जब से माँ हमें छोड़ कर गईं हैं एक-एक दिन जैसे एक एक बरस की तरह निकलता है । अभी कुल 18 दिन बीते हैं पर ऐसा लग रहा है कि एक सदी बीत गई हो ! लोग आते हैं, समझाते हैं, चले जाते हैं पर मैं अब भी वहीँ खड़ा हूँ ! समझ नहीं आता क्या करूं ?
आज कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं -
रोज़ निकले चाँद सूरज, यह घड़ी रूकती नहीं,
कितना भी मुट्ठी में पकड़ो, रेत पर टिकती नहीं,
सब मुझे समझा रहे आगे बढ़ाओ ज़िन्दगी,
"माँ" तुम्हारे बिन मगर यह ज़िन्दगी कटती नहीं !
तुमने इतना था दिया जिसको मैं गिन सकता नहीं,
फिर भी जाने ख्वाहिशें कितनी हैं जो मरती नहीं !
सैकड़ों रिश्ते यहाँ हैं सब मगर वीरान हैं,
एक माँ-बेटे के रिश्ते की ख़लिश घटती नहीं !
लाख समझाया मगर यह दिल मेरी सुनता नहीं,
और माँ तेरी यह सूरत से आँख से हटती नहीं !
दूसरों को सीख देना है बड़ा आसान पर,
खुद पे जब आती मुसीबत तब ज़ुबाँ खुलती नहीं !
:::::::अम्बेश तिवारी "अम्बेश"
21.07.2016
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