मित्रों आज अपने बचपन को याद करते हुई एक छोटी सी कविता लिखने का प्रयास किया है । आप लोगों की प्रतिक्रिया का स्वागत है ----
अब भी आँखों में बसते हैं कुछ ख्वाब पुराने बचपन के,
वो भरी दुपहरी में क्रिकेट के मैच पुराने बचपन के ।।
आ बैठ साइकिल पर फिर दोनों चलते हैं उन गलियों में,
वो चाट, समोसे, दही जलेबी, छोले खाने बचपन के ।।
है याद पड़ोसन वो जिसको हम छत से ताका करते थे,
किस्से कितने पीछे छूटे सब इश्क पुराने बचपन के ।।
वो नयी मोपेड पर बैठ सिनेमा देखने जाना छुप छुप कर,
और पकड़े जाने पर देना फिर वही बहाने बचपन के ।।
वो रात-रात भर बैठ के पढ़ना, करना साथ ठिठोली भी,
वो शेर शायरी और कविता वो शौक पुराने बचपन के ।।
वो होली के हुड़दंग कहाँ, वो कहाँ दीवाली की रौनक,
वो वक़्त गया, सब छूट गया, अब गए ज़माने बचपन के ।।
तेरा बिज़नस, नौकरी मेरी, बस यही बचा है जीवन में,
अब कहाँ बचे वो खेल, कहाँ वो दोस्त पुराने बचपन के ।।
----अम्बेश तिवारी
27.04.2016
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