मित्रों मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं कि मैं श्रृंगार के बजाय पीड़ा, दर्द, रिश्तों आदि पर क्यों लिखता हूँ !
तब मैंने अपनी पीड़ा एक छोटे से छंद के जरिये कही है कि -
ज़िन्दगी की भट्टी में जो रात दिन जल रहे हैं,
उनको मुहब्बतों की आग क्या जलायेगी !
जिनके बदन से पसीना गिरे बूँद-बूँद,
सावन की बारिश क्या उनको भिगायेगी !
खून के जो आँसू रोते रहते हैं उम्र भर,
इश्क़ की कहानी कैसे उनको रुलाएगी !
रोटी की फिकर में जो जागते हैं रात भर,
याद महबूब की क्या उनको जगाएगी !
::::अम्बेश तिवारी "अम्बेश"
No comments:
Post a Comment