Sunday, August 14, 2016

माँ ने मुझे इंसान को पढ़ना सिखा दिया !

1

कैसे भी मुश्किलात हों लड़ना सिखा दिया,
ठोकर लगे तो गिर के संभलना सिखा दिया ।
अब मुझको ज़माने के तौर हो गए मालूम,
माँ ने मुझे इंसान को पढ़ना सिखा दिया !
दो वक़्त की रोटी तो थी पहले भी कमाई,
कैसे हो बरक्कत मुझे करना सिखा दिया !

2

तेरे बिन यह शहर कितना अज़ीब लगता है,
चाहने वाला भी मुझको रक़ीब लगता है,
जिनके सर पे है उनकी माँ का साया अब मुझको,
ऐसा हर शख्स बड़ा खुशनसीब लगता है !

No comments:

होली पर व्यंग्य कविता

 होली पर व्यंग्य कविता  अबकी होली पर दिल्ली ने बदला ऐसा रंग, छोड़ आप का साथ हो गयी मोदी जी के संग, मोदी जी के संग करो मत महंगाई की बात, अपने ...