Wednesday, March 12, 2025

होली पर व्यंग्य कविता

 होली पर व्यंग्य कविता 

अबकी होली पर दिल्ली ने बदला ऐसा रंग,

छोड़ आप का साथ हो गयी मोदी जी के संग,

मोदी जी के संग करो मत महंगाई की बात,

अपने मन की छोड़, सुनो बस उनके मन की बात, 

मन की बात बेचारे राहुल जी क्या बोलें,

न बहुमत न बहू मिली बस रहे अकेले!

रहे अकेले घूम पहन टी-शर्ट बिचारे,

उनकी नैया हाय लगाए कौन किनारे!

कहत कवि अम्बेश सुनो बाबा का कहना,

जपो राम का नाम अगर यू पी में रहना!

Tuesday, December 17, 2024

मिडिल क्लास की कविता

 हम मिडिल क्लास वालों की जिंदगी क्या है ?


एक छोटा सा कमरा जिसमें रखी 

अलमारी में गिनती के कुछ पैसे,

या एक बड़े से ऑफिस के बैठा मैं जिसके 

दिमाग में सपने न जाने कैसे कैसे !


वो सपने जिनको पूरा करना भी बस एक सपना ही लगता है!

हम मिडिल क्लास के लोगों को तो सामान 

में डिस्काउंट और उधार देने वाला भी अब अपना लगता है!


फिर हो वो चाहे परचून वाला बनिया, सब्जी 

वाला भईया या चौराहे का पनवाड़ी,

इन सबसे दोस्ती करके चलती रहती है 

अपनी ज़िंदगी की गाड़ी !


हम न तो दौलत जोड़ पाते हैं और 

न ही छू पाते हैं शोहरत की ऊंचाई,

हमारे हिस्से आती हैं लम्बी लम्बी कतारें 

और घटती बढ़ती महँगाई !


इंतज़ार करते रहते हैं पूरे महीने उस एक मैसेज का,

जिसमें लिखा होता है सैलरी क्रेडिटेड टू योर एकाउंट!

और फिर झेलते हैं पूरे महीने आने वाले वो अनगिनत मैसेज,

कि योर एकाउंट इस डेबिटेड फ़ॉर दिस अमाउंट, 

दिस अमाउंट एंड दिस अमाउंट !


घर का लोन, गाड़ी की क़िस्त, बच्चों की पढ़ाई और बाकी की दवाई

इन सबका हिसाब करते करते ही हमने अपनी पूरी जवानी बिताई!


फिर भी हम मिडिल क्लास वाले हर रिश्ता निभाते हैं, 

दूर हो या पास हर रिश्तेदार के घर जाते हैं,

बाँटते है सुख दुख एक दूसरे का, एक दूसरे के काम आते हैं, 

वो जरूरी हैं हमारे लिए उन्हें यह एहसास कराते हैं।


हमारे घरों में काम करने वाली महिलाएं हमारे लिए कर्मचारी नहीं होती,

बल्कि होती हैं वो अम्मा, चाची, दीदी, मौसी, बुआ और बिटिया 

हमने ऐसे न जाने ऐसे कितने ही रिश्तों 

को खूब मन से जीवन भर है जिया !!


अरे इन्हीं संघर्षों और रिश्तों के तानों बानों में ही

 तो जिंदगी का सार है,

हम मिडिल क्लास वालों की ज़िंदगी 

इन सबके के बिना बिल्कुल बेकार है।


इसलिए नहीं बनना हमें हाई क्लास, 

हम मिडिल क्लास ही अच्छे हैं,

पैसे कम है, सपने अधूरे हैं 

पर दोस्ती और रिश्ते हमारे सच्चे हैं।

©

अम्बेश तिवारी

Wednesday, November 27, 2024

लज्ज़त की जब बात चले तो कानपूर की है क्या बात

लज्ज़त की जब बात चले तो कानपूर की है क्या बात!

यहाँ के हर कोने में भईया मिलता एक निराला स्वाद !

बनारसी की चाय से खिलती हर सुबह मुस्कान यहाँ,

और जलेबी जैन की मिल जाये तो दिल कुर्बान यहाँ!

खस्ते रामनारायण के हों, राम प्रसाद की चाट मिले, 

पहलवान का मट्ठा पीकर तन मन का हर रोम खिले!

खाओ पराठे कृष्णा वाले, राजकुमार के छोले मस्त!

यादव जी का बाटी-चोखा खाकर तबियत होये दुरुस्त!

मोहन खस्ता बड़ा निराला, और समोसे मुन्ना के,

खाओ मलाई मक्खन शुक्ला जी का छोटे दुन्ना में!

बनारसी का बूँदी लड्डू और कचौड़ी भीखाराम,

घण्टा घर पर थाली खाकर जपो निरन्तर जय सिया राम!

ठग्गू के लड्डू को चखकर, कुल्फी खाओ जो है बदनाम,

और मिठास की लस्सी पीकर, संगम पान पे बीते शाम !

आई आई टी के दही बड़े और केसरवानी डोसा हो,

बुद्धसेन की ग़ज़ब मिठाई, जनवादी का समोसा हो!

गोल बताशे शंकर वाले, राम के पेड़े जग-विख्यात,

लज्ज़त की जब बात चले तो कानपूर की है क्या बात!!

©

अम्बेश तिवारी

Sunday, July 14, 2024

कितना मुश्किल होता है

सबकी सुनना, पर चुप रहना, कितना मुश्किल होता है,
उससे बिछड़ना पर खुश रहना, कितना मुश्किल होता है !
ज़िन्दा रहने की खातिर हर रोज़ यहाँ मरना पड़ता,
और मरने तक ज़िन्दा रहना, कितना मुश्किल होता है !!

Saturday, November 19, 2022

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

 

मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी,

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया !


स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र तक साइकल से ऑफिस जाना,

अब भी याद है मुझे उनका एक एक रुपया बचाना !

सुबह और शाम तीन तीन घण्टे ट्यूशन पढ़ाना !

थक कर चूर होकर देर रात को घर वापस आना !


मम्मी से कभी हिसाब नहीं लेते थे पर उन्हें सब एहसास रहता था !

हम बच्चों की छोटी छोटी ख़्वाहिशों का उन्हे आभास रहता था !


पापा खामोश रहते हैं, खुद को व्यक्त करना उन्हें कभी नहीं आया,

पर हमको उनका उदास चेहरा पढ़ना शायद उन्होने ही था सिखाया !


हमारे बीमार होने पर बहुत घबराते हैं पापा !

स्वेटर क्यों नहीं पहना ? मफ़लर कहाँ हैं तुम्हारा ? अब तो जैकेट निकाल लो !

इन बातों पर अब भी डांट लगाते हैं पापा !


पर उनका इस तरह डांटना, मुझे अब बुरा नहीं, बहुत अच्छा लगता है,

क्योंकि आज मैं खुद एक पिता हूँ, पर यह एहसास बहुत तसल्ली देता है, 

कि कोई है, जिसे यह आदमी अब भी बच्चा लगता है!


उनके साथ का मतलब, जैसे बरगद के पेड़ की छाया,

जीवन के हर झंझावात से उनके वरदहस्त ने ही तो बचाया!

उनके घर में होने से दिल में एक सुकून का एहसास रहता है !

वो सदा साथ रहेंगे बस मन में यही विश्वास रहता हैं !


आज पापा के जन्मदिन दिन पर मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं,

मुझ जैसा आलसी, लापरवाह, फक्कड़ इंसान यदि थोड़ा भी जिम्मेदार बना है 

तो यह उनके अनुशासन, और अच्छी परवरिश का ही परिणाम है !

यह उनके संस्कारों का ही असर है कि मेरा समाज में थोड़ा बहुत नाम है !


उन्होने छानने की बहुत कोशिश की पर मैं अब भी पूरी तरह से छन नहीं पाया 

मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी,

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया !


Thursday, November 17, 2022

अक्सर चुप रह जाता हूँ !

हाल-ए-ग़म बतलाना हो तब, मैं पीछे रह जाता हूँ, 

नाराजी दिखलाना हो तब, मैं पीछे रह रह जाता हूँ!

कितने अरमाँ मन में छुपाए, फिर उनके नजदीक पहुँच, 

दिल का हाल बताना हो जब, मैं पीछे रह जाता हूँ।






                                                     

Tuesday, September 20, 2022

कितना मुश्किल होता है !!

सबकी सुनना, पर चुप रहना, कितना मुश्किल होता है,
उससे बिछड़ना पर खुश रहना, कितना मुश्किल होता है !
ज़िन्दा रहने की खातिर हर रोज़ यहाँ मरना पड़ता, 
मरने तक फिर ज़िन्दा रहना, कितना मुश्किल होता है !!
सपनों के मर जाने का अफसोस नहीं होता लेकिन,
फिर भी सपने बुनते रहना, कितना मुश्किल होता है!!
महलों में रहने वाले क्या जाने तपिश दुपहरी की,
हमसे पूछो धूप में जलना कितना मुश्किल होता है!!
जीवन के इस मोड़ पे आकर मुझको ये अहसास हुआ
बीते वक्त का वापस आना, कितना मुश्किल होता है।
इतने दुःख जीवन में पाकर मुझको ये मालूम हुआ
अपनी ही तकदीर से लड़ना, कितना मुश्किल होता है
गीली आँखें, दिल पर पत्थर, चेहरे पर मुस्कान लिए,
तेरी यादों के संग जीना, कितना मुश्किल होता है
अपने गम को सह लेता है हर कोई इस दुनिया में
पर दूजे के गम को सहना कितना मुश्किल होता है।

होली पर व्यंग्य कविता

 होली पर व्यंग्य कविता  अबकी होली पर दिल्ली ने बदला ऐसा रंग, छोड़ आप का साथ हो गयी मोदी जी के संग, मोदी जी के संग करो मत महंगाई की बात, अपने ...