उसकी नज़रों में खो गईं नज़रें,
तब से बदनाम हो गईं नज़रें !
उसके ख़त को पढूं भी तो कैसे,
पूरा कागज़ भिगो गईं नज़रें ।
मयकदा ढूंढता फिरूँ वाइज़,
इतनी फुर्सत कहाँ मुझे अब है,
उसकी आँखों में मय के प्याले थे,
बस उसी में डुबो गईं नज़रे !
मुहँ से इक लफ्ज़ भी नहीं निकला,
वो मेरा हाले दिल समझ भी गए,
आँखों आँखों ने गुफ्तगू कर ली,
दिल का आइना हो गईं नज़रें !
ये मोहब्बत भी एक तमाशा है,
जिसमे फ़ुर्क़त भी है, तन्हाई भी,
बस तेरे लौटने की राहों पर,
कितनी वीरान हो गईं नज़रें !
अम्बेश तिवारी
10.05.2016
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