आज मेरे मित्र डा.पवन मिश्रा और पूजा कनुप्रिया ने मुझे उलाहना देते हुए कहा कि मैं सिर्फ राजनैतिक पोस्ट लिखता हूँ और श्रृंगार के प्रति भावशून्य हो गया हूँ ! तब मुझे आभास हुआ कि किसी हद तक यह सत्य भी है । उनकी प्रेरणा पर कुछ पंक्तियाँ लिखी जो लिखते लिखते ग़ज़ल बन गयी...
बस यही काम मुझे याद रहा,
एक तेरा नाम मुझे याद रहा !
वो तेरे साथ बिताया हुआ हर एक लम्हा,
वो सहरो-शाम मुझे याद रहा !
मेरी आँखों से ख्वाब छीन लिए थे जिसने,
वो मिरा इश्क-ऐ-नाकाम मुझे याद रहा !
तुझे तन्हाईयों में ढूंढता रहता हूँ मैं,
तेरा वो अक्स-ए-गुलफाम मुझे याद रहा !
तेरी चाहत न मिली चार दिनों तक भी फकत,
रहा मैं उम्र भर बदनाम मुझे याद रहा !
तेरे जाने के बाद किसके सहारे जीता,
महफ़िल-ऐ-जाम, सरेआम मुझे याद रहा !
बस यही काम मुझे याद रहा,
एक तेरा नाम मुझे याद रहा !
:::::अम्बेश तिवारी
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