Monday, September 26, 2016

मत परखियेगा लिबासों से किसी मेहमान को !

मत परखियेगा लिबासों से किसी मेहमान को,
आप ठुकरा ही न दें शायद कभी भगवान को !
मुश्किलों के दौर में जिस शख्स ने की हो मदद,
भूलियेगा मत कभी उस दोस्त के अहसान को !
नासमझ बनता रहा लफ्जों-नज़र से जो मेरी,
रोज़ ख़त लिखते रहे, हम भी उसी नादान को !
बढ़ गया रुतबा हमारा दौलतो-असबाब से,
बस ग़नीमत है यही भूले नहीं ईमान को !
वो मुकद्दस इश्क़ मेरा दर्द बनकर रह गया,
पास दिल के रख लिया उस कीमती सामान को
सांस में अब भी समाई है उसी की जो महक,
हर जगह पर ढूंढ़ते हैं बस उसी पहचान को !
जी यही करता हमारा छोड़ कर इस महल को,
ख़ोज लायें उस पुराने टूटते दालान को !
इंतिहा ये भी हुई है इश्क़ में "अम्बेश" अब,
मौन रहकर मान लेतें हैं सभी फरमान को !

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अम्बेश तिवारी "अम्बेश"

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