शेक्सपियर ने
यह वाक्य
कब और
किस सन्दर्भ
में कहा
था ये
तो वो
ही जाने
(हालांकि ये
वाक्य जहाँ
भी लिखा
होता है
उसके नीचे
उनका नाम William
Shakespeare जरूर लिखा
होता है), पर
जब उन्होंने
यह बात
कही होगी
तब उन्हें
इस बात
का ज़रा
भी अंदाजा
नहीं होगा
कि आने
वाले समय
में इसी
नाम का
लोग कितना
फ़ायदा उठाने
वाले हैं| क्या
वाकई नाम
इतना महत्वपूर्ण
होता है ? मैं
तो कहता
हूँ बिलकुल
होता है, अगर
न होता
तो हमारे
गोस्वामी तुलसीदास
जी राम
चरित मानस
में यह
क्यों लिखते-
“क्रोध
न पावक
जर सके, मन
न समुद्र
समाय |
पुत्र
न अबला
कर सके , नाम
न कालहि
खाय ||”
वास्तव में
अगर गौर
करें तो
नाम क्या
है ? क्या नाम
सिर्फ हमारी
पहचान का
प्रतीक है
या उस
से भी
बढ़ कर
कुछ और ? मान
लीजिये मेरा
नाम अम्बेश
तिवारी न
होता, कुछ और
होता तो
क्या कोई
फर्क पड़ता ? चलिए
मेरी बात
छोड़ दीजिये
मैं तो
आम आदमी
हूँ (अरविन्द
केजरीवाल की
पार्टी वाला
आम आदमी
नहीं नार्मल
आम आदमी)
पर मुझे
लगता है
कि नाम
हमारे जीवन
बहुत अधिक
महत्व रखता
है| जैसे उदाहरण
के लिए
बचपन में
कई वर्षों
तक मैं
यही समझता
था कि
मम्मी जिस
चीज़ में
पूड़ी या
पराठा बनाती
हैं वो “डालडा” है, बाद
में पता
चला कि
यह वनस्पति
घी है
जिसे डालडा
नामक एक
ब्रांड के
नाम से
बेचा जाता
है | डबल रोटी
या ब्रेड
को आज
भी बहुत
से पुराने
लोग “मॉडर्न” कह कर
बुलाते हैं | नूडल्स
आज भी
सिर्फ “मैग्गी” ही
है और
भी बहुत
सी ऐसी
चीज़ें है
जिनका ब्रांड
का नाम
आज भी
मूल उत्पाद
से अधिक
प्रचलित है
जैसे फेविकोल एक
आसंजक (चिपकाने
वाला पदार्थ
अंग्रेजी में Adhesive) है
यह कितने
लोग जानते
है ?
पर जानना
चाहिए और
इन उत्पादों
की वास्तविकता
को समझना
और परखना
चाहिए क्योंकि
यह हमारे
जीवन को
बहुत अधिक
प्रभावित करती
हैं और
कई बार
इसी ब्रांडिंग
का सहारा
लेकर सत्तारूढ़
दल सत्ता में
वापसी का
रास्ता भी
तलाश करते
हैं |
इसका सबसे
ताजा उदाहरण
है कि
केंद्र की
यूपीए सरकार
अब तक
की सबसे
बड़ी कल्याणकारी
योजना राष्ट्रीय
खाद्य सुरक्षा
का नामकरण
इंदिरा गांधी
के नाम
करने पर
विचार कर
रही है।
कांग्रेस को
उम्मीद है
कि छह
लाख करोड़
रुपये से
अधिक की
यह योजना
पार्टी की
छवि को
चमका देगी
और पांच
राज्यों में
होने वाले
विधानसभा चुनावों
तथा इसके
बाद लोकसभा
चुनावों में
कांग्रेस को
इसका लाभ
मिलेगा। सरकार
इस योजना
का नाम
इंदिराम्मा अन्न
योजना रखने
पर विचार
कर रही
है। अगर
कांग्रेस पार्टी
अपनी योजना
में सफल
हो जाती
है, तो यह
किसी भी
राजनीतिक दल
द्वारा वोट
बैंक पर
मारा गया
सबसे बड़ा
धावा होगा।
कांग्रेस ने
सार्वजनिक धन
को अपने
नेताओं की
छवि चमकाने
और चुनावी
लाभ हासिल
करने में
लगाने के
तमाम रिकॉर्ड
ध्वस्त कर
दिए। पार्टी
ने पहले
ही सुनिश्चित
कर रखा
है कि
तमाम प्रमुख
सरकारी योजनाएं, परियोजनाएं
और संस्थानों
के नाम
नेहरू-गांधी
परिवार-राजीव, इंदिरा
और नेहरू
के नाम
पर रहें।
इससे चुनाव
में कांग्रेस
को लाभ
मिलता है, लेकिन
अभी तक
किसी भी
अधिसत्ता या
एजेंसी ने
सार्वजनिक धन
के इस
बेहूदा दुरुपयोग
पर सवाल
नहीं उठाए।
अगर हम
अपने आस
पास नज़र
डाले तो
पाएंगे कि
कुल मिलाकर 450 से
अधिक केंद्रीय
और प्रादेशिक
कार्यक्रमों, परियोजनाओं
और संस्थानों
का नामकरण
कांग्रेस पार्टी
के तीन
नेताओं के
नाम पर
किया जा
चुका है।
इनमें शामिल
हैं 28,000 करोड़
रुपये की
राजीव गांधी
ग्रामीण विद्युतीकरण
योजना, इससे भी
अधिक राशि
वाला राजीव
गांधी पेयजल
मिशन, 7,000-10,000 करोड़
रुपये की
इंदिरा आवास
योजना और
इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय बुजुर्ग
पेंशन योजना
आदि। पिछले
दो दशकों
में जवाहरलाल
नेहरू के
नाम पर
जवाहरलाल नेहरू
रोजगार योजना
और जवाहरलाल
नेहरू रिन्यूएबल
मिशल योजनाएं
चल रही
हैं। जवाहरलाल
नेहरू रिन्यूएबल
मिशन में
सात साल
के दौरान 50,000 करोड़
रुपये से
अधिक खर्च
होंगे। नेहरू-गांधी
परिवार के
नाम पर
अन्य योजनाओं
में राजीव
गांधी नेशनल
क्त्रेच स्कीम
फॉर चिल्ड्रन
ऑफ वर्किंग
मदर्स, राजीव
गांधी उद्यमी
मित्र योजना, राजीव
गांधी श्रमिक
कल्याण योजना
और राजीव
गांधी शिल्पी
स्वास्थ्य बीमा
योजना शामिल
हैं। इस
सूची में
हालिया योजना
है राजीव
गांधी इक्विटी
सेविंग स्कीम।
यहां तक कि दलित
छात्रों के
लिए छात्रवृत्तियोजना
भी राजीव
गांधी के
नाम पर
है। दलित
छात्रों के
लिए छात्रवृत्तियोजना
का नामकरण
राजीव गांधी
के नाम
पर करने
का क्या
तुक है? इस
वर्ग के
नागरिकों के
उत्थान में
राजीव गांधी
का क्या
योगदान है?
मतलब यह कि उनके नाम की ब्रांडिंग हर व्यक्ति तक किसी न किसी रूप में पहुंच जाए। नवजात शिशु, क्रेज में जाने वाले छोटे बच्चे, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे, कॉलेज में जाने वाले युवा, गर्भवती महिलाएं, कारखानों के कामगार, कारीगर, स्टॉक मार्केट के खिलाड़ी, वरिष्ठ नागरिक यानी समाज के हर वर्ग के लोगों के दिलो-दिमाग में गांधी-नेहरू परिवार का नाम जम जाए। जैसे ही खाद्यान्न योजना का नामकरण इंदिरा गांधी के नाम पर हो जाएगा, नेहरू-गांधी परिवार बड़ी कुशलता के साथ एक नागरिक के जीवन के हर पहलू से अपने ब्रांड को जोड़ने में सफल हो जाएगा। इसका मतलब कुछ इस तरह होगा- आप जैसे ही एक घूंट पानी पिएं राजीव को याद करें, रोटी खाते हुए इंदिरा गांधी को याद करें, मकान बनाते समय एक बार फिर इंदिरा गांधी का स्मरण करें। घर में बल्ब जलाएं तो राजीव, बुजुर्ग पेंशन लें तो इंदिरा, बस पकड़े तो नेहरू, क्रेश में बच्चा छोड़ें तो राजीव गांधी को याद करें।
कांग्रेस को
लगता है
कि इस
नाम की
ब्रांडिंग के
बल पर
वह हमेशा
वोट बैंक
को बढ़ाती
रहेगी। पर
क्या इस
बार जनता
इनके झांसे
में आएगी?
चलिए छोड़ देते हैं इस सवाल को भविष्य के लिए और फिलहाल हम लोग इस बात की फिक्र करें कि मतदाता सूची में हमारा नाम है या नहीं है ?
हाँ और ब्लॉग के अंत में मैं अपना नाम जरूर लिख दूंगा ताकि सबको याद रहे...........
आपका अपना
अम्बेश तिवारी
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