Friday, September 16, 2016

ज़ुबाँ पे बंदिश नहीं मगर जज़्बात पे पहरेदारी है !

ज़ुबाँ पे बंदिश नहीं मगर, जज़्बात पे पहरेदारी है,
सच कहना और सच लिखना अब बहुत बड़ी फनकारी है ।
राम कहे न ईद मुबारक, अनवर होली न खेले,
मज़हब के ठेकेदारों का फिर से फतवा जारी है ।
अजब सियासत का यह मौसम, कोयल है चुपचाप खड़ी,
क्योंकि गीत सुनाना अब मेंढ़क की जिम्मेदारी है ।
अब भी यूँ खामोश रहे तो, यह बर्बादी निश्चित है,
आज पड़ोसी का घर उजड़ा, कल अपनी भी बारी है ।
अपने घर का सूरज क्यों सारी दुनिया में रोशन है,
बस इतनी सी बात पे हर एक जुगनू का मन भारी है ।

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अम्बेश तिवारी

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