैं| जिन नरेन्द्र मोदी को आपकी पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गाँधी जी ने मौत का सौदागर कहा था आज जनता उनको होने वाला प्रधानमंत्री मान रही है | नॉन सेन्स पीपुल !
वैसे कल आपका हवाई जहाज से दिया हुआ बयान बहुत धांसू था कि मैं कानून से ऊपर नहीं और मैं सीबीआई का सामना करने को तैयार हूँ| आप बोलते बहुत अच्छा हैं! यह बात अलग है कि आज कल आप हवाई जहाज में ज्यादा बोल रहे हैं और ज़मीन पर कम बोलते हैं| हो सकता है कि आपको हवा में रहना ज्यादा अच्छा लगता हो पर  यह जानकार अच्छा लगा कि आपके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है वैसे बात भी सही है जो कुछ आपने और आपकी सरकार ने पिछले 9 साल में किया है वो सब तो भले देर से ही सही पर जनता के सामने आ चुका है तो अब आप क्या छिपाएंगे?
चलिए आपको थोडा सा पास्ट में ले चलते हैं| अगस्त 2012 में जब यह कोयला घोटाला सामने आया था और बीजेपी आपसे इस्तीफा मांग रही थी तब संसद भवन से बाहर निकलते समय आपने पत्रकारों के सामने यह शेर पढ़ा था
हजारों जवाबों से अच्छी मेरी ख़ामोशी है,
न जाने कितने सवालों की इसने आबरू रखी है

तब भी आपने यही कहा था मेरे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है पर एक साल बाद पता लगा कि फाईलें ही गायब हो गयी | चलिए कोई बात नहीं आप कोई चौकीदार थोड़ी हैं जो फाईलों को ताकते रहे, यही कहा था न आपने राज्यसभा में?
 पर आजकल आपका मूड देख कर लग रहा है कि हालात कुछ ठीक नहीं हैं कहीं आप इस्तीफा देने का मूड तो नहीं बना रहे हैं ?
 प्लीज़! सर ऐसा मत कीजियेगा! अब इस्तीफा देने का कोई तुक नहीं बनता हैं| जब पिछले नौ साल से बीजेपी सिर्फ आपका इस्तीफा ही मांगती रही और आप सहन करते रहे| आपके बारे में अगर गूगल पर सर्च कर लो तो पता नहीं कैसे कैसे कार्टून और जोक्स निकल कर सामने आते हैं पर आप वो भी सहन कर लेते हैं| कहीं पढ़ा था कि जब आप योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे और राजीव गाँधी ने योजना आयोग के सदस्यों को Bunch of Jokers कहा था तब आप इस्तीफा देने को तैयार हो गए थे पर फिर समझाए जाने पर आपने राजीव गाँधी को माफ़ कर दिया था और अपना अपमान सहन कर लिया| आपको संसद के अन्दर नारे लगा लगा कर प्रधानमंत्री चोर है कहा गया, उस दिन बायगॉड आप गुस्सा तो बहुत हुए पर आपने वो भी सहन कर लिया| आपके हस्ताक्षर किये हुए अध्यादेश को आपकी पार्टी के उपाध्यक्ष ने बकवास कह कर फाड़ने वाला बता दिया पर आपने वो अपमान भी सहन कर लिया|
 वैसे आपके इतने अपमान हुए हैं कि यह अनुमान लगाना थोडा सा मुश्किल है कि कौन सा वाला अपमान इस्तीफा देने के लायक था| अब जब आपने इतने दिन सहन किया है तो अब तो बहुत थोड़े दिन रह गए हैं सर अब अपना कार्यकाल पूरा करके जाईये| इज्जत तब भी नहीं मिली थी और अब भी नहीं मिलेगी| लेकिन इस देश में प्रधानमंत्री की इज्जत हो या न हो भूतपूर्व प्रधानमंत्री की जरूर होती है|
 इसलिए जस्ट एन्जॉय! और बाय बाय
 आपका
 एक आम आदमी (अरविन्द केजरीवाल की पार्टी वाला आम आदमी नहीं!) 

Thursday, October 24, 2013

आप बहुत याद आयेंगे "मन्ना दा"



आज सुबह सुबह एक बुरी खबर सुनने को मिली कि हम सबके चहेते महान गायक मन्ना डे अब हमारे बीच नहीं रहे | सुन कर काफी दुःख हुआ ! यूँ तो वो काफी लम्बे समय से बीमार थे पर फिर भी उनके जैसा गायक हजारों में एक ही होता है |

मन्ना डे का नाम आते ही कुछ बेहतरीन नगमे कानों में गूंजने लगते हैं | 1955 में बनी फिल्म सीमा में बलराज साहनी पर फिल्माया और शंकर जयकिशन का संगीतबद्ध किया हुआ गीत "तू प्यार का सागर है" हो या अशोक कुमार पर फिल्माया मेरी सूरत तेरी आँखें फिल्म का गीत "पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई" या आनंद का "ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय" या पड़ोसन का "एक चतुर नार " और भी न जाने कितने अनगिनत नगमे ..............

काबुलीवाला का "ऐ मेरे प्यारे वतन" अगर 15 अगस्त और 26 जनवरी को न सुने तो लगता है कुछ कमी रह गयी और आज भी जब मन इस दुनिया की झंझटों से उब जाता है और परेशान होता है तो अक्सर मोबाइल पर फिल्म उपकार का "कसमे वादे प्यार वफ़ा सब" सुन कर मन को हल्का कर लेता हूँ | 

"ऐ मेरी जोहरा ज़बीं" और "यारी है ईमान मेरा" जैसी कव्वालियाँ किसी भी महफ़िल में हमेशा चार चाँद लगाती रही हैं"

वो मन्ना डे ही थे जिन्होंने कहा था "सुर न सजे क्या गाऊँ मैं " पर मन्ना दा के सुर हमेशा सजे और रफ़ी, मुकेश और किशोर जैसे दिग्गजों के बीच शास्त्रीय गायक के रूप में उनकी पहचान हमेशा बनी रही | 

उनके गीत हमेशा हमारे दिलों पर राज करते रहेंगे | ये शब्द सिर्फ श्रद्धांजलि के शब्द नहीं है ये मेरे मन के शब्द हैं जो मन्ना डे के जाने से बेहद दुखी है !

“व्हाट इज इन द नेम”

शेक्सपियर ने यह वाक्य कब और किस सन्दर्भ में कहा था ये तो वो ही जाने (हालांकि ये वाक्य जहाँ भी लिखा होता है उसके नीचे उनका नाम William Shakespeare जरूर लिखा होता है),  पर जब उन्होंने यह बात कही होगी तब उन्हें इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं होगा कि आने वाले समय में इसी नाम का लोग कितना फ़ायदा उठाने वाले हैंक्या वाकई नाम इतना महत्वपूर्ण होता है ? मैं तो कहता हूँ बिलकुल होता हैअगर होता तो हमारे गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में यह क्यों लिखते-

क्रोध पावक जर सकेमन समुद्र समाय |
पुत्र अबला कर सके , नाम कालहि खाय ||

वास्तव में अगर गौर करें तो नाम क्या है ? क्या नाम सिर्फ हमारी पहचान का प्रतीक है या उस से भी बढ़ कर कुछ और ? मान लीजिये मेरा नाम अम्बेश तिवारी होताकुछ और होता तो क्या कोई फर्क पड़ता ? चलिए मेरी बात छोड़ दीजिये मैं तो आम आदमी हूँ (अरविन्द केजरीवाल की पार्टी वाला आम आदमी नहीं नार्मल आम आदमी) पर मुझे लगता है कि नाम हमारे जीवन बहुत अधिक महत्व रखता हैजैसे उदाहरण के लिए बचपन में कई वर्षों तक मैं यही समझता था कि मम्मी जिस चीज़ में पूड़ी या पराठा बनाती हैं वो डालडा हैबाद में पता चला कि यह वनस्पति घी है जिसे डालडा नामक एक ब्रांड के नाम से बेचा जाता है | डबल रोटी या ब्रेड को आज भी बहुत से पुराने लोग मॉडर्न कह कर बुलाते हैं | नूडल्स आज भी सिर्फ मैग्गी ही है और भी बहुत सी ऐसी चीज़ें है जिनका ब्रांड का नाम आज भी मूल उत्पाद से अधिक प्रचलित है जैसे फेविकोल एक आसंजक (चिपकाने वाला पदार्थ अंग्रेजी में Adhesive) है यह कितने लोग जानते है ?

पर जानना चाहिए और इन उत्पादों की वास्तविकता को समझना और परखना चाहिए क्योंकि यह हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं और कई बार इसी ब्रांडिंग का सहारा लेकर सत्तारूढ़ दल सत्ता  में वापसी का रास्ता भी तलाश करते हैं |

इसका सबसे ताजा उदाहरण है कि केंद्र की यूपीए सरकार अब तक की सबसे बड़ी कल्याणकारी योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा का नामकरण इंदिरा गांधी के नाम करने पर विचार कर रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि छह लाख करोड़ रुपये से अधिक की यह योजना पार्टी की छवि को चमका देगी और पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों तथा इसके बाद लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को इसका लाभ मिलेगा। सरकार इस योजना का नाम इंदिराम्मा अन्न योजना रखने पर विचार कर रही है। अगर कांग्रेस पार्टी अपनी योजना में सफल हो जाती हैतो यह किसी भी राजनीतिक दल द्वारा वोट बैंक पर मारा गया सबसे बड़ा धावा होगा। कांग्रेस ने सार्वजनिक धन को अपने नेताओं की छवि चमकाने और चुनावी लाभ हासिल करने में लगाने के तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। पार्टी ने पहले ही सुनिश्चित कर रखा है कि तमाम प्रमुख सरकारी योजनाएंपरियोजनाएं और संस्थानों के नाम नेहरू-गांधी परिवार-राजीवइंदिरा और नेहरू के नाम पर रहें। इससे चुनाव में कांग्रेस को लाभ मिलता हैलेकिन अभी तक किसी भी अधिसत्ता या एजेंसी ने सार्वजनिक धन के इस बेहूदा दुरुपयोग पर सवाल नहीं उठाए। अगर हम अपने आस पास नज़र डाले तो पाएंगे कि कुल मिलाकर 450 से अधिक केंद्रीय और प्रादेशिक कार्यक्रमोंपरियोजनाओं और संस्थानों का नामकरण कांग्रेस पार्टी के तीन नेताओं के नाम पर किया जा चुका है। इनमें शामिल हैं 28,000 करोड़ रुपये की राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजनाइससे भी अधिक राशि वाला राजीव गांधी पेयजल मिशन, 7,000-10,000 करोड़ रुपये की इंदिरा आवास योजना और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय बुजुर्ग पेंशन योजना आदि। पिछले दो दशकों में जवाहरलाल नेहरू के नाम पर जवाहरलाल नेहरू रोजगार योजना और जवाहरलाल नेहरू रिन्यूएबल मिशल योजनाएं चल रही हैं। जवाहरलाल नेहरू रिन्यूएबल मिशन में सात साल के दौरान 50,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होंगे। नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर अन्य योजनाओं में राजीव गांधी नेशनल क्त्रेच स्कीम फॉर चिल्ड्रन ऑफ वर्किंग मदर्सराजीव गांधी उद्यमी मित्र योजनाराजीव गांधी श्रमिक कल्याण योजना और राजीव गांधी शिल्पी स्वास्थ्य बीमा योजना शामिल हैं। इस सूची में हालिया योजना है राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम। यहां तक कि दलित छात्रों के लिए छात्रवृत्तियोजना भी राजीव गांधी के नाम पर है। दलित छात्रों के लिए छात्रवृत्तियोजना का नामकरण राजीव गांधी के नाम पर करने का क्या तुक हैइस वर्ग के नागरिकों के उत्थान में राजीव गांधी का क्या योगदान है?

मतलब यह कि उनके नाम की ब्रांडिंग हर व्यक्ति तक किसी किसी रूप में पहुंच जाए। नवजात शिशुक्रेज में जाने वाले छोटे बच्चेस्कूल में पढ़ने वाले बच्चेकॉलेज में जाने वाले युवागर्भवती महिलाएंकारखानों के कामगारकारीगरस्टॉक मार्केट के खिलाड़ीवरिष्ठ नागरिक यानी समाज के हर वर्ग के लोगों के दिलो-दिमाग में गांधी-नेहरू परिवार का नाम जम जाए। जैसे ही खाद्यान्न योजना का नामकरण इंदिरा गांधी के नाम पर हो जाएगानेहरू-गांधी परिवार बड़ी कुशलता के साथ एक नागरिक के जीवन के हर पहलू से अपने ब्रांड को जोड़ने में सफल हो जाएगा। इसका मतलब कुछ इस तरह होगा- आप जैसे ही एक घूंट पानी पिएं राजीव को याद करेंरोटी खाते हुए इंदिरा गांधी को याद करेंमकान बनाते समय एक बार फिर इंदिरा गांधी का स्मरण करें। घर में बल्ब जलाएं तो राजीवबुजुर्ग पेंशन लें तो इंदिराबस पकड़े तो नेहरूक्रेश में बच्चा छोड़ें तो राजीव गांधी को याद करें।

कांग्रेस को लगता है कि इस नाम की ब्रांडिंग के बल पर वह हमेशा वोट बैंक को बढ़ाती रहेगी। पर क्या इस बार जनता इनके झांसे में आएगी

चलिए छोड़ देते हैं इस सवाल को भविष्य के लिए और फिलहाल हम लोग इस बात की फिक्र करें कि मतदाता सूची में हमारा नाम है या नहीं है ?

हाँ और ब्लॉग के अंत में मैं अपना नाम जरूर लिख दूंगा ताकि सबको याद रहे...........


आपका अपना 

अम्बेश तिवारी 


मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

  मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया ! स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र ...