Monday, May 9, 2016

मेरी बेटियां !

अपनी कोमल मुस्कानों से सब चिंता बिसरा देती हैं,
मेरी दो नन्हीं कलियाँ घर आँगन को महका देती हैं ।।
जब अपने नन्हें हाथो से मेरे बालों को सहलाती,
वो मेरी बेटियाँ मुझे माँ का एहसास दिला देती है ।।
छुपन-छुपाई, अक्कड़-बक्कड़, पोसम्पा और चिड़िया उड़,
खेल खेल के साथ मेरे, मेरा बचपन लौटा देती हैं ।।
लौट के जब घर आता हूँ तब दौड़ के मेरे सीने से,
लिपट के अपने सारे दिन का किस्सा वो बतला देती हैं ।।
तितली सी उड़ती फिरती हैं, मेरी जीवन बगिया में,
एक दिन सचमुच उड़ जाएँगी यह भी याद दिला देती हैं ।।
मुझ जैसे फक्कड़, आवारा, को भी अपने होने से,
पिता की पदवी पर बैठाकर जिम्मेदार बना देती हैं ।।
अपनी कोमल मुस्कानों से सब चिंता बिसरा देती हैं,
मेरी दो नन्हीं कलियाँ घर आँगन को महका देती हैं ।।

::अम्बेश तिवारी
09.05.2016

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