Thursday, April 28, 2016

सुनो प्रिये नाराज न होना !

एक मध्यमवर्गीय पति अपनी पत्नी की शिकायतों और उलाहनों को दूर करने के लिए उसे कैसे समझाता है वो मैंने इस कविता के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है !

सुनो प्रिये नाराज़ न होना,
अभी तो ऑफिस की जल्दी है,
कल हम दोनों बात करेंगे !

अगले माह जरूर चलेंगे
पिकनिक या फिर कहीं घूमने,
जहाँ बिताएंगे पल दो पल
एक दूजे के साथ अकेले,
आज तो बाइक भी खराब है,
बस से ऑफिस जाना होगा,
बच्चों को समझा देना तुम,
कैसे हम सब साथ चलेंगे,
इस पर भी कल बात करेंगे !

अभी तो ऑफिस की जल्दी है,
कल हम दोनों बात करेंगे !

राशन का सामान ख़तम है !
और महीने के छह दिन बाकी,
किसी तरह तुम काम चला लो,
कुछ पैसे बच जाएँ ताकि,
माँ-बापू की दवा है लानी,
और बच्चों की फीस चुकानी,
क्या-क्या और काम बाकी हैं,
यह भी कल हम याद करेंगे,
इस पर भी कल बात करेंगे !

अभी तो ऑफिस की जल्दी है,
कल हम दोनों बात करेंगे !

अभी वक़्त कुछ ठीक नहीं है,
पर यह दिन भी कट जाएंगे,
यही दिलासा दे लो मन को,
गम के बादल छँट जाएंगे,
अपना क्या है जैसे तैसे,
अपना जीवन बीत चला है,
बच्चों के भविष्य की दुनिया,
कैसे हम आबाद करेंगे ?
इस पर भी कल बात करेंगे !

अभी तो ऑफिस की जल्दी है,
कल हम दोनों बात करेंगे !

सुनो प्रिये नाराज़ न होना,
कल हम दोनों बात करेंगे !

अम्बेश तिवारी
28.04.2016

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