Monday, October 21, 2013

कोऊ नृप होए, हमें का हानी !

मित्रों अक्सर जब देश में चुनाव होना वाला होता है तो जनता के बीच एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसे लोगों का होता जो निम्न बातें कहते हुए मिल जाते हैं 

1.मुझे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है|
2.सारे नेता चोर हैं किसे वोट दे?
3.मैं तो किसी को वोट नहीं दूंगा|
4.कोई भी सरकार बन जाये हमें क्या फर्क पड़ेगा?


पर ऐसे ही लोग जब जीवन में समस्याओं से रूबरू होते हैं तो सरकार, अफसरों, या नेताओं को कोसने से नहीं चूकते हैं | मेरा मानना हैं ऐसे लोग जो लोकतंत्र के इस सबसे बड़े युद्ध में अपनी भागीदारी नहीं देते हैं और तटस्थ रहते हैं वे लोग उन भ्रष्ट नेताओं और अफसरों से ज्यादा बड़े अपराधी हैं जिनके कारण आज हमारा देश समस्यायों से घिरा हुआ है |

शायद ऐसे ही लोगों के लिए राष्ट्रकवि दिनकर ने ये पंक्तियाँ लिखी थी

"
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।"

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