Tuesday, December 17, 2024

मिडिल क्लास की कविता

 हम मिडिल क्लास वालों की जिंदगी क्या है ?


एक छोटा सा कमरा जिसमें रखी 

अलमारी में गिनती के कुछ पैसे,

या एक बड़े से ऑफिस के बैठा मैं जिसके 

दिमाग में सपने न जाने कैसे कैसे !


वो सपने जिनको पूरा करना भी बस एक सपना ही लगता है!

हम मिडिल क्लास के लोगों को तो सामान 

में डिस्काउंट और उधार देने वाला भी अब अपना लगता है!


फिर हो वो चाहे परचून वाला बनिया, सब्जी 

वाला भईया या चौराहे का पनवाड़ी,

इन सबसे दोस्ती करके चलती रहती है 

अपनी ज़िंदगी की गाड़ी !


हम न तो दौलत जोड़ पाते हैं और 

न ही छू पाते हैं शोहरत की ऊंचाई,

हमारे हिस्से आती हैं लम्बी लम्बी कतारें 

और घटती बढ़ती महँगाई !


इंतज़ार करते रहते हैं पूरे महीने उस एक मैसेज का,

जिसमें लिखा होता है सैलरी क्रेडिटेड टू योर एकाउंट!

और फिर झेलते हैं पूरे महीने आने वाले वो अनगिनत मैसेज,

कि योर एकाउंट इस डेबिटेड फ़ॉर दिस अमाउंट, 

दिस अमाउंट एंड दिस अमाउंट !


घर का लोन, गाड़ी की क़िस्त, बच्चों की पढ़ाई और बाकी की दवाई

इन सबका हिसाब करते करते ही हमने अपनी पूरी जवानी बिताई!


फिर भी हम मिडिल क्लास वाले हर रिश्ता निभाते हैं, 

दूर हो या पास हर रिश्तेदार के घर जाते हैं,

बाँटते है सुख दुख एक दूसरे का, एक दूसरे के काम आते हैं, 

वो जरूरी हैं हमारे लिए उन्हें यह एहसास कराते हैं।


हमारे घरों में काम करने वाली महिलाएं हमारे लिए कर्मचारी नहीं होती,

बल्कि होती हैं वो अम्मा, चाची, दीदी, मौसी, बुआ और बिटिया 

हमने ऐसे न जाने ऐसे कितने ही रिश्तों 

को खूब मन से जीवन भर है जिया !!


अरे इन्हीं संघर्षों और रिश्तों के तानों बानों में ही

 तो जिंदगी का सार है,

हम मिडिल क्लास वालों की ज़िंदगी 

इन सबके के बिना बिल्कुल बेकार है।


इसलिए नहीं बनना हमें हाई क्लास, 

हम मिडिल क्लास ही अच्छे हैं,

पैसे कम है, सपने अधूरे हैं 

पर दोस्ती और रिश्ते हमारे सच्चे हैं।

©

अम्बेश तिवारी

No comments:

होली पर व्यंग्य कविता

 होली पर व्यंग्य कविता  अबकी होली पर दिल्ली ने बदला ऐसा रंग, छोड़ आप का साथ हो गयी मोदी जी के संग, मोदी जी के संग करो मत महंगाई की बात, अपने ...